एन. के. सिंह/फुसरो (बोकारो)। झारखंड में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर राज्यभर में सरगर्मी तेज है। पार्टियां पूरी रौ में दिख रही हैं। जयराम महतो के नेतृत्व वाली पार्टी ने तो कुछ सीटों पर उम्मीदवारों की भी घोषणा कर दी है। वहीं, भाजपा तथा कांग्रेस ने भी रायशुमारी करा ली है। अन्य पार्टियां भी अपने स्तर से विभिन्न सीटों पर उम्मीदवारों का आकलन कर रही है।
इधर, बीजेपी को लेकर चर्चा यह तेज है कि पार्टी विद ए डिफरेेंस अपने पूर्व सांसदों को विधानसभा के दंगल में उतार सकती है। जिनके नाम सियासी हलकों में तैर रहा है। इनमे धनबाद के पूर्व सांसद पीएन सिंह, गिरिडीह के पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय, कोडरमा के पूर्व सांसद रवींद्र राय, पूर्वी सिंहभूम के पूर्व सांसद दिनेशानंद गोस्वानी, दुमका के पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व राज्यसभा सांसद समीर उरांव के नाम प्रमुख है।
पूर्व सासंदों को टिकट देने की चर्चा के पीछे का तर्क असंतोष को खत्म करने, जातीय समीकरण को साधने और चुनावी मेढकों की उछल-कूद को शांत करना बताया जा रहा है। राजनीतिक पंडित बताते हैं कि, यदि भाजपा इस तरह का कोई फैसला लेती है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
कारण, कुछ महीने पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कई केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को मैदान में उतारा था। पार्टी ने 21 सांसदों को टिकट दिया था। इनमें से 12 चुनाव जीत गए, जबकि 9 सांसदों को हार का सामना करना पड़ा था।
दूसरी ओर चर्चा यह भी है कि यदि भाजपा शीर्ष नेतृत्व उपरोक्त पूर्व सांसदों के प्रति विश्वास व्यक्त कर विधानसभा भेजने का सपना पाले है तो पीएम नरेंद्र मोदी का लोकल फॉर भोकल और आधी आबादी के प्रतिनिधित्व के नारो के तहत खासकर महिला दावेदारों की मानसिकता पर किस प्रकार का असर डालेगा, यह संशय पैदा कर रहा है।
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