फिरोज आलम/जोनामोड़ (बोकारो)। गाँधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर को बिरसा आश्रम नयामोड़ में आदिवासी मूलवासी अधिकार मोर्चा की सभा “झारखंडी स्थानीयता और आदिवासी न्याय पूर्ण आरक्षण पर चर्चा” आयोजित की गई।
अध्यक्षता आदिवासी सेंगेल अभियान के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष सह आदिवासी मूलवासी अधिकार मोर्चा संयोजक देवनारायण मुर्मू, संचालन ललित नारायण एवं धन्यवाद ज्ञापन सेंगेल बोकारो जोनल परगना करमचंद हांसदा ने किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सह आदिवासी मूलवासी अधिकार मोर्चा के संरक्षक सालखन मुर्मू और विशिष्ट अतिथि फ्रांसीस श्रवण सेंगेल केन्द्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू और समाज सेवी सुशील कुमार उपस्थित थे।
सभा को सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मोर्चा संरक्षक सालखन मुर्मू ने संबोधित करते हुए कहा कि झारखंडी जन आंदोलन का तात्कालिक संभावित नीति-सूत्र झारखंड में राजनीतिक हलचल तेज है। झारखंड स्थापना से अब तक 22 वर्षों में अनेक बार सत्ता का परिवर्तन हुआ है। आगे भी होगा। परंतु क्या झारखंडी जन अर्थात आदिवासी-मूलवासी की जीवन में कोई परिवर्तन हो सका है?
नहीं। उसका सपना “अबुआ दिसुम-अबुआ राज” के खिलाफ सब कुछ हो रहा है। तब क्या झारखंडी जन पार्टियों अथवा नेताओं को कोसने के बदले निम्न नीति-सूत्र पर चिंतन मंथन कर एक नया झारखंड, अपने सपनों के झारखंड को सच बनाने के सार्थक पहल में भागीदारी निभा सकेगा?
उन्होंने कहा कि झारखंडी रोजगार/नियोजन नीति के तहत झारखंड के सभी सरकारी तथा गैर सरकारी नौकरियों एवं रोजगार का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाए। फिर उसको प्रखंडवार कोटा बनाकर केवल प्रखंड के आवेदकों से भरा जाए। झारखंडी भाषा नीति के तहत झारखंड की 5 आदिवासी भाषाएं +4 मूलवासी भाषाएं ही झारखंडी भाषाएं हैं।
इनको समृद्ध किया जाए। बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर स्थापित झारखंड प्रदेश वस्तुत: एक आदिवासी प्रदेश है। अतः अविलंब एक आदिवासी भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा देना अनिवार्य है। आठवीं अनुसूची में शामिल एकमात्र झारखंडी भाषा- संताली भाषा को प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जा सकता है।
झारखंडी स्थानीयता नीति के तहत झारखंड और वृहद झारखंड की मांग खतियान आधारित नहीं था। अब भी नहीं है। झारखंड के पड़ोस में स्थापित बिहारी, बंगाली, उड़िया आदि उप-राष्ट्रीयता से भिन्न झारखंडी उप-राष्ट्रीयता को स्थापित कर, आंतरिक उपनिवेशी शोषण से मुक्त होकर विकास के पथ पर राजकीय स्वायत्तता (ऑटोनॉमी) के साथ अग्रसर करने का एक सपना था और है।
झारखंड को माँगने वाले आदिवासी-मूलवासी (झारखंडी) को स्थापित करना ही झारखंडी स्थानीयता नीति बनाने का मूल लक्ष्य हो सकता है। जो बाकी उप-राष्ट्रीयता की तरह उनकी भाषा-संस्कृति और जातिगत पहचान (सूची) से स्वत: स्थापित है। अतएव आदिवासी- मूलवासी ही झारखंडी है। स्थानीय है।
उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट (14 अगस्त 2022) का डोमिसाइल पर फ़ैसला एक छलावा है। झुनझुना है। यह राजनीतिक ज़्यादा है, प्रैक्टिकल कम। इसके लागू होने की कोई गारंटी नहीं है। चूँकि प्रस्तावित बिल केंद्र को भेजने और 9वीं अनुसूची आदि में शामिल करने की क़वायद अर्थात् इसे अंधेरे गलियारे में धकेलने जैसा है।
आदिवासी-मूलवासी जनता को निकट भविष्य में इससे कोई फ़ायदा नहीं मिलेगा। चूँकि यह एक राजनीतिक खेल मात्र है। इसको जनता के हितार्थ ईमानदार प्रयास नहीं कहा जा सकता है। यह राजनीति प्रेरित ब्लेम-गेम लगता है।
उन्होंने आदिवासी सेंगेल अभियान का झारखंडी जन से अपील करते हुए कहा कि उपरोक्त नीति-सूत्र पर चिंतन मंथन कर एक आम सहमति बनाई जाए। इससे भी बेहतर कोई नीति- सूत्र बन सके तो उत्तम है। फिर जन आंदोलन की रणनीति बनाकर अनुशासन के साथ एक साथ कदम बढ़ाया जाए।
सभा में मूल रुप से सेंगेल बोकारो जिलाध्यक्ष सुखदेव मुर्मू, भारत महतो, हब्बूलाल गोराई, पुष्कर महतो, सुगदा किस्कू, जगदेव हेम्बरम, भीम मुर्मू, चंद्र मोहन मार्डी, अरूण किस्कू, ललिता सोरेन, उल्लेशवरी हेम्बरम, राखो किस्कू, उपेन्द्र हेम्बरम आदि उपस्थित थे।
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