मेरे चेहरे की मायूसी,
हरदम यही बताती है।
जब भी तन्हा होता हूँ मैं,
याद तेरी सताती है।
हल्की हवाए चलती है जो,
मेरे कानो को कुछ कह जाती है।
हर वक़्त गुज़र जाता है लेकिन,
तेरी याद दिलो मे रह जाती है।
अकेला चलना तो राहो पर,
बडा ही मुश्किल लगता,
फिर भी मंज़िल को पाकर के,
कुछ खोया-खोया सा लगता है।
मुझे बुलन्दी मिलकर भी,
कुछ ऐसा-वैसा लगता!
अब तो मुझको अर्ष भी यारों,
फर्श के जैसा लगता है!
अब तो मेरी खुशिया भी,
मुझको ग़म के जैसी लगती है!
बस तेरी मुस्कान ही मुझको,
मरहम के जैसी लगती है!
मेरे चेहरे की मायूसी,
हरदम यही बताती है।
जब भी तन्हा होता हु मैं,
याद तेरी सताती है।
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