मुंबई। किसी शायर ने क्या खूब कहा है ”दी वर्ल्ड इज स्टेज ! वी आर एक्टर एंड गॉड इज डायरेक्टर” इस शेर का मतलब साफ है कि दुनिया महज एक मंच है और दुनिया के सभी लोग अदाकारों की तरह नाटक कर रहे हैं जबकि इसका निर्देशक खुदा ही है। जैसा की कठपुतली का खेल को आप को बखूबी याद होगा।
बहरहाल कुदरत के नजदीक इंसान महज एक मिट्टी का पुतला है। वो जब चाहे जैसे चाहे, मोड़ और तोड़ सकता है।
इसी यकीदे के साथ मैं एक एैसे इंसान का जिक्र कर रहा हुं, जो मेरे लिए निहायत ही नेक, इमानदार और खुद्दार हैं। खेल-खेल में मैं कभी उनके साथ हंसी मजाक भी करता था। वो कोई और नहीं बल्कि हमारे बहनोई हाजी संजर अली हैं। संजर अली की शादी 10 जून 1972 में शहनाज बेगम से हुई थी। इस रिश्ते की डोर महरूमा हाजी अनिसुन निसा ने बांधा था। करीब चार दशक से चल रहे इस रिश्ते की डोर इतनी मजबूत है, कि वक़्त का पता ही नहीं चला, इतने साल कैसे बीत गए।
इस दौरान वक़्त पंख लगाए उड़ता रहा और अपने बेगाने सभी अपने रिज़्क की तलाश में देश और विदेशों में नौकरी या कारोबार के सिलसिले में फैल गये। हलांकि इस दरमियान जरूरत के तहत लगभग सभी एक दूसरे के साथ राब्ता कायम करते रहे हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। इस लिहाज से तकरीबन सभी एक दूसरे के दुख -सुख के साथी रहे हैं।
90 के दशक में संजर अली भी नौकरी के सिलसिले में सऊदी अरब में गए, लंबे अर्से से सऊदी में रहने का फायदा उठाते हुए उन्होंने हज के फरायज को पूरा भी कर लिया। यानी इस्लाम के अहम फरायज को उन्होंने नौकरी के दौरान ही अंजाम दिया। इस तरह वो संजर अली से हाजी संजर अली हो गए। लेकिन उनके स्वाभाव में कहीं से कोई फर्क या कमी नहीं आई। वो जैसे थे आज भी वैसे ही हैं। यानी खुद्दारी की मिसाल संजर अली हैं। हां इस दरमियान इस खानदान के कई लोगों में बड़ा बदलाव भी देखा गया। लेकिन संजर अली नहीं बदले!
करीब एक साल पहले हाजी संजर अली की तबीयत खराब होने की बातें सामने आयी थी, हलांकि उन्होंने इस बात की चर्चा अपने बेगानों से नहीं की, बल्कि अपनी बीमारी को दबाते हुए वो सऊदी अरब में ही अपनी नौकरी पर तैनात रहे। इससे उनकी बीमारी में इजाफा होता चला गया और अब उस बीमारी ने ट्यूमर यानी कैंसर की शक्ल इख्तेयार कर लिया है। इससे उनकी तकलीफों में काफी इजाफा भी हुआ है।
बावजूद इसके उन्होंने अपनी बीमारी का इज़हार किसी से नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ की बीमारी बढ़ती गई और वे कैंसर के मरीज हो गये। कहते हैं कि इश्क, मुश्क, और बीमारी छिपाये नहीं छिपती! कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ और धीरे -धीरे न सिर्फ उनके घर वालों को बल्कि उनकी बीमारी की जानकारी तकरीबन खानदान के सभी लोगों को कमो बेस हो गई। बीमारी की बात सामने आने के बाद हर तरफ से लोग उनका इलाज कराने की तैयारियों में जुट गए।
इस सिलसिले में उनकी बीमारी की जांच पहले कोलकाता में कराया गया। कोलकाता के डॉक्टरों ने दबी जुबान में कैंसर होने की रिपोर्ट पेश की। लेकिन मुतमईन नहीं होने की वजह से उन्हें मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर में लाया गया। यहां 20 फरवरी 2012 से संजर अली का मेडिकल जांच शुरू हुआ। हलांकि यहां के डॉक्टरों ने जांच पूरा होने से पहले ही जबड़े में ट्यूमर होने की बात कही थी। आखिर में जांच पूरा होने पर उनके जबड़े में ट्यूमर (कैंसर) होने की बात साफ हो गई।
इसके बाद मुंबई के प्रिंसिपल हॉस्पिटल में भी जांच काराया गया। यहां के अनुभावी डॉक्टर सुलतान प्रधान ने मरीज को देखते ही यह कह दिया कि जितनी जल्द हो सके ऑपरेशन करा लेने मे भलाई है। डॉ. प्रधान के सुझाव (मश्वरा) के बाद हम लोगों ने उनके जांच का दायरा बढ़ाते हुए उनको इस बीमारी से छुटकारा दिलाने के लिए और भी कई डॉक्टरों से सलाह मश्वरा किया गया। इस बीच खानदान के लोगों में जितनी मूंह उतनी बातों का सिलसिला चल पड़ा।
इस दौरान यह भी देखा गया कि राय-मश्वरा देनेवालों ने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी। कहने का मतलब साफ है कि मुफ्त में मश्वरा देने वालों की लंबी लाइन थी। लेकिन मश्वरा देने वालों ने कभी अपना वक़्त या माली मदद देने की पेशकश नहीं की। उन लोगों ने यह नहीं सोचा की इनके इलाज पर क्या खर्च आने वाला है और इसे कैसे पूरा किया जाएगा। इस दौरान सिर्फ बड़ी -बड़ी बातों का दौर चलता रहा। तब तक तीसरी बार बाई एफ सी जांच की रिपोर्ट ने साफ कर दिया की जितनी जल्दी हो सके उनका ऑपरेशन हो जाना चाहिए।
बता दें कि टाटा मेमोरीयल सेंटर, प्रिंसिपल खान हॉस्पिटल से बेहतर फोर्टिस हॉस्पिटल में ट्यूमर (कैंसर) स्पेशलिस्ट डॉक्टर शिषिर शेट्टी से भी हाजी संजर अली को दिखाया गया, फाइल और मरीज को देखते ही उन्होंने चैलेंजीन वाले अंदाज में कहा कि जितनी जल्द हो सके इनके ऑपरेशन की तैयारी करें। उनकी बातों के बाद हम सभी ने यह तय किया की कोई कुछ भी बोले अब हाजी साहब का इलाज इसी अस्पताल में कराना है। इसके लिए बाबू फारूक, बाबू इलियास, अब्दुल सलाम, नौशाद अली वगैरा सामने आए।
हालांकि मैंने फोर्टिस हॉस्पिटल में इलाज कराने के लिए पहले से ही तय कर लिया था। इस बारे में मेरी और इलियास व फारूक से हर रोज सुबह शाम बातें होती रहती थी। बहरहाल मश्वरे के मुताबिक मैंने हाजी संजर अली को नवी मुंबई के फोर्टिस हास्पिटल में 13 मार्च 2012 को भर्ती कराया गया। इसके बाद फाइनल जांच के बाद उनका ऑपरेशन इसी अस्पताल में 19 मार्च 2012 को पूरी कामयाबी के साथ हो गया। इसके बाद उन्हें करीब दस दिनों तक आईसीयू और उसके बाद दूसरे वार्ड में रखा गया। इस तरह उन्हें 4 अप्रैल 2012 को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। डिस्चार्ज होने के बाद हाजी संजर अली को आरसीएफ कालोनी के यूथ कॉउंसिल में रहने का इंतजाम किया गया है।
तकरीबन एक डेढ़ माह के इस सफर में काफी उतार चढ़ाव आए कोई कुछ कहता था तो कोई कुछ, यानी जितनी मुंह उतनी बातों का सिलसिला बदस्तुर जारी रहा। सभी बातों को छोड़ कर इलाज को मुकम्मल कराने में लगे लोग अपने हिसाब से लोगों की बातों की परवाह किए बिना बेहतर इलाज में लगे रहे। इसका नतीजा अब देखने को मिल रहा है। हाजी साहब पहले से काफी बेहतर हैं और इंशाअल्लाह दिनो दिन उनकी सेहत में सुधार आता जा रहा है। ऑपरेशन के दिन से लेकर अब तक की ताजा तस्वीर आप इस लेख के साथ देख सकते हैं।
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