अध्यात्म से ही जीवन की प्रेरणा मिलती है-हर्षिता

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। शरीर में हीं चारो वर्ण स्थापित है। कर्म के आधार पर ही समाज में वर्ण की व्यवस्था है। अध्यात्म से ही जीवन की प्रेरणा मिलती है। उक्त बातें उत्तर प्रदेश के हल्द्वानी से पधारी कथावाचिका बाल विदुषी हर्षिता किशोरी ने 4 मई को एक भेंट में कही।

बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह स्थित दुर्गा मंडप में बीते 29 अप्रैल से 6 मई तक रामचरित् मानस नवाहन परायण श्रीमद् भागवत कथा की सरस प्रवक्ता परमपूज्य बाल विदुषी हर्षिता किशोरी श्रीधाम द्वारा लगातार प्रवचन के माध्यम से श्रद्धालुओं में अध्यात्म की ज्योत प्रज्वलित कर रही है।

हर्षिता किशोरी ने 4 मई को पत्रकारों से भेंट कहा कि कोई छोटा बड़ा नहीं होता। सभी अपने कर्म के चलते ही छोटा बड़ा होता है। उन्होंने कहा कि क्रोध मानव विवेक का क्षरण करता है। श्रीराम भक्त भीलनी सबरी को भी भगवान श्रीराम ने स्वीकार किया है। उन्होंने सवरी को माता का स्थान दिया है। आज भी आदिवासी समाज में रामनामी है जो स्वयं को माता सवरी के वंशज कहलाते है।

हर्षिता किशोरी ने कहा कि हम कई दुर्भावनाओं को मिटा नहीं पा रहे है। इससे मानव समाज पतन की ओर जा रहा है। समाज में वर्ण व्यवस्था को जायज ठहराते हुए उन्होंने कहा कि चारो वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) हमारे शारीरिक स्थिति में उपलब्ध है। मस्तिष्क ब्राह्मणत्व तो भुजा शक्ति क्षत्रिय, जबकि उदर वैश्यता तो पख शूद्रता का परिचायक है।

कहा कि कर्म के आधार पर ही वर्ण व्यवस्था कायम की गयी है। उन्होंने वंशागत वर्ण व्यवस्था को जायज कहा। वहीं गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस धर्म ग्रंथ में उद्धरित ढोल गवांर शूद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी के बावत उन्होंने कहा कि समय के अनुसार तारणा आवश्यक है।

हर्षिता किशोरी के अनुसार वे पांच वर्ष की अल्पायु से श्रीराम कथा में लगे हैं। वे पिछले 15 वर्ष से भागवत कथा कर रही है। कहा कि हमारा पूरा परिवार सरकारी मुलाजिम है। हमारे गुरु दिनेशाचार्य हरहरानंद उनके गुरु है। पिता के प्रेरणा से हीं वे भगवत कथा तथा श्रीराम कथा का बागडोर संभालकर पूरे देश में धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही है।

कथा विदुषी के अनुसार उनके दादा ग्वालियर में पुलिस विभाग में वरीय इस्पेक्टर सेवारत थे। स्वयं उन्होंने बायो में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। इसके अलावा संस्कृत विषय से शास्त्रीय करने के बाद संपूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से आचार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि आज भागवत कथा करने में प्रेरणा स्रोत हमारी माता पिता एवं परिवारजनों का पुरा सहयोग मिल रहा है।

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