एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। जगत प्रहरी (Jagat Prahari) में राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की व्यंगात्मक लेखो के बाद बड़े पैमाने पर मिल रही प्रतिक्रिया से प्रभावित होकर सिंह ने 9 अगस्त को एकसाथ तीन व्यंगात्मक लेख लिख डाला है। प्रस्तुत है राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की जुबानी:-
कहानी : 1
लैला – मजनूँ की क़हानी आप सभी जानते हैं। जो क़हानी का हिस्सा आपलोग नही जानते वो मैं आपलोगो की बिना ईजाजत आज बतलाना चाहता हूँ। कहानी में थोड़ा ट्वीस्ट है। ध्यान से सुनियेगा …. लैला – मजनूँ के प्यार में, जैसा की आपलोग जानते हैँ …जालिंम ज़माने की नजर लग गयी। लैला घर में कैद कर दी गयी और मजनूँ को रोने तड़पने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा। भूखे मजनूँ लैला-लैला करते पड़ा रहता था। लैला को मजनूँ का भूखे तड़पना देखा नही गया।
वह अपनी दासी से रोज एक कटोरा दूध भीजवा देने लगी। मजनूँ को होश कहाँ कि वह दूध देखे और पीये। वह तो मदहोश लैला-लैला करता पड़ा रहता था। एक चालाक लड़का मामला समझ गया और मजनूँ की मदहोशी का फायदा उठा कर रोज दूध पीने लगा। एक दिन लैला को शक हो गया। उसने दूध पीने वाले लड़के की परीक्षा लेने के लिये अपनी दासी से पुछवाया कि लैला की तबियत बहुत खराब हैं उसे खून की ज़रूरत है क्या वह अपना खून लैला के लिये दे सकता है। चालाक लड़के ने क़हा “वह तो दूध पीने वाला मजनूँ है। खून देनेवाला तो उधर है।” जैसे ही असली मजनू को पता चला वह खूँन देने के लिये दौड़ पड़ा।
मित्रों हमलोग दूध पीने वाले मजनूँ हैं। हमारी देशभक्ति दूध पीने के लिये है ना कि खून देने के लिये। खून देने वाले देखिये उधर अर्बन नक्सली बोलकर जेल में डाल दिये गये हैं।
हकीकत यही है साथियो ….आगे आपकी मर्जी।
कहानी : 2
“इंसान था पहले बन्दर.. कहते थे उस्ताद हमारे नाम था ज़िनका कलंदर.. इंसान था पहले बन्दर।”
बड़े आराम से गाते हुये अजुधेया जी जा रहा था कि एक जोर का चमाट किसी ने कान के नीचे धर दिया। देखा तो सामने साक्षात हनुमान जी। मैं चरणों पर धराशायी हो गया। प्रभू क्या गलती हो गयी? हम तो आपके आराध्य भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने जा रहे है।
तुम नीच, कमीने इंसान जाति, धर्म, प्रांत और देश के नाम पर लड़ने वाले जाहिल.. अपने को बन्दर का औलाद बता कर हमे बदनाम करते हो। खबरदार जो स्वयं को हमारा औलाद बताया। हमने फरियाद कीं ..प्रभू ! हम थोडे़ कहते हैं। ये तो हमारे उस्ताद के उस्ताद डार्विंन साहब ने कहा है। प्रभू हनुमान हमको दो चमाट फिर दिये और डार्विंन साहब को खोजने निकल गये।
कहानी : 3
क्यों रामजी ! मजा आ रहा है न? पहिले आप सीताराम-सीताराम सुनके खुश होते थे लेकिन इधर जब से आपका हमरे मोदीजी जी से टाँका भीड़ा है तबसे जै श्रीराम सुनके मगन हो रहे हैं। मोदी जी यशोदा मैया को किनारे लगा दिये तअ देखादेखी आप सीता मैया को धरती फाड़ के ढ़ुका दिये।
अब हम का बताएं कि आपके लिये हमलोग कितना दँगा-फसाद किये। मार-धाड़ किये। आपका मँदिर बनाने के लिये केस-फौजदारी लड़े। जब हमलोगों के लिये कुछ करने का मौका आया तो आप तीर-धनुष काँख में दबा के नुका गये। आप तो शाहजी के भी चच्चा निकले।
बचपन में हमारे पप्पा जब मिठाई लाते थे तो हम भाई-बहन दउड़ के डब्बा खोलने चहूँपते थे। माँ की डाँट खाकर स्टैचू बन जाते थे। जबतक माँ हाथ-गोड़ धोकर आपको भोग नहीं लगा लेती थी तब तक भर आँख देखने को भी नहीं मिलता था। वही हाल आज भी हमरे बचवन की अम्माँ करती है लेकिन का फायदा। आपको खिया-पिया के मुस्टंडा बनाये कि शँकर जी के साथे कैलाश परबत पर मुस्तैद रहियेगा। ताकि ” जाल तू जलाल तू आई बला टाल तू ” का मँतर जपते रहियेगा।
करौना-मरौना को उधरे धकेल दीजिएगा। आप तो धोखा दे दिये। आँख मूँदकर सो गये या चीनीयन के साथे मिलकर लाल किताब पढ़ने लगे। लेकिन बूझ लीजिये अगर लाल किताब पढ़ के कौमनिस्ट बने तो आपका खैर नहीं रहने देंगे। देखिये हमारे मोदीजी बाईसे तारीख को ताली, थरिया, शँख, घँटा बजा के आपको चेता दीहीन हैं।
जोगीरा जी भी लौकडौन में हजारों लोगों को जुटाकर आपके मँदिर का ‘ शिलानाश ‘ किये थे। अभी अभी टटका फिरौ मोदीजी दुबारा शिलानाश किये फिरू आप नहीं सुन रहे हैं। चीनीयन सब सीमा में घुसते आ रहा है। साथे कोरोनवा को भी 20 लाख से उपर घुसा दिया है।
हम आपको फिरू से बोल दे रहे हैं। हमरा नमक खायें हैं तअ नमक का शरियत अदा कीजिये। कोरोनवा और चीनीयन को भारतभूमि से भगाईये नहीं तअ अईसन लबेद लेकर दौड़ायेंगे न कि जाकर फिरू अहिरावण के हियाँ नुका जाईयेगा।
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