झारखंड का मिनी शिमला बना सारंडा की गोद में बसा किरीबुरु-मेघाहातुबुर
सिद्धार्थ पांडेय/चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम)। पश्चिमी सिंहभूम जिला के हद में किरीबुरु-मेघाहातुबुरु शहर ने एक बार फिर प्रकृति की अद्वितीय सुंदरता का झरोखा खोल दिया है। वर्षा ऋतू के आगमन की पहली दस्तक के साथ ही यह लौह नगरी कोहरे की घनी चादर में लिपट चुकी है। सुबह की पहली किरण के साथ जब सूरज की रोशनी कोहरे के पर्दे से झांकती है, तब यहां की वादियों में जादू बिखर जाता है।
इस मौसम में यहां का दृश्य न केवल रोमांचित करता है, बल्कि पर्यटकों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं महसूस होता है। लगभग 4,000 फीट की ऊंचाई पर बसे किरीबुरु और मेघाहातुबुरु झारखंड व सीमावर्ती ओडिशा की पहाड़ियों से घिरा क्षेत्र हैं। मानो इन दोनों जुड़वा शहरों को प्राकृतिक सौंदर्य का वरदान प्राप्त है। जब वर्षा का आगमन होता है, तो यहां की घाटियां और जंगल बादलों से बातचीत करने लगते हैं। इस दौरान पूरा क्षेत्र एक प्राकृतिक पेंटिंग जैसा प्रतीत होता है। उपर बादलों में झांकता नीला आकाश, सामने हरे भरे जंगल और सफेद कोहरे का अद्भुत मेल।
सुबह-सुबह जब कोहरे की घनी परत सड़क पर उतरती है और वाहन अपनी हेडलाइट जला कर सावधानी से आगे बढ़ता जाता है, ऐसे में यह दृश्य किसी यूरोपीय हिल स्टेशन का अहसास कराता है। सारंडा की गहराई से उठते कोहरे के गुबार जब किरीबुरु की सड़कों पर तैरते हैं, तो वह पल हर प्रकृति प्रेमी के कैमरे में कैद करने लायक बन जाता है।
सारंडा की घनी जंगल और किरीबुरु की पहाड़ियों में घूमने, ट्रैकिंग करने और प्राकृतिक स्थलों की खोज करने वालों के लिए यह समय स्वर्णिम होता है। फॉग ट्रेल्स, सनराइज़ पॉइंट, मेघा टॉप व्यू जैसे अनौपचारिक नामों से जाने जानेवाले स्थल इस मौसम में पूरी तरह जीवंत हो उठते हैं। यहाँ की हवा में घुली ठंडक और मिट्टी की सोंधी खुशबू हर आगंतुक के दिल में बस जाती है। प्राकृतिक आकर्षण के कारण हर साल हजारों पर्यटक देश के विभिन्न हिस्सों से यहां पहुंचते हैं। आसपास शहरों के होटलों, रिसॉर्ट्स और होम स्टे की बुकिंग इन दिनों हाउस फुल रहती है। स्थानीय रहिवासी पर्यटकों के आगमन से रोजगार पा रहे हैं। गाइडिंग, वाहन सेवा, खानपान और हस्तशिल्प की बिक्री जैसी गतिविधियां क्षेत्र की आर्थिक सेहत को मज़बूती प्रदान कर रही हैं।
हाल के दिनों में किरीबुरु-मेघाहातुबुरु की कोहरे से ढकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर युवा ट्रैवल ब्लॉगर और व्लॉगर्स यहां की सुबह की धुंध, जंगल की हरियाली और ट्रैकिंग के अनुभव साझा कर रहे हैं, जिससे क्षेत्र की प्रसिद्धि राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही है। हालांकि पर्यटक गतिविधियों में बढ़ोतरी उत्साहजनक है, लेकिन इससे पर्यावरण पर असर न पड़े, इसके लिए पर्यावरणीय संतुलन बनाना ज़रूरी है। स्थानीय प्रशासन और वन विभाग द्वारा पर्यटकों से अपील की जाती रही है कि सैलानी सारंडा के जंगलों में प्लास्टिक न फैलाएं और प्राकृतिक संरचनाओं को क्षति न पहुंचाएं।
स्थानीय रहिवासी और पर्यटन प्रेमी इस क्षेत्र को प्यार से झारखंड का मिनी शिमला कहने लगे हैं। यह उपमा केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि यहाँ की जलवायु, ऊंचाई और शांति को देखते हुए भी दी जाती है। खासकर मॉनसून और सर्दियों में यह क्षेत्र देश के किसी भी प्रसिद्ध हिल स्टेशन से कम नहीं लगता। पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए झारखंड सरकार व सारंडा वन प्रमंडल यहां बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत है। पार्किंग जोन, व्यू प्वाइंट, शौचालय, पिकनिक स्पॉट जैसे कार्यों में तेजी लाई जा रही है, ताकि आने वाले पर्यटकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
जिस गोद में यह खूबसूरत शहर बसा है, वह है सारंडा का जंगल। भारत का सबसे बड़ा साल वृक्षों का वन। वन्य जीवों, पक्षियों और अद्भुत जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध यह जंगल पूरे वर्ष अपनी विविधता के लिए पर्यटकों को आमंत्रित करता है। परंतु वर्षा के साथ जब यह हरियाली और कोहरे की चादर ओढ़ता है, तो इसकी सुंदरता दोगुनी हो जाती है।
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