पंचायत चुनाव से दूर होता आम आदमी-सुरेंद्र प्रसाद सिंह

शिक्षा, ईमानदारी, अनुभव पर भारी पड़ता शराब, नगदी, नथिया-बाली

एस.पी.सक्सेना/समस्तीपुर (बिहार)। बिहार में दूसरे चरण और समस्तीपुर के ताजपुर, पूसा, समस्तीपुर ग्रामीण क्षेत्र में बीते 29 सितंबर को प्रथम चरण की संपन्न हुई।

चुनाव कई भौतिकतावादी स्मृतियाँ छोड़ गई है। शुरू से ही सरकारी एवं प्रशासनिक लफ्फाजी के बीच यह चुनाव बिहार गठन के बाद सबसे अलग रहा।

चुनाव का अनुभव साझा करते हुए 30 सितंबर को समस्तीपुर के समर्पित भाकपा माले नेता कॉमरेड सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि अधिसूचना जारी होने से लेकर चुनाव संपन्न होने तक अधिकारी से लेकर प्रत्याशी तक कुव्यवस्था के शिकार रहे।

फार्म में विविधता, कभी आनलाइन वैलिड कभी नहीं, कभी प्रचार की अनुमति होगी कभी नहीं, गाड़ी, पर्चा, पोस्टर, फेसटून, लाउडस्पीकर तक वो भी बिना अनुमति के धड़ल्ले से प्रयोग किया गया।

एक उम्मीदवार को 5- 5 अनुमति पत्र मसलन अभ्यर्थी पत्र, अभिकर्ता पत्र, गणन पत्र, वाहन पत्र, साउंड पत्र की मंजूरी लेना दांत से चने चबाने जैसा था। इसने उम्मीदवारों के तनाव को खूब बढ़ाया।

इसे कराने में एफिडेविट, टिकट, फार्म आदि के नाम पर जमकर लेनदेन भी हुआ। चुनाव के दौरान “समरथ को नाही दोष गोसाईं” वाली कहावत चरितार्थ होते दिखा।

कॉ सिंह ने कहा कि एक ओर मतदाता वोटर लिस्ट में नाम नहीं होने पर लौटे, दूसरी ओर बुथ पर छांव, टेंट, पेयजल, शौचालय का अभाव दिखा। पर्चा, पोस्टर, फेसटून, झंडे, बैनर, मोटरसाइकिल की भरमार ही नहीं, बल्कि कई पंचायत में उम्मीदवार के यहाँ लगातार मीट, चिकेन, मछली का भोज, शराब पार्टी, ड्रग पार्टी वगैरह निर्बाध रूप से जारी रहा।

शराब बेचने में गजब का सोशल इंजिनियरिंग देखने का मिला। सब्जी आरत पहुंचाने वाला फाईवर ट्रे तक में नीचे शराब उपर केले, अर्थ के पत्ते से ढ़ककर शराब खूब बांटे और पिलाए गये। इसमें टीनेजर्स की अच्छी भागीदारी बनी रही

कॉ सिंह ने कहा कि पूर्व में आवास योजना में 30 हजार, पशुशेड में 40 हजार, मातृ वंदना योजना में 5 हजार, सोख्ता में 5 हजार, शौचालय में 3 हजार, मनरेगा, विकास, कल्याणकारी योजनाओं में जनप्रतिनिधियों द्वारा लूटकर रखे गये अवैध राशि का इस चुनाव में खूब ईस्तेमाल हुआ।

इतना ही नहीं पंचायतों में पर्चा में डालकर कहीं प्रति परिवार 5-10 हजार रूपये तो कहीं सोने का नाक का खोटीला, कान की बाली तक बांटा गया।

उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान जातियता कार्ड, डम्मी उम्मीदवार के बारे में तो पूछिए ही नहीं। लोग शुरू से अंत तक एक जाति का काट स्वजाति से या अन्य जातियों से करते रहें। आचार संहिता को तो “अचार संहिता” बनाकर रख दिया गया।

मोटरसाइकिल जुलूस में शामिल होने की कीमत गाड़ी में पेट्रोल, फोन रिचार्ज, पाकेट खर्च तक दिए गये। हंलांकि स्थानीय के जगह बाहरी किराये के युवाओं को जुटाकर खूब भीड़ दिखाकर मतदाताओं को पूरे तौर पर कंफ्यूज कर दिया गया।

उन्होंने बताया कि बाकी का कसर चुनाव के दिन पूरा हो गया। चुनाव पार्टी पर प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी के माध्यम से दबाव बनता दिखा। रसूखदार उम्मीदवार आम उम्मीदवार पर भारी दिखे।

विपक्षी को वोट मिलते देख मतदान धीमा करा देना, बोगस वोटिंग की कोशिश, बाहरी लोगों का मजमा खूब जमाया गया। रात के अंधेरे का भी खूब लाभ उठाने की कोशिश की गई। परिणामस्वरूप ताजपुर के कुछ बूथ पर रात्री के करीब 8:30 बजे तक मतदान जारी रहा।

उन्होंने कहा कि इस पंचायत चुनाव का लब्बोलुआब यह रहा कि शिक्षित, ईमानदार, सुयोग्य, संघर्षशील, अनुभवी उम्मीदवार हासिये पर रहे। इनके जगह पर भ्रष्टाचारियों, जातिवादियों, कालाबाजारीयों, ठेकेदारों, दलालों, दबंगों, रसूखदारों की खूब चली। फिलहाल गांधी का स्वराज का सपना यहां दम तोड़ता नजर आया।

हाँ, कुछेक ग्राउंड जीरो पर काम करने वाली पार्टी, संगठन, एनजीओ के कार्यकर्ता, छात्र, नौजवान, मजदूर, किसान, बुद्धिजीवी समेत आम आदमी कुव्यवस्था से जूझते आशा की किरण बनते नजर आये।

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