एस. पी. सक्सेना/मुजफ्फरपुर (बिहार)। राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी और भारतीय युवा रचनाकार मंच के संयुक्त तत्वावधान में मुजफ्फरपुर के छोटी सरैयागंज में 23 सितंबर को राष्ट्रकवि दिनकर जयंती एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अध्यक्षता अकादमी के अध्यक्ष देवेंद्र कुमार ने किया।
जानकारी के अनुसार मुजफ्फरपुर के छोटी सरैयागंज स्थित नवयुवक समिति ट्रस्ट भवन सभागार में राष्ट्रकवि दिनकर जयंती समारोह एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ भगवान लाल साहनी, राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी के निदेशक आचार्य चंद्र किशोर पाराशर, देवेंद्र कुमार, शुभ नारायण शुभंकर, सुमन कुमार मिश्रा, डॉक्टर हरीकिशोर प्रसाद सिंह ने सामूहिक रूप से दीप प्रज्वलित कर वैदिक मन्त्रोंच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर अपने उद्घाटन भाषण में डॉ भगवान लाल साहनी ने राष्ट्रकवि दिनकर को हिंदी साहित्य ही नहीं अपितु संपूर्ण भारतीय भाषाओं के साहित्य का शिखर पुरुष बताते हुए कहा कि उनकी रचनाओं में शौर्य और आग है, दूसरी ओर राग और वात्सल्य भी है। ऐसा सामंजस्य बहुत ही कम साहित्यकारों में मिलता है।
डॉ सहनी ने कहा कि दिनकर को राष्ट्रवाद के प्रखर स्वर के रूप में जाना जाता है। उनका वह स्वर सन 1962 में भारत चीन युद्ध के समय भी परशुराम की प्रतीक्षा कृति के रूप में प्रकट हुई थी, जिसे पढ़कर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की रूह कांप गई थी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी के निदेशक आचार्य चंद्र किशोर पाराशर ने कहा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं के माध्यम से जितना समृद्ध बनाया, उसका मूल्यांकन सही रूप में नहीं किया गया है। कहा कि वस्तुतः राष्ट्रकवि दिनकर भारत रत्न के सम्मान के योग्य हैं।
आचार्य पाराशर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि आज तक किसी भी साहित्यकार को भारत रत्न का सम्मान नहीं मिला है। राष्ट्रकवि दिनकर इसके असली हकदार हैं। इसलिए आने वाले वर्ष में कवि दिनकर को भारत रत्न के सम्मान से अलंकृत किया जाना केंद्र सरकार का दायित्व है।
आचार्य पाराशक ने बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आरोप लगाया कि वे साहित्यकारों की उपेक्षा करते हैं और प्रदेश के विद्यालय एवं महाविद्यालय के हिंदी पाठ्यक्रम में दिनकर जैसे मूर्धन्य साहित्यकार को हाशिये पर रखते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश से मांग की कि दिनकर की रचनाओं को विद्यालय से महाविद्यालय तक संपूर्णता में पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
अपने अध्यक्षीय के संबोधन में साहित्यकार देवेंद्र कुमार ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर कालजई रचनाकार हैं, जिनकी रचनाएं युवा पीढ़ी को देशभक्ति और पुरुषार्थ बनने की प्रेरणा देती है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए शुभ नारायण शुभंकर ने कहा कि यदि दिनकर नहीं होते तो भारतीय वाण्गमय का आधुनिक स्वरूप उभर कर सामने नहीं आता।
राष्ट्रकवि दिनकर जयंती समारोह के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका संचालन मुजफ्फरपुर की युवा कवियित्री सविता राज ने की। काव्य पाठ का शुभारंभ युवा कवि उमेश राज ने अपने गीत मैं हूं अकिंचित प्रेम का प्रिया से किया। अभय कुमार शब्द ने आग लिखता हूँ राग लिखता हूँ गीत का सस्वर पाठ कर तालियां बटोरी।
हरीकिशोर प्रसाद सिंह ने बज्जिका भाषा में जय बज्जिका गीत प्रस्तुत किया। सविता राज की गजल एक दिन छोड़कर दुनिया से चले जाना है उपस्थित जनसमूह द्वारा बहुत पसंद किया गया। युवा कवि सुमन कुमार मिश्रा ने जब भी आंखें तैरता है प्याज शीर्षक व्यंग्य की प्रस्तुति की। डॉ मंटू शर्मा ने हे मेरे भारत के पुत्रों शीर्षक कविता का पाठ किया।
चंदन पांडेय ने जरा देखो क्या हुआ मनुष्य कितना बुरा हुआ रचना की प्रस्तुति की। शुभ नारायण शुभंकर ने गीत एक मै सुन रहा हूं दिनकर जी के सम्मान में गीत पढ़कर श्रोताओं को झुमाया।
कवि सम्मेलन में आचार्य चंद्र किशोर पाराशर ने हिंदी गजल तेजाब सावन में बरसता है हमारे गांव में, चांदनी में पांव जलता है हमारे गांव में की प्रस्तुति कर वाहवाही लूटा। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए देवेंद्र कुमार ने दूर देश हटिया विकास भागातील शीर्षक भोजपुरी गीत की प्रस्तुति की। अंत में धन्यवाद ज्ञापन शुभ नारायण शुभंकर ने किया।
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