प्रत्याशी बदलते गए, सांसद विधायक बनते गए लेकिन नहीं बदला कसमार की तस्वीर

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। बोकारो जिला के हद में कसमार में हर चुनावों में प्रत्याशी तस्वीर बदलने की बात करते हैं। परंतु अभी तक यहां की तस्वीर कोई भी नहीं बदल पाया है।

कसमार की जनता हर चुनाव में समस्याओं से निजात मिलने की आशा उम्मीद व विश्वास रखते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। सांसद व् विधायक बन भी जाते हैं। सांसद, विधायक बनने के बाद राज्य व केन्द्र में मंत्री बनते हैं। साथ ही बड़े बड़े पदों पर आसीन हो जाते हैं, परंतु जनता की मूलभूत समस्या यथावत रह जा रही है।

मतदाता अपना बहुमूल्य मत देखकर उम्मीद से सांसद बनाते है, लेकिन जीतने के बाद पांच साल तक हर जगहों की दशा में कोई सुधार नहीं हो पाता है। यहां के मतदाताओं द्वारा अबतक सांसद के चुनाव में मत देने का काम किया गया, परंतु अभी तक किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंचा।

कसमार के छात्र-छात्राओं के लिए उच्च शिक्षा, रहिवासियों को बेहतर चिकित्सा व्यवस्था, क्षेत्र के युवाओं को रोजगार, स्वच्छ पेयजल समेत अन्य समस्याएं यथावत है। टेनुघाट से पानी कसमार तथा पेटरवार के गांव में स्वच्छ जल पहुंचाने के लिए पीएचडी विभाग द्वारा गांव में पाइप लगाकर छोड़ दिया गया। ठेकेदारी प्रथा से काम का गति विराम पर गया।

कसमार प्रखंड में बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या है। कसमार के सुदुर ग्रामीण क्षेत्र में जहां जीवन यापन का मुख्य पेशा खेती है। संयुक्त परिवार में जरूरत से अधिक सदस्य कृषि कार्य में लगे रहते है, जिसमें उन्हें लगभग चार महीने काम मिलता है, परंतु शेष समय बरोजगार बन कर रह जाते है। कुछ रहिवासी काम की तलाश में पलायन कर जाते है।

यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए संस्थान का अभाव है। जहां उच्च शिक्षा के लिए डिग्री कॉलेज, तकनीकि शिक्षा के लिए इंजिनियरिंग कॉलेज, पोलटेकनिक कॉलेज, बालिकाओं के लिए अलग से हाई स्कूल तथा कॉलेज नहीं है। इसके अलावे छात्र छात्राओं की गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लिए एक भी केंद्रीय विद्यालय नहीं है।

रोजगार के अभाव में पलायन गंभीर समस्या है

कसमार में रोजगार के लिए पलायन गंभीर समस्या है। हालांकि, कोरोना में कष्ट के बाद पलायन कुछ हद तक थमा है। फिर भी सभी 15 ग्राम पंचायत के कई राजस्व गांव से हर साल लगभग दस हजार मजदूर पलायन करते हैं।

रत्नगर्भा झारखंड, देश का सर्वाधीक राजस्व देनेवाला प्रदेश में रोजगार के लिए पलायन गंभीर समस्या है। केन्द्र सरकार की योजनाएं, राज्य सरकार की योजनाएं पलायन को रोकने में विफल साबित हो रही है।

चिकित्सालय का अभाव

कसमार से 35 किमी दुरी पर बोकारो जेनरल अस्पताल, सदर अस्पताल, प्राइवेट नर्सिंग होम दर्जनों हैं, परंतु कसमार में चिकित्सालय के नाम पर सीएचसी है। जहां प्राथमिक उपचार से ज्यादा कुछ भी नहीं है। इसके अलावे 10 सब सेंटर है जो एएनएम के भरोसे चल रहा है। मुख्यालय में सीएचसी है, जहां केवल रेफर करने का काम होता है।

यहां पेयजल एक गंभीर समस्या है। कसमार में पेयजल एक गंभीर मामला है। लगभग एक हजार चापानल खराब पड़े है। यहां 70 प्रतिशत जल मीनार बेकार पड़ा है। ग्रामीण सभी जलापूर्ति योजना बेकार पड़ा हुआ है। नल जल योजना पर कच्छप गति से काम चल रहा है। आज भी पेयजल की कोई योजना से स्वच्छ पेयजल नहीं मिल रहा है। सिंचाई के लिए कई नदी है, परंतु सिंचाई की व्यवस्था नहीं है।

अपनी खेती की दशा, अपने बच्चों की शिक्षा दीक्षा, नौजवान-बेरोजगार युवकों की फौज, पेयजल, नियोजन, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल की समस्या को देखकर मतदाता खामोश हैं और मन ही मन अपनी वेदना, पीड़ा को घुट घुट कर पी रहे हैं। आखिर चुनाव के समय अलग अलग दल से नए नए प्रत्याशी क्षेत्र में आकर सब्जबाग दिखाकर वोट लेकर, जनप्रतिनिधि बनकर सब भूल जाते हैं।

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