मुंबई पुलिस की नजर होगी अपराधियों की ‘नजरों’ पर

मुंबई। पूरी दुनिया में जब भी किसी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है, उसके फिंगर प्रिंट्स जरूर लिए जाते हैं। अब मुंबई पुलिस फिंगर प्रिंट्स के साथ आरोपियों का रेटिना भी स्कैन कर रही है। वेस्टर्न रीजन के अडिशनल सीपी मनोज कुमार शर्मा और जोन-9 के डीसीपी परमजीत सिंह दाहिया ने इस खबर की पुष्टि की है। बहुत जल्द मुंबई क्राइम ब्रांच में भी रेटिना स्कैन की प्रकिया चालू हो जाएगी।

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि आने वाले सालों में आरोपियों के लिए अपनी शिनाख्त छिपाना और देश से भागना असंभव हो जाएगा। इस अधिकारी के अनुसार, यदि अंडरवर्ल्ड का इतिहास पलटकर देखें, तो कई ऐसे सरगनाओं के किस्से सामने आते हैं, जब इन्होंने अपनी प्लास्टिक सर्जरी करवा ली। उसके बाद उन्होंने नाम बदल दिए या अलग-अलग नाम से पासपोर्ट बनवा लिए।

आने वाले वक्त में ऐसा कोई सपने में भी नहीं सोच पाएगा, क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी से आरोपी का चेहरा बदल सकता है पर उसका रेटिना नहीं। गिरफ्तार होने के बाद आरोपी के स्कैन रेटिना को सिस्टम में अपलोड कर दिया जाएगा। उसके बाद जब कभी भी आरोपी पकड़ा जाएगा, उसके रेटिना डिटेल को जैसे ही कंप्यूटर में डाला जाएगा, पुलिस को पता चल जाएगा कि उसे इससे पहले कहां-कहां पकड़ा गया था?

आरोपी को सबसे ज्यादा मुश्किल फर्जी पासपोर्ट बनवाने में होगी। पासपोर्ट के इच्छुक व्यक्ति की दो प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। पहले उसे पासपोर्ट ऑफिस जाना होता है। फिर उसका पुलिस वेरिफिकेशन होता है। पुलिस की हां के बाद ही उसे पासपोर्ट मिलता है। पुलिस वेरिफिकेशन में मूलत: दो बातें चेक की जाती हैं। पहला आवेदक का अड्रेस प्रूफ। दूसरा, क्या उसके खिलाफ आपराधिक मामले तो दर्ज नहीं हैं? कई बार आवेदक अपने खिलाफ पहले दर्ज हुईं एफआईआर की बात छिपा जाता है।

रेटिना की डीटेल सिस्टम में आते ही आरोपी का हर झूठ पुलिस को कंप्यूटर में ही पता चल जाएगा। इस अधिकारी का कहना है कि अभी तक की प्रक्रिया में किसी आरोपी का फिंगर प्रिंटस संबंधित पुलिस स्टेशन के अलावा मोडस ऑपरेंडी सेल को भी भेजा जाता है। जब कोई आरोपी पकड़ा जाता है, तो पुलिस उसके फिंगर प्रिंट्स लेकर मोडस ऑपरेंडी सेल को लेटर भेजती है कि बताओ कि यह पहले क्या कहीं पकड़ा गया था। मोडस ऑपरेंडी सेल से जवाब आने में कई बार बहुत देर हो जाती है, क्योंकि उसे पूरे रेकॉर्ड चेक करने होते हैं। जब आरोपी के रेटिना की डिटेल सिस्टम में स्कैन होकर चली जाएगी, तो पुलिस को डिटेल मिलने में महज चंद सेकेंड लगेंगे।

खास बात यह है कि फिंगर प्रिंट्स की प्रक्रिया में भी बदलाव किया गया है। इस अधिकारी के अनुसार, अभी तक फिंगर- प्रिंट्स कागज पर लिए जाते रहे हैं, लेकिन अब उन्हें मशीन पर लिया जा रहा है, इसलिए अभी काफी हद तक फिंगर प्रिंट्स का डिजिटलीकरण हो रहा है। जो पहले कागज पर फिंगर प्रिंट्स लिए जा चुके हैं, उनकी भी एक खास सॉफ्टवेयर से डिजिटल फार्मेट में लाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसमें काफी वक्त लगेगा।

मुंबई पुलिस सूत्रों का कहना है कि आरोपी के रेटिना को स्कैन की प्रक्रिया अभी देश के बहुत ही कम शहरों में है। जब देश का हर पुलिस स्टेशन इसे लागू कर देगा, तब आरोपी किसी भी पुराने केस के मुकदमे से बच नहीं पाएगा। अभी कई बार ऐसा होता है कि आरोपी किसी केस में गिरफ्तारी के बाद जब जमानत पर आता है, तो उस केस में मुकदमे के दौरान कोर्ट में आता ही नहीं। इसलिए कई बार आरोपियों के 20-20 साल तक मुकदमे से ‘फरार’ रहने की खबरें आती हैं, भले ही इस दौरान वह देश में अन्य वारदातों में गिरफ्तार हुआ हो।

एक अधिकारी के अनुसार, रेटिना की डिटेल को बाद में सीसीटीएनएस यानी क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क ऐंड सिस्टम से जोड़ दिया जाएगा। उस स्थिति में किसी जांच एजेंसी को किसी दूसरे राज्य की एजेंसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। अपने आप ही एजेंसियों के पास सीसीटीएनएस से अलर्ट आता रहेगा। वैसे आधार कार्ड बनवाते वक्त हर व्यक्ति के फिंगर प्रिंट्स के साथ उसकी आंखों का रेटिना भी स्कैन किया जाता है। लेकिन आधार कानून में आधार एजेंसी को पुलिस को किसी की डिटेल देने की इजाजत नहीं है। इसलिए जांच एजेंसियां अपराधियों का अलग से अपना रेटिना बैंक बना रही हैं।

एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, दुनिया के कई एयरपोर्ट रेटिना सिस्टम से जुड़े हुए हैं। भविष्य में संभव है कि इंटरपोल के जरिए किसी आरोपी की रेटिना डिटेल ही इन एयरपोर्ट्स को भेज दी जाए और आरोपी को फ्लाइट्स में बैठने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाए। इस अधिकारी का कहना है कि जांच एजेंसियों के पास यदि बड़े आरोपियों का पहले रेटिना बैंक होता, तो दाऊद, छोटा राजन जैसे सरगना कभी विदेश भाग ही नहीं पाते।

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