रेलवे के सर्वे पर उठे सवाल, दलाल होंगे मालामाल
मुश्ताक खान/मुंबई। मध्य रेलवे ने उप नगरों में रेलवे लाइनों के किनारे बसे लोगों को सहायक मंडल अभियंता (रेल पथ) ने 7 दिनों में जगह खाली करने का नोटिस (Notice) दिया है। इससे रेल पटरियों के किनारे वर्षों से बसे लोगों में हड़कंप मच गया है।
बता दें कि रेलवे (Railway) की नोटिस के खिलाफ बड़ी संख्या में लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वहीं कुछ लोगों ने इस मामले में राजनेताओं से बचाव की गुहार लगाई है। इस कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि मध्य रेलवे द्वारा इस तरह की नोटिस 2021 के अंत से देने का काम शुरू किया गया है, जो कि अब भी जारी है।
छानबीन से पता चला है कि मध्य रेलवे ने इस मामले में किसी निजी ठेकेदार को सर्वे का काम दिया गया है। इस सर्वे में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की बातें सामने आ रही है। इससे दलाल और सर्वे कर्मचारी मालामाल होंगे, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों को एक के बजाए तीन से चार घर मिलने की उम्मीद वहीं कुछ लोग अपात्र के कतार में होंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2021 के अंत से मध्य रेलवे के सहायक मंडल अभियंता (रेलपथ) द्वारा रेलवे लाइनों के किनारे बसे लोगों को रेलवे की जमीन खाली करने का नोटिस दिया जा रहा है। कयास लगाया जा रहा है मुंबई (Mumbai) के ट्रांबे यार्ड से लेकर कुर्ला और कलवा तक लगभग 3 से 4 हजार नोटिस दिया जा चुका है।
इससे पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। मुंबई और उप नगरों में रेलवे लाइनों के किनारे बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेलवे तोड़ने या हटाने से पहले यहां के नागरिकों को झोपड़ों के विकल्प में घर देने वाली है या नहीं? तो बता दें कि रेलवे में झोपड़ों की जगह आवास या मुआवजा देने का कोई प्रवधान नहीं है।
ऐसे में राज्य सरकार (State Government) से निवेदन किया जा सकता है, आगे सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है। हालांकि रेलवे लाइनों के किनारे बसे नागरिकों ने राज्य सरकार के मंत्री व अन्य कई नेताओं से इस मुद्दे पर गुहार लगाई है।
रेल पथ के किनारे बसे नागरिकों ने राकांपा नेता व राज्य के गृह निर्माण मंत्री जितेंद्र आव्हाड, पूर्व मंत्री चंद्रकांत हंडोरे, सांसद राहुल शेवाले, नगरसेवक राजेंद्र माहुलकर ,नगरसेवक महादेव शिवगण आदि से मिल चुके हैं। बताया जाता है कि अश्वासन सभी ने दिया है। लेकिन झोपड़ा टुटने के बाद क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है।
गौरतलब है कि रेल पटरियों के किनारे बने झोपड़ों के सर्वे का काम ट्रांबे यार्ड (Trombay Yard) से शुरू हो गया है। बता दें की सर्वे कर रही निजी कंपनी दो तरफा मुनाफा के चक्कर में है, एक झोपड़े की जगह तीन या चार लोगों को पात्र बनाने की प्रक्रिया चल रही है।
सूत्रों की माने तो सर्वे करने वाले अधिकारी व कर्मचारी कहीं दबाव में तो कहीं रिश्वत लेकर एक झोपड़े की जगह तीन से चार झोपड़ों को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए क्षेत्र में दलाल भी सक्रिय हो गए हैं। चूंकि सर्वे के बाद झोपड़ों की वैधता और दस्तावेजों की जरूरत पड़ने वाली है।
पुराना दस्तावेज (Old Document) बनाने के लिए दलालों की जरूरत पड़ने वाली है। बहरहाल अब रेलवे लाइनों के किनारे बसे लोगों के सामने एक नहीं अनेक समस्याएं आने वाली है। जब कि इस सर्वे का स्याह पहलू यह है की मध्य रेलवे कुछ भी देने वाली नहीं है और राज्य सरकार इस पर विचार करेगी।
छानबीन से पता चला है कि मध्य रेलवे द्वारा दिए गए नोटिस के बाद काफी हंगामा हुआ है। इसे देखते हुए मध्य रेलवे के डीआरएम (DRM) झोपड़ा धारकों से मिल रहे हैं। सूत्रों की माने तो आगामी मनपा चुनाव को देखते हुए भाजपा (BJP) भी रेल के खेल में कूद पड़ी है।
रेल पटरियों के किनारे बसे लोगों को मोहरा बना कर खेल किया जा रहा है। ताकि झोपड़ाधारकों के वोट बटोरा जा सके। कहीं ऐसा तो नहीं कि मनपा चुनाव से पहले भाजपा द्वारा कोई नया दांव खेला जा रहा है। याद रहे कि रेलवे का मुख्यालय दिल्ली में है।
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