नदी से नाला बना दाहा नदी

सिवान शहर को ले डूबेंगे अतिक्रमणकारी

मुश्ताक खान/ सिवान (बिहार)। लगातार सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर चल रहे अतिक्रमण के कारण सिवान का दाहा नदी अब लगभग नाला बन गया है। जिसका खामियाजा हर साल की तरह इस वर्ष भी मानसून के दौरान शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। जबकि संबंधित विभाग के अधिकारियों के सह पर अतिक्रमणकारियों ने इस नदी के छोरों को बेचकर मालामाल हो गए।

गौरतलब है कि सिवान (Siwan) का ऐतिहासिक दाहा नदी अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। दशकों से इस नदी में मोहर्रम का ताजिया दहान किया जाता था। वहीं इस नदी के कई घाटों पर छठ मईया की विधिवत पूजा अर्चना हुआ करती थी। इस पूजा के दौरान सूर्य नमस्कार व सूर्यास्त की पूजा होती आ रही है। इतना ही नहीं इसी नदी के किनारे शमशान भूमि भी है।

लेकिन यहां के चांडाल विभागों के अधिकारियों ने अपनी जेब भरने के लिये इस नदी को अतिक्रमणकारियों के हवाले कर दिया। जिसका खामियाजा मौजूदा समय में शहरवासियों को चुकाना पड़ रहा है।

सिवान के दाहा नदी का इतिहास

बताया जाता है कि दाहा नदी को बाण गंगा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी उतपत्ति गोपालगंज जिला (Gopalganj District) के नवलक्खा पुल से हुई है, जो कि सिवान होते हुए करीब 115 किमी की दूरी तय करने में बाद छपरा जिला के फुलवरिया में स्थित घाघरा नदी में जाकर मिलती है। बता दें कि तीन जिलों से होकर गुजरने वाली इस नदी में छोटे बड़े कल कारखानों के साथ साथ इसमें मवेशियों व शहरों की गंदगी से पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है।

विगत दो दशकों में दाहा नदी का पानी पुरी तरह प्रदूषित हो चुका है। दिनों दिन बढ़ते प्रदूषण के कारण जल जीवों पर खतरा मड़राने लगा है। चूंकि अब इस नदी का पानी जल जीवों के लिए बेहद जहरीला साबित हो रहा है। दाहा नदी में बी ओ डी का लेवल काफी कम होने के कारण मछली, मेंढक, सांप आदि जीवों पर संकट के बादल मंडराने लगे है। नतीजतन दाहा नदी का जैव पर्यावरणीय नियंत्रण समाप्त हो गया है। लार्वा भक्षी जीवों के नहीं होने के कारण पानी की सतह पर मच्छरों का साम्राज्य है। जिसके कारण लगभग पूरा सिवान शहर व तटीय गांवो और बस्तियों में मच्छरों का आतंक बरकरार है।

इसके अलावा इन बस्तियों में तरह-तरह की बीमारियों का प्रकोप जारी रहता है। इस प्रकार ऐतिहासिक महत्व रखने वाली यह नदी रोज व रोज नाले में तब्दील होती जा रही है। वहीं समाज के लोग एवं सरकार आख मूँदे बैठे हैं, जैसे इससे हमारे जीवन का कोई सरोकार हीं नहीं! लेकिन देर सवेर हमें समझना होगा कि सारण सिवान और गोपालगंज के लिए दाहा नदी जीवन रेखा है।

क्या कहते हैं दाहा नदी के शोधकर्ता

शोधकर्ताओं में डॉ. अशोक प्रियंवद, प्राध्यापक एवं पत्रकार जेड ए इस्लामिया कालेज, समाजसेवक लक्ष्मीकांत पाठक और एड.विजय कुमार मिश्रा का कहना है कि करीब 115 किमी लंबी दाहा नदी (बाण गंगा) के कई तटों पर हिन्दू और मुस्लिमों के पवित्र धार्मिक स्थल भी हैं। कहीं मंदिर तो कहीं मजार और मस्जिद को सहज ही देखा जा सकता है। लेकिन बाण गंगा को प्रदुषित करने की वजह पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई। ठीक इसी तरह राज्य सरकार या शासन और प्रशासन ने अतिक्रमणकारियों से दाहा नदी को बचाने की कोशिश नहीं की, जिसका खामियाजा अब सिवान शहर की जनता को तरह-तरह से भुगताना पड़ रहा है।

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