कार्यशाला में बिहार व झारखंड के 68 कृषि विज्ञान केन्द्र प्रमुखों का उपायुक्त ने किया स्वागत
दलहन एवं तिलहन प्रसार तकनीकी पुस्तिका का किया गया विमोचन
एस. पी. सक्सेना/देवघर (झारखंड)। दो दिवसीय वार्षिक क्षेत्रीय तीलहन एवं दलहन कार्यशाला का आयोजन 7 मार्च को देवघर स्थित शिल्पग्राम ऑडिटोरियम में किया गया। आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय पटना (बिहार) द्वारा आयोजित एवं केवीके सुजानी के सहयोग से किया गया।
इस दौरान कार्यक्रम का शुभारंभ जिला उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री (District Deputy Commissioner Manjunath Bhajantri), बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति डॉ अरूण कुमार एवं उपस्थित अतिथियों द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के दौरान उपायुक्त भजंत्री ने कहा कि दो दिवसीय कार्यशाला में बिहार व झारखंड के 68 कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रमुखों का देवघर में स्वागत है। उन्होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में यहां आपार संभावनाएं है। आवश्यकता है आधुनिक तकनीकों को कृषकों के साथ जोड़ते हुए उन्हें सशक्त बनाया जा सके।
कृषि विज्ञान केन्द्र को वर्तमान में जिला प्रशासन (District Administration) से जोड़कर ज्यादा से ज्यादा जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषकों को फसलों संबंधी जानकारी व समस्याओं का सामना न करना पड़े, इसके लिए समय-समय पर कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य करते हुए कृषि के क्षेत्र को और भी बेहतर बनाते हुए किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करने की आवश्यकता है।
उपायुक्त द्वारा जानकारी दी गयी कि देवघर जिले में एक्सपेरिमेन्ट के तौर पर ग्रामीण महिलाओं को बटन मशरूम उत्पादन से जोड़ा गया था। इसकी विशेषता है कि आप इसे झोपड़ी में लाभप्रद खेती कर सकते हैं। मशरूम स्वास्थ्य फायदे की वजह से लगातार बाजार में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है।
कम लागत में बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसे में कृषि पाठशाला के माध्यम से संबंधित प्रशिक्षकों द्वारा बटन मशरूम की वैज्ञानिक खेती के तकनीकों से ग्रामीण महिलाओं को अवगत कराया गया।
एक महीने में लगभग 2.5 क्विंटल बटन मशरूम उत्पादन किया गया। इन्हें जल्द हीं योजना से जोड़ते हुए पूरे साल यहां बटन मशरूम का उत्पादन सुनिश्चित करने की दिशा में योजना बनाई जा रही है।
उपायुक्त ने कहा कि देवघर जिले में बाबा मंदिर, सत्संग आश्रम, रिखिया आश्रम व धार्मिक स्थल होने की वजह से गैंदा फूल की मांग अत्यधिक है। इस दिशा में भी बेहतर कार्य योजना बनाकर कार्य किया जा सकता है, ताकि स्थानीय रहिवासियों को कृषि के माध्यम से बेहतर रोजगार मुहैया करायी जा सके।
साथ हीं खेती को व्यवसायीकरण से कैसे जोड़ा जाय, इस पर कार्य करने की आवश्कता है। इसके लिए समय-समय पर जिले के किसानों से सम्पर्क कर उन्हें आधुनिक जानकारियों व तकनीकों से जोड़ने की आवश्यकता है।
कार्यशाला के दौरान बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर के कुलपति डॉ अरूण कुमार द्वारा जानकारी दी गई कि घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए देश को 4-5 मिलियन टन अतिरिक्त दलहन उत्पादन करने की जरूरत है। इसे तभी पूरा किया जा सकता है, जब हम सही तरीके से इस दिशा में कार्य करें।
उन्होंने सभी प्रतिभागियों से दलहन और तिलहन के अपने अनुभवों को साझा किया। साथ ही दलहन प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और सीड हब कार्यक्रम के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नई किस्मों और परिस्थिति विशिष्ट प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देने की जरूरत है।
साथ ही अधिकतम उपज लाभ लेने के लिए प्रदर्शनों का प्रबंधन करने, गुणवत्ता बीज के रूप में किसानों से किसानों के बीच उत्पादों का प्रसार करने और किसान के स्तर पर दलहन के मूल्य वर्धन को बढ़ावा देने की जरूरत को रेखांकित किया।
उन्होंने दलहन में बीज प्रतिस्थापन दर में बढ़ोतरी करने, किसानों द्वारा प्रमाणित एवं गुणवत्ता बीजों का कहीं अधिक इस्तेमाल करने और ऐसी फसलों विशेषकर सर्दियों के मौसम के दौरान संरक्षित सिंचाई के प्रावधानों पर बल दिया। कार्यशाला के दौरान निदेशक अटारी पटना डॉ अंजनी कुमार ने दो दिवसीय कार्यशाला में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों से सभी को अवगत कराया।
इस दौरान उपरोक्त के अलावे डॉ आर.के. सोहने, डॉ एम.एस. कुंडू, वरीय वैज्ञानिक सह प्रमुख आनंद तिवारी, जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी रवि कुमार, केवीके सुजनी के वैज्ञानिक राजन ओझा, बिहार व झारखंड के 68 कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख, सहायक जनसम्पर्क पदाधिकारी रोहित कुमार विद्यार्थी एवं संबंधित विभाग के अधिकारीगण उपस्थित थे।
444 total views, 2 views today