बागियों ने बढ़ाई बीजेपी-शिवसेना की टेंशन

साभार/ मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा (Maharashtra Assembly election) की 288 सीटों में से 220-230 सीट जीतने का सपना देखने वाली बीजेपी-शिवसेना के लिए तस्वीर अब उतनी सुहानी नहीं लग रही। सीट बंटवारे और टिकट बंटवारे के बाद पार्टी नेतृत्व के फैसलों से नाराज होकर बागी बने नेताओं और कार्यकर्ताओं के चलते आंकड़ा घट सकता है। अब जब चुनाव में सिर्फ चार दिन शेष बचे हैं, महायुति के अंदरखाने में भी इसकी सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। महायुति के नेताओं को अब एक ही भरोसा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं से कुछ करिश्मा होगा।

सत्ता के अंदरूनी सर्कल में घूमने वालों का कहना है कि कंट्रोल रूम का ताजा अंदाजा है कि बीजेपी को अकेले 130 सीट और शिवसेना को 70 सीट पर जीत मिल सकती है। इस तरह यह आंकड़ा 200 तक ही पहुंचता है। यानी पहले जो 220 से 230 का दावा किया जा रहा था, उसमें चुनाव के नतीजे आने से पहले ही 20 से 30 सीट घटने का अंदाजा है। बहरहाल 20-30 सीट घटने से महायुति के सरकार बनाने के दावे को कोई चुनौती नहीं है, क्योंकि बहुमत के लिए 145 सीट ही चाहिए।

इससे भी बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष को कितनी सीटें मिलेंगी? कांग्रेस ज्यादा सीटें जीतेगी या राकांपा? विभिन्न पार्टियों के वॉर रूम से मिली जानकारियों के विश्लेषण से फिलहाल यह तस्वीर बनती दिख रही है कि इस बार भी राज्य में कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी होगी और कांग्रेस 35 से ज्यादा सीटें जीत सकती है, जबकि राकांपा को 20 सीटें मिल सकती हैं। पिछली विधानसभा में कांग्रेस के पास 42 विधायक थे और राकांपा के पास 41 विधायक थे।

राकांपा के नुकसान की दो बड़ी वजहें हैं। पहली उसके कई बड़े नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ना और दूसरी बीजेपी द्वारा कांग्रेस से ज्यादा राकांपा को टारगेट किया जाना। वॉर रूम स्ट्रेटेजिस्ट का अंदाजा है कि विपक्ष के कम से कम 8 निर्दलीय चुनाव जीतने की स्थिति में हैं।

जीत सुनिश्चित करने और सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने के लिए पार्टी के भीतर के विरोध को दबाकर या नजरअंदाज करके मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्ध‌व ठाकरे ने गठबंधन तो कर लिया, लेकिन पांच साल से एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार कार्यकर्ताओं का मनोमिलन नहीं पाया है।

अगर अकेले मुंबई की बात करें, तो वर्सोवा, बांद्रा पूर्व, सायन-कोलीवाडा, अंधेरी पूर्व, कोलाबा, मुंबादेवी, मुलुंड, मीरा भाईंदर और कल्याण पूर्व तथा पश्चिम की सीटों पर महायुति की जीत का गणित फिलहाल अनिश्चित ही दिख रहा है। इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।

वर्सोवा: वर्सोवा सीट पर बीजेपी के टिकट पर लड़ रही शिवसंग्राम पार्टी की भारती लवेकर की जीत की तस्वीर अब तक साफ नजर नहीं आ रही। इस सीट पर शिवसेना की बागी तो खेल बिगाड़ ही रही हैं, पार्टी का कैडर भी लवेकर के लिए उत्साह से काम करता नजर नहीं आ रहा। बीजेपी के स्थानीय नेताओं में भी खासा उत्साह नहीं है। ऐसे में यह सीट कांग्रेस के बलदेव खोसा के नाम लग सकती है, बशर्ते प्रिया दत्त उनके लिए प्रचार करें।

मुंबादेवी: मुंबादेवी में बीजेपी ने राजपुरोहित का टिकट काटकर राजस्थानी समाज की नाराजगी मोल ले ली है। इससे बीजेपी का नुकसान यह होगा कि उनका वोट भले ही कांग्रेस के अमीन पटेल को न मिले, लेकिन बीजेपी को भी नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ कांग्रेस का अपना परंपरागत वोट और मुस्लिम वोट अमीन पटेल की तरफ गया, तो नतीजे कुछ और होंगे।

बांद्रा पूर्व: बांद्रा पूर्व की अगर बात करें, तो मातोश्री के आंगन की यह सीट है। शिवसेना इस सीट पर भी बगावत को थाम नहीं पाई। दिवंगत शिवसैनिक बाला सावंत की पत्नी और पूर्व विधायक तृप्ति सावंत यहां शिवसेना के प्रत्याशी मेयर विश्वनाथ महाडेश्वर का खेल बिगाड़ सकती हैं। दो शिवसैनिकों की लड़ाई में अगर कांग्रेस के जीशान सिद्दिकी बाजी मार लें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कोलीवाडा: बीजेपी का आपसी झगड़ा सायन कोलीवाडा में भी दिख रहा है। वहां कैप्टन तमिल सेल्वन के खिलाफ बीजेपी की तरफ से ही भितरघात का खतरा है। मुख्यमंत्री के एक करीबी नेता अपनी पत्नी के लिए आगे की राह खोलना चाहते हैं। ऐसे में फायदा कांग्रेस के गणेश यादव को मिल सकता है। गणेश यादव चुनाव जीत भी सकते हैं।

अंधेरी ईस्ट में भी बीजेपी उम्मीदवार को शिवसैनिकों का साथ नहीं मिल रहा है। मालाड, कोलाबा में भी कमोबेश यही स्थिति है। बीजेपी और शिवसेना के बीच यहां भी मनोमिलन की कमी साफ दिखाई दे रही है। मुलुंड सीट पर छह बार विधायक रहे सरदार तारा सिंह को टिकट नहीं दिया गया। यहां बीजेपी की अंदरुनी लड़ाई का असर तेज दिख रहा है। इसी तरह पूर्व मंत्री प्रकाश मेहता नहीं चाहते कि घाटकोपर से उनकी सीट पर कोई और जीतकर आए।

मीरा भाईंदर में बीजेपी की बागी गीता जैन चुनाव जीतने की स्थिति में हैं। खेल ऐसा है कि गीता जैन खुद को जीतने के लिए जितना जोर लगा रही हैं, उसका अप्रत्यक्ष फायदा कांग्रेस के उम्मीदवार मुजफ्फर हुसैन को मिलता दिख रहा है। अभी के अनुमान के अनुसार करीब तीन लाख तक वहां वोटिंग होती है, जिसमें अगर गीता जैन करीब 70 हजार वोट ले गईं, तो बीजेपी के विधायक नरेंद्र मेहता का खेल बिगाड़ सकती हैं।

 352 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *