“माँ”

जब बिन बोले माँ से,
कही देर तलक रह जाते है!
जब अपने मित्रो के संग कही,
मस्ती मे खो जाते है!
जब घर पहुचने को हमे,
जरा देरी से हो जाती है!
तब मेरी माँ मुझे देखने को,
घर की खिड़की पर आ जाती है!!
जब दूर-दूर न दिखने पर,
उनका दिल मचलता है!
मेरी चिंता मे माँ दिल,
ज़रा और तड़पने लगता है!
जब शोर-शराबे वाली गलिया,
उनको सुनी-सुनी सी लगती है!
तब माँ मुझे ढूंढने को,
पनघट तक आ जाती है!!
जब दूर कही से उनको मैं,
आता दिखाई देता हूँ!
पहले डॉट सुनाती है,
फिर समझती है!
इतने सारे गुस्से ने भी,
एक एहसास दिखाई देता है!
हर डॉट मे माँ के मेरे,
मुझको प्यार दिखाई देता है!!
ज़ैद बलियावी

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