चीन के “अश्वमेघ यज्ञ” का घोड़ा रोकेगा भारत

संतोष कुमार झा/ मुजफ्फरपुर (बिहार)। चीन अग्रेसिव क्यों दिख रहा है? नेपाल और पाकिस्तान चीनी लाइन पर क्यों चल रहे हैं? भारत क्या कर रहा है……या कुछ कर भी रहा है क्या? भारत-चीन के बीच सारा एक्शन लद्दाख/सिक्किम में ही चल रहा है क्या…पूरे दिन 24 घंटे खबरें दिखाने वाले तमाम ख़बरिया चेनल्स मिलकर भी दो हफ़्तों से इस मुद्दे पर कोई क्लैरिटी नहीं दे पाए हैं।हमारे मीडिया की चर्चाओं में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री का समोसा बनाना ही खबर बनता है…….और एक औपचारिक खबर बन जाती है कि भारत ऑस्ट्रेलिया ने आपसी सहयोग बढ़ाने पर बात की। अभी हमारे आस पास जो चल रहा है उसे समझने के लिए हमंको समझना होगा “QUAD” को।”QUAD”‘ है भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का चतुष्कोणीय गठबंधन।

दरअसल कहानी की शुरुआत हुई थी एक दशक पहले जब इन्ही चार देशों के संगठन को बनाने की बात चली थी। उस वक़्त कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया को चीन के दवाब में अपने कदम वापस लेने पड़े थे। हमारे यहां भी डॉ मनमनोहन सिंह जैसे सुपर स्ट्रांग प्रधानमंत्री थे जो चीन के साथ साझा विजन के ही पक्षधर थे।बात आयी गयी हो गयी। चीन अपने “OROB” (वन रोड वन बेल्ट) प्रोजेक्ट के सहारे अपने अश्वमेघ यज्ञ पर निर्बाध तरीके से दुनिया जीतने पर निकला जा रहा था। लेकिन अमेरिका और जापान के विजनरी लीडर्स समझ रहे थे कि ये मामला भविष्य में बड़ा खतरा बनके उभरने वाला है।

जापान के प्रधानमंत्री ने 2017 में एक बार फिर हिम्मत करके चारों देश को एक साथ लाने का फिर से प्रस्ताव रखा। इस बार भारत में नरेंद्र मोदी देश के पीएम थे। अमेरिका में डेयरिंग ट्रम्प और ऑस्ट्रेलिया भी मन बना चुका था कि इंडो पैसफिक रीजन में चीन को फ्री पास नहीं दिया जा सकता। जिस “QUAD” को एक दशक पहले खड़ा हो जाना चाहिए था वो 2017 में हकीकत में बदलने लगा।

चतुष्कोणीय गठबंधन बनने का प्रमुख कारण चीन द्वारा ‘वन बेल्ट वन रोड’ (OROB) है। जिसका उद्देश्य चीन डोमिनेटेड दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक मंच का निर्माण करना है।जिससे चीन ने एक ग्लोबल सुपर पावर बनने का सपना देखा था।चीन के साथ दिक्कत ये है कि उसका जो तानाशाही रवैया अपने देश के अंदरूनी मुद्दों पर चलता है वो उसे पूरी दुनिया में भी चलाना चाहता है। यही वजह है कि चीन अपनी महत्त्वाकांक्षा में अन्य देशों की संप्रभुता का ख्याल नहीं करता। वही दूसरी तरफ चीन को रोकने में सक्षम किसी शक्ति का अभाव भी चीन को ओवर कॉन्फिडेंस से भरे जा रहा था।

“QUAD” ग्रुप के बनने के बाद ऐसा नहीं है कि चीन कमजोर पड़ गया। वह एक आर्थिक महशक्ति है यह एक सच्चाई है। वह ताकतवर है, यह भी सच्चाई है। जब हमारी सरकारें सोई हुईं थीं और भ्रष्टाचार में लिप्त थी,तब चीन स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स के माध्यम से हमको घेर ही चुका था। वर्तमान में देखे तो चीन का अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा बिना किसी चेलेंज के हमारे यहां से सफलतापूर्वक निकल चुका था और हम और आप उस समय आईपीएल और बॉलीवुड के कॉकटेल में और पाकिस्तानी मिमिक्री आर्टिस्टों की कॉमेडी, गायकों की ग़ज़लों को रियल्टी टीवी पर देखने में व्यस्त थे। पूरा तंत्र एक पर्दा डाले हुए थे कि सब कुछ सही है।

जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के खिलाफ UN द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने का चीन विरोध करता आ रहा था।चीन तथा पाकिस्तान के सैन्य-संबंध लगातार मज़बूत होते जा रहे थे। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर के संबंध में व्यक्त भारत की चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर रहा था। भारत NSG की सदस्यता हासिल नहीं कर पा रहा था।हिंद महासागर में चीनी नौसेना की उपस्थिति बढ़ती जा रही थी। मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल आदि पड़ोसी देशों में चीन आक्रामक ढंग से निवेश कर रहा था।

इन तःथ्यों की रौशनी में जब आप ट्रम्प-मोदी की दोस्ती देखेंगे, जापान-भारत के डायलॉग समझेंगे, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री द्वारा समोसे के फोटो डालना देखेंगे तब आपको समझ आने लगेगा कि चीन डोकलाम में दवाब बनाने 2017 में ही क्यों कूदा? क्यूंकि 2017 में ही “QUAD” दोबारा खड़ा हुआ। नार्थ कोरिया ने किसके उकसावे पर जापान पर मिसाइल फायर की? नेपाल को भारत के खिलाफ कौन उकसा रहा है? पाकिस्तान क्यों चीन के पालतू पागल कुत्ते की तरह व्यवहार कर रहा है? या ट्रम्प की विजिट के दिन ही अचानक बिना बात दिल्ली में दंगे क्यों शुरू हुए? ये सभी संयोग नहीं सब प्रयोग ही हैं। नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत हम और आप हैं। जब तक हम मजबूती से आपस में यूनिटी बना कर रखेंगे तब तक इस लड़ाई में हमारा चांस अधिक है। वरना जिस तरह ब्रेकिंग इंडिया फ़ोर्स हमारे यहां लगी हुईं है।

हमारे आपसी विश्वास के टूटते ही अमेरिका जैसे आंतरिक हालात हमारे यहां भी होने तय हैं। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि चीन से हम कल ही लड़ने जा रहे हैं। कहने का मतलब है कि चीन अपनी फील्डिंग सेट कर रहा है। हमें अपनी करनी है। और भविष्य में चीन को या किसी और देश को कोई ग़लतफ़हमी हो तो उसकी ग़लतफ़हमी दूर करने के लिए हम सबल बने रहें। ये लड़ाई उसकी है।अब तक लड़ाई में धकेलते हुए हम पीछे ही आते जा रहे थे। यहां से हमने अपना पैर जमा दिया है। अब बस आगे ठेलना है। ठेलते ही जाना है।इस लड़ाई में हमारी एक ही पहचान होनी चाहिए।

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