त्याग की प्रतिमूर्ति शिक्षाविद स्व.जानकी देवी की पुण्यतिथि पर विशेष

अमित कुमार/मुजफ्फरपुर (बिहार)। कभी-कभी ऐसा होता है, जब आप किसी व्यक्तित्व के बारे में कुछ लिखना चाहते हैं तो शब्दों का अभाव सा महसूस होता है।

स्व.जानकी देवी की पुण्यतिथि के अवसर पर सीमित शब्दों में उन्हें याद करने एवं उनके विषय में कुछ लिखते हुए आज मुझे भी शब्दों की कमी महसूस हो रही है। वैसे अब तो सिर्फ उनकी कहानी रह गई, वो तो स्मृतिशेष हो गए।

स्व.जानकी देवी को स्मरण करते हुए उनके चरणों मे नमन् करता हूँ। जानकी देवी बचपन से ही धार्मिक स्वभाव की थी। उनका यह स्वभाव जीवन पर्यंत बना रहा। वे एक अच्छी शिक्षिका थी, क्योंकि वे उससे भी अच्छी शिक्षार्थी व विद्यार्थी थी। साथ ही साथ कुशल गृहिणी भी। ईश्वर पर उनकी गहरी आस्था थी।

वह हिंदू रीति-रिवाज और पर्व को बहुत मन से मनाती थी। वह पर्व पर उपवास किया करती थी। यह उनके व्यक्तित्व की विशालता थी जो उनके दिनचर्या में शामिल था।

अब स्व जानकी देवी के जीवन के कुछ विशेष पहलुओं से अवगत कराता हूँ। अव्वल शिक्षक जिसकी कलम और वाणी में साक्षात् सरस्वती का वास था। उनके बारे में जितना भी लिखूंगा कम होगा। घर में जिस अनुशासन को जानकी देवी ने सीखाया वह आज भी देखने को मिल रहा हैं।

ऐसे सादगी की प्रतिमूर्ति स्व.जानकी देवी ज्यादातर समय चुप ही रहती थी। जरूरत पड़ने पर ही बोलती थी। उनके स्वभाव का हर लोग तारीफ करते हैं। उन्हें आज तक किसी ने किसी पर भी गुस्सा करते हुए नहीं देखा। उनके चेहरे पर सदा मुस्कान बनी रहती।

जो बातें मन में होतीं, वही बाहर भी होतीं। अपने इन्हीं गुणों के कारण जानकी देवी हर किसी के दिलों में बस गई। क्या घर, क्या बाहर। हर उम्र के लोग उन्हें माय के ही नाम से पुकारते थे।

स्व.जानकी देवी का जन्म मुजफ्फरपुर जिला (Muzaffarpur District) के हद में काटी प्रखंड के पानापुर ग्राम मे एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार मे हुआ था। उनके पिता का नाम स्व.योगेंद्र प्रसाद सिंह था। वे मुज़फ़्फ़रपुर जिले के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। साथ ही साथ इंदिरा ग़ांधी सरकार में उन्हें ताम्र पत्र भी मिला था।

जानकी देवी शुरू से ही मेहनती और लगनशील थी। उनका स्वभाव सौम्य, मृदुभाषी, अभिमान विहीन रहा। स्वतंत्रता सेनानी परिवार से होने की वजह से वह समाज में अपने परिवार की जिम्मेदारी और समाज में अपनी जिम्मेवारी को बखूबी समझती थी।

स्व.जानकी देवी का प्रारंभिक शिक्षा पानापुर मध्य विद्यालय में हुआ था। उसके बाद उनके पिता गाँव में ही आगे की शिक्षा दीक्षा करने को कह रहे थे, लेकिन जानकी देवी के साथ पढ़ने वाले लोग बाहर पढ़ने को निकल गए, लेकिन स्व. जानकी देवी पिता के कारण कहीं नहीं जा पा रही थी।

उनके पिता के फूफा अशर्फी बाबू के प्रयास से लगभग 1956 में उनका दाखिला शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय लखीसराय में हुआ। जिस कारण स्व. जानकी देवी शिक्षक प्रक्षिक्षण प्राप्त कर पाई। ट्रेनिंग के उपरांत लगभग 45 रुपया महीना पर ग्राम रकसा के प्राइमरी विद्यालय में उनका चयन हुआ, लेकिन पारिवारिक समस्या के कारण कुछ दिन बाद ही उनको यह नौकरी छोड़नी पड़ी।

शिक्षा के बाद पिता जल्द शादी करना चाहते थे। वर्ष 1958 में वैशाली जिले के बेलबर ग्राम में स्व.जानकी देवी की शादी शिक्षाविद स्व. हरेंद्र सिंह से हुई, जो राजकीयकृत उच्च विधालय बेलबर में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। शादी के उपरांत परिवार का सहयोग और साहस मिला।

फिर 1962 ई में उनका चयन बेलबर मिडिल स्कूल में हुआ और एक नया अध्याय जीवन में शुरू हुआ। कुछ समय बाद उनका स्थानांतरण बगल के ही स्कूल बेलबर चौधरी टोला में सहायक शिक्षक के रूप में हुआ।

कुछ समय बाद परिसीमन बदल जाने के कारण वो स्कूल मुज़फ़्फ़रपुर जिला में चला गया। उसके बाद जानकी देवी उसी विद्यालय से प्रधानाचार्य के रूप में सेवा देने के उपरांत वर्ष 1997 में अवकाश प्राप्त हो गई।

एक शिक्षक के रूप में उनका सफर मर्यादित और अनुशासीत रहा। स्व.जानकी देवी दो भाई और एक बहन हैं। उनके दोनों भाई ने प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया। साथ ही बहन ने भी एक शिक्षक के रूप में कार्य किया। स्व.जानकी देवी का उनका अपने कार्य के प्रति जबाबदेही समय की पाबंदी आज सभी के लिये अनुकरणीय है।

यूँ तो स्व.जानकी देवी का व्यक्तित्व बहुत ही विराट था। ज्ञान, सहनशीलता, अनुशासन, त्याग, प्रकृति से प्रेम तथा निश्चल स्वभाव जरूरमंदो को मदद का भाव, ये सब कुछ ऐसे पहलु थे उनके जीवन के जो उनको सरल, स्वाभाविक इंसान का स्वरुप प्रदान करता था। सभी लोग उनके स्व्भाव के आधार पर उनसे बहुत जल्द करीबी रिश्ता बना लिया करते थे।

जीवन में कड़ी मेहनत और समय का महत्व् क्या होता है उनसे समझा जा सकता था। जानकी देवी अपने पीछे चार पुत्र और एक पुत्री छोड़ गई, जो अपने माता पिता के कार्यो को आगे बढ़ा रहे है। सभी एक आदर्श शिक्षक के रूप में बिहार सरकार में अपनी सेवा दे रहे हैं।

आज भी कुछ बातों पर उनकी ही याद आती है। उनको ही याद करना चाहता भी हूँ। मेरे लिए तो न सिर्फ वो शक्ति थी, बल्कि आदर्श, प्रेरणापुंज, मानसिक और वैचारिक सरपरस्त थी। उनके द्वारा कही गई कुछ अनछुई बाते ही मेरे सपनों को झकझोर देता है।

मेरी शक्ति, साहस, उत्साह, धैर्य या कहे तो जोश सबकुछ स्व.जानकी देवी ही थी। कमज़ोर तो नहीं पड़ता हूं, लेकिन उनके निश्छल स्नेह, प्रेरणादायी प्यार की कमी हर क्षण महसूस होती है। जब भी किसी अपने को खो देने वालों को ढांढस बंधाने जाता था, तो उनकी यादे मुझे भावुक कर देती है।

तब मैं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता। उनका यह बालक आज फिर अपने सिर पर आपके स्नेहरूपी हाथ के आशीष की रिक्तता की अनुभूति से खुद को अधूरा महसूस करता है। इस खालीपन को कोई पूरा नहीं कर सकता। उनको उनका पूरा परिवार और समाज उनके चरणों मे कोटि-कोटि प्रणाम करता है। साथ ही उन्हें स्मरण करता हैं।

सरोवर जैसी शीतलता एवं विपरीत परिस्थितियों में भी कमल जैसा खिला रहने वाला चेहरा सभी के चहेते जिस मिट्टी, जिस शहर में उन्होंने अपनी एक खूबसूरत दुनिया रची है, उसी शहर में वह 7 मई 2015 को पंचतत्व में विलीन हो गई। आज लोगों को उनके जीवन-आदर्श से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

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