इतिहास के पन्नों का सदैव गौरव बना रहेगा देवेन्द्र माझी का नाम-लक्ष्मी सुरेन

सिद्धार्थ पांडेय/चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम)। पश्चिम सिंहभूम जिला के हद में गोइलकेरा में शहादत दिवस कार्यक्रम में शिरकत कर लौटी जिला परिषद अध्यक्ष लक्ष्मी सूरेन ने 17 अक्टूबर को एक भेंट में शहीद देवेन्द्र माझी को इतिहास पुरुष कहा।

जिप अध्यक्षा सुरेन ने कहा कि शहीद देवेन्द्र माझी सदैव अमर रहेंगे। उन्होंने बताया कि जंगल आंदोलनों की श्रृंखला में कोल्हान-पोड़ाहाट का जंगल आंदोलन तक ऐतिहासिक परिघटना है। जब-जब जंगल आन्दोलन की बात होगी, तब-तब देवेन्द्र माझी का नाम इतिहास के पन्नों का सदैव गौरव बना रहेगा।

कहा कि एक गरीब आदिवासी किसान परिवार में 15 सितम्बर 1947 को देवेन्द्र माझी ने जन्म लिया था। तीन भाइयों एवं छह बहनों में सबसे छोटे देवेन्द्र के सर से पांच वर्ष की बाल्यावस्था में ही पिता जंगत माझी का साया उठ गया था। उनके भाई कालीदास माझी भी एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी थे, एक दुर्घटना में चल बसे। मां कुनी माझी के कमजोर कंधों पर परिवार के भरण-पोषण का भार आ गया।

विषम परिस्थितियों ने बालक देवेन्द्र माझी को साहसी, जुझारू एवं विद्रोही स्वभाव का बना दिया था। जिप अध्यक्षा सूरेन ने बताया कि जब दिवंगत माझी आठवीं कक्षा के विद्यार्थी थे, एक शिक्षक द्वारा कक्षा में आदिवासियों को अपशब्द कहे जाने पर इन्होंने तीव्र विरोध किया। बाद में प्रधानाध्यापक के समक्ष शिक्षक को गलती भी स्वीकारनी पड़ी थी।

व्यवस्था की असमानता से क्षुब्ध होकर देवेन्द्र माझी हायर सेकेन्ड्री की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे पढ़ने का इरादा त्यागते हुए सामाजिक समानता की प्रतिस्थापना हेतु संगठन बनाकर साथियों को गोलबन्द करने लगे। कोल्हान, पोड़ाहाट के चप्पे-चप्पे पर पैदल घूमते हुए उन्होंने आदिवासी समाज को जगाने का काम किया। उन्हें क्रांति के लिए उद्वेलित किया।

सर्वप्रथम 1969 ई. में बीड़ी श्रमिकों को संगठित कर कंपनियों के विरुद्ध आन्दोलन का सूत्रपात किया। जिसकी प्रतिक्रिया में बीड़ी कंपनियों के दबाव पर दिवंगत माझी को वर्ष 1971 में बांझीकुसुम गांव की घेरेबन्दी कर गिरफ्तार किया गया था। वे सच में इतिहास पुरुष थे। हम सब को उनके बताये मार्ग पर चलने की जरूरत है।

 

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