दाऊदनगर में दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव की धूम

एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना की सांस्कृतिक संस्था लोक पंच द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से औरंगाबाद जिला के हद में दाऊदनगर के छकूबीघा में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा हैं। यहां 14 से 17 फरवरी तक 4 दिवसीय दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव में बड़ी संख्या में उपस्थित दर्शकों की भीड़ नाट्य महोत्सव की लोकप्रियता में चार चांद लगा रहा है।

जानकारी के अनुसार 16 फरवरी को सांस्कृतिक संध्या के अंतर्गत मुख्य गायको में अमित सिंह, अभिषेक राज, दीपा, देवेन्द्र चौबे एवं लोक पंच के साथी द्वारा लोक गीत एवं नृत्य की प्रस्तुति की गयी। जिसमें उपस्थित ग्रामीण रहिवासी नाचते झूमते नजर आए।

इस अवसर पर लाली लाली होठवा पर बरसेला ललईया हो कि रस चुवेला, रहे अपने धुन में मगन मोरे सैयां, पग पग लिए जाऊं तोहरी बलईया, टिकवा जब-जब मांगईलूगे जटिन टिकवा कहे ना पेहेलेगे आदि लोकगीत, संगीत एवं नृत्य कार्यक्रम का ग्राम वासियों ने भरपूर आनंद लिया।

इस अवसर पर कलाकार साझा संघ के सचिव मनीष महीवाल ने बताया कि 17 फरवरी का महोत्सव पटना के प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित किया जायेगा, जिसमे एचएमटी पटना द्वारा सुरेश कुमार हज्जू के निर्देशन में नाटक पालकी पालना की प्रस्तुति की जाएगी।
महीवाल ने बताया कि इससे पूर्व बीते 15 फरवरी को दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव लोक पंच पटना द्वारा सतीश कुमार मिश्र के लेखन एवं मनीष महिवाल के निर्देशन में नाटक हम कुंवारे रहे नाटक की प्रस्तुति की गयी।

उन्होंने बताया कि नाटक त हम कुंवारे रहे नाटक सतीश कुमार मिश्र लिखित खालिस व्यंग्य नाटक है। नाटक में एक बुद्ध दिव्यांग पात्र है, जो शादी के लिए पागल हुआ जा रहा है। यहाँ तक कि वो बूद्धू अपनी मौसी, बुआ, ताई, माँ और सब्ज़ी- भाजीवाली से भी शादी करने को तैयार है, पर पिता की जिद है कि वो बिना मोटा दहेज लिए उसकी शादी नहीं कराएँगे।

उसे अपने बड़े भाई की पत्नी को लाने के लिए ससुराल भेजा जाता है। जहाँ वह अपनी मूर्खता के कारण अपने बड़े भाई को मृत बता देता है। इसके बाद वहाँ कोहराम मच जाता है। प्रस्तुत नाटक त हम कुंवारे में पात्र बुद्ध अपनी बेवकूफियों से दर्शकों को खूब हँसाता है। बेचारा अंत तक यही कहता रह जाता है कि तऽ हम कुवारे रहे।

नाटक के प्रमुख पात्रों में मंच पर तिनलोक उजागर प्रसाद डॉ विवेक ओझा, महाबीर बिक्रम बजरंगी प्रसाद कृष्णा यादव, ग्यान गुनसागर रजनीश पांडेय, पचफोरन प्रसाद रोहित कुमार, ठगानंद राजू कुमार, नंद कुमार मानव, मुखिया कृष्ण यादव, सरपंच अरबिंद कुमार, ग्रामीण अभिषेक कुमार ने किरदार निभाया है।

जबकि मंच से परे प्रकाश राज कुमार, ध्वनि संचार मनीष कुमार, मंच सज्जा अंकित कुमार, रूप सज्जा सोनल कुमार, वस्त्र विन्यास दीपा कुमारी, प्रॉपर्टी अरबिंद कुमार, प्रस्तुति नियंत्रक कृष्ण देव, सहायक निर्देशक रजनीश पांडेय, लेखक सतीश कुमार मिश्रा तथा निर्देशक मनीष महिवाल द्वारा नाटक को बेहतर ढंग से प्रस्तुति दी है।

वहीं दूसरा नाटक लोक पंच, पटना के इश्त्याक अहमद द्वारा लिखित एवं मनीष महिवाल द्वारा निर्देशित नाटक कातिल खेत का कथासार जैविक खेती पर आधारित है। नाटक के माध्यम से दिखाया गया है कि एक किसान अपनी किसानी से खुश है। थोड़ा-थोड़ा अपनी जरूरत की सभी खाद्य सामग्री उगाता है।

एक दिन किसान को हल जोतते समय खेत में एक चिराग मिलता है। वह चिराग को साफ करता है, तभी उसके अंदर से जिन्न निकलता है और सलाह देता है कि तुम अपने खेत में रासायनिक खाद का उपयोग करो। इससे उपज 5 गुना होगा। एक बार में एक ही फसल लगाओ तो और ज्यादा फायदा होगा।

पर खर्च थोड़ा ज्यादा लगेगा। किसान की पत्नी किसान को यह सलाह मानने से बार- बार मना करती है, लेकिन किसान नहीं मानता। वह कर्जा, पईचा लेकर खेती शुरू करता है। बार-बार कर्ज लेता है पर समय पर चुका नहीं पाता है। मजबूरन अपने सारे फसल और अपनी जमीन से उसे हाथ धोना पड़ता है। अंत में वह किसान आत्महत्या कर लेता है।

उक्त नाटक में किसान मनीष महिवाल, पत्नी सोनल कुमारी, जिन्न डॉ विवेक ओझा, बैल कृष्ण देव तथा अरबिंद कुमार, मुखिया अभिषेक, मुंशी राम प्रवेश ने अपने अपने किरदारों की बखूबी निभायी है। जबकि मंच से परे प्रकाश राज कुमार, रूप सज्जा सोनल कुमारी, संगीत अभिषेक राज, मंच व्यवस्था देवयांक, प्रॉपर्टी कृष्ण देव, वस्त्र विन्यास रितिका, लेखक इश्तियाक अहमद, निर्देशक मनीष महिवाल तथा प्रस्तुति लोक पंच पटना द्वारा किया गया।

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