मुंबई। बैंक के साथ धोखाधड़ी करने वाले एक शख्स को स्पेशल सीबीआई कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को उसी कोर्ट ने 6 और आरोपियों एक अन्य केस में यही सजा सुनाई है। जिन सफेदपोशों को सजा हुई है, उनमें बाप-बेटे, बैंक ऑफ इंडिया का एक पूर्व असिस्टेंट जनरल मैनेजर और एक चार्टर्ड अकाउंटेट शामिल है।
अंधेरी के बिजनसमैन मनोहरलाल आहुजा (65) और उनके बेटे अमित (39) ने 19 साल पहले बैंक ऑफ इंडिया के साथ धोखाधड़ी की थी और गलत तरीके से फर्जी दस्तावेजों के जरिए 1.5 करोड़ का लोन और 1 करोड़ के लेटर्स ऑफ क्रेडिट हासिल किए थे। उन्होंने इसके लिए वर्सोवा में एक ऐसे प्लॉट का फर्जी दस्तावेज पेश किया था, जो वास्तव में कहीं था ही नहीं। स्पेशल जज एस. आर. तम्बोली ने एक वकील यूनुस मेमन (64) को भी आपराधिक साजिश, जालसाजी और धोखाधड़ी का दोषी पाया। वकील को 3 साल की सजा सुनाई गई है।
कोर्ट ने आहुजा पिता-पुत्र पर 3 करोड़ से ज्यादा का जुर्माना भी लगाया है, जबकि पूर्व बैंक कर्मचारी भगवानजी जोशी (73) पर 4.3 लाख का जुर्माना ठोका है। विशेष अभियोजक जीतेंद्र शर्मा ने कहा कि कपड़े के व्यवसाय के लिए लोन लेने वाले आहुजा पिता-पुत्र ‘आदतन अपराधी’ हैं। उन्होंने कहा कि जोशी भी धोखाधड़ी के एक अन्य केस में दोषी करार दिया गया था और उसे 2 साल की सजा हुई थी। शर्मा ने कहा कि 2014 में आरोपियों ने लोन की ठीक-ठाक राशि जमा कर दी थी लेकिन इससे उनका अपराध कम नहीं हो जाता। 2004 में बैंक को धोखाधड़ी का पता चलने के बाद सीबीआई के स्पेशल टास्क फोर्स ने केस दर्ज किया था।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि वकील मेमन को कई बैंकों ने कर्ज के बदले ‘कोलैटरल सिक्यारिटी’ के तौर पर पेश की जाने वाली संपत्तियों पर कानूनी राय के लिए अपने पैनल में रखा था। विशेष लोक भियोजक जीतेंद्र शर्मा ने दलील दी, ‘मेमन ने अपने टाइटल सर्च रिपोर्ट में बताया था कि उसने वर्सोवा स्थित प्रॉपर्टी का दौरा किया था और रजिस्ट्रार ऑफिस से प्रॉपर्टी को वेरीफाई किया था। रिपोर्ट में उसने दावा किया था कि प्रॉपर्टी ठीक है और बैंक में गिरवी रखी जा सकती है। इस रिपोर्ट के मद्देनजर बैंक ने आहुजा के लोन प्रपोजल पर विचार किया था।’ मेमन इससे पहले ऐसे ही एक मामले में बरी हुआ था।
अभियोजन के मुताबिक वर्सोवा प्लॉट वास्तव में एक पब्लिक जॉगर्स पार्क था और वह कोई खुला प्लॉट नहीं था, जैसा आहुजा ने दावा किया था। उस समय उसकी कीमत 3 करोड़ रुपये बताई गई थी, लेकिन यह सह-आरोपी संदेश नागे (51) से भी नहीं जुड़ा था, जो एक काल्पनिक नाम के साथ गारंटर के तौर पर जुड़ा था।
नागे को भी उम्रकैद की सजा हुई है। उसके अलावा, चार्टर्ड अकाउंटेंट महेश बोहरा (63) और शांतिलाल चौहान (66) को भी उम्रकैद की सजा हुई है। बोहरा पर 94 लाख का जुर्माना भी लगा है। चौहान को प्रॉपर्टी के सेलर के तौर पर दिखाया गया था। उसने भी जाली दस्तावेज बनाए थे। ये तीनों पहले भी एक अन्य मामले में जोशी के साथ दोषी ठहराए गए थे।
अभियोन पक्ष ने कहा कि बोहरा ने बतौर सीए फर्जी दस्तावेज दिए, जिनमें फाइनैंशल डेटा के बैलेंस शीट का सर्टिफिकेट भी शामिल था। उसमें यह बताया गया था कि आहुजा वित्तीय रूप से मजबूत थे। अभियोजन के मुताबिक, ‘उसने वर्सोवा प्लॉट के लिए टाइटल डीड तैयार किया और बैंक के असिस्टेंट जनरल मैनेजर जोशी के कहने पर उसने फर्जी तरीके से प्रॉपर्टी की वैल्युएशन रिपोर्ट भी तैयार की। उसने कई फर्जी कंपनियों के नाम से सरकारी बैंकों में खाते खुलवाए। उसने फर्जी नामों का इस्तेमाल किया।’
कोर्ट ने कहा कि अगर सभी सातों आरोपी अपने जुर्माने की रकम जमा करते हैं तो उन्हें बैंक ऑफ इंडिया की मंडावी शाखा को बतौर मुआवजा दिया जाएगा।वैसे तो 2002 और 2003 में क्रेडिट फसिलिटी का फायदा उठाया गया लेकिन धोखाधड़ी का पता 2004 में चला। अभियोजन ने कोर्ट को बताया कि आहुजा के पार्टनरशिप वाली एक कंपनी जब एनपीए में तब्दील हुई तो उसकी जांच के बाद धोखाधड़ी का भेद खुला।
अभियोजन के मुताबिक बैंक के असिस्टेंट जनरल मैनेजर जोशी ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि आहुजा के पास अतीत में बिजनस का कोई अनुभव था भी या नहीं। इस मामले में बैंक का एक अन्य कर्मचारी भी आरोपी था लेकिन ट्रायल के दौरान उसकी मौत हो जाने से उसके खिलाफ केस बंद कर दिया था। दोषी इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
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