महिलाओं ने परंपरागत रूप से मनाया भैया दूज का पर्व

बहन ने भाई की कलाई मे बांधी रक्षासूत्र, भाई ने बहनो को दिए उपहार

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिले में 3 नवंबर को रक्षा बंधन की तरह ही भाई-बहनों के अमर व अटूट पवित्र प्रेम की प्रतीक भैया दूज का त्योहार पारंपरिक रूप से मनाया गया। इस अवसर पर अहले सुबह महिलाओं ने स्नान कर खुद को पवित्र करते हुए श्रृंगार कर नए वस्त्र व आभूषण धारण किया। फिर पुरानी परम्परा को जीवंत रखने के लिए पारंपरिक रूप से महिलाओं ने अपने भाई को गाली दी। शाप भी दिया।

फिर महिलाओ ने गोबर के बनाये गए साँप, बिच्छू, गोजर, बिषला जानवर की आकृति के साथ मिट्टी के घड़ा को काले रंग से यमराज बनाकर परम्परा के अनुसार यमराज सिर के प्रतीक को मूसल से कूट दिया। फिर बहनों ने भाईयो के कष्ट से मुक्ति व लंबी उम्र की ईश्वर व यमराज से दुआएं मांगी।

गोधन कुटी के पश्चात अपनी जीभ में रेगनी का कांटा चुभोकर पश्चाताप करते हुए श्राप वापस ली और भाईयों के लंबी उम्र की कामना की। विवाहित बहनों के बुलावे पर भाई उनके घर पहुंचा। जहां बहन ने भाई को स्वागत करते हुए रुई के बने रक्षा सूत्र बांधी। कुंवारी बहनों ने भी भैया दूज के अवसर पर अपने भाइयों को बजरी खिलाकर नेग लिया।

सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड के चतुरपुर की मुन्नी देवी, नगर सोनपुर के ममता पटेल, बिभा देवी, रेशमी देवी, नीलम देवी, लवली कुमारी, साक्षी, आरती आदि ने जानकारी दी कि भैया दूज के दिन चकवा भाई, श्यामा भौजी और खरहित बहन के लोक कथा पर आधारित गीत गायी गई और कथा भी सुना गया। आज के दिन सभी महिलाएं व बच्चियां पुरानी परम्परा के अनुसार मिलजुलकर गीत गाए।

रेगनी के कांटा जीभ में चुभो कर अपने भाई सहित परिवार के सभी पुरुष को शाप से मुक्त कराया। रूई से लंबी बत्ती बनाकर रक्षा सूत्र तैयार किया और भाई की कलाई में बांध कर लंबी उम्र की प्रार्थना की। यमराज के कोप से बचाने के लिए घर के बाहर या पंडितो के दरवाज़े पर रंगोलीनुमा गोबर व चावल के घोल से चौका लगा कर उसके भीतर गोबर से यम और यमुना की आकृति के साथ ही सांप, बिच्छू व हानि पहुंचाने वाले जीवों की भी आकृति बनाई जाती है।

बताया जाता है कि आकृति के भीतर ईंट, मटर, नारियल, सुपारी व रेगनी का पौधा आदि भी रख कर उसके बाद महिलाओं ने उसे लाठी, मूसल से कुटाई की। उसके बाद उसमें से नारियल, चना या मटर, श्राप दिए गए रेगनी कांटे, रुई को अपने -अपने घर ले गई। पुनः दिए गए श्राप को पश्चाताप कर रेगनी के काटे को जीभ में चुभा कर दिए गए श्राप से मुक्त करती है।

उन्होंने कहा कि इस तरह आज के दिन टोटका करने से घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है तथा सुख समृद्धि की वृद्धि होती है। भाईयो और अन्य परिजनों को बजरी के रूप में कठोर अन्न खिलाया जाता है ताकि उसका भाई इंद्र के बज्र की तरह मजबूत रहे। आज के दिन भाइयों ने अपने बहनों के घर जाकर अन्न भी ग्रहण किया।

सोनपुर के लोक सेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत विष्णुदास उदासीन उर्फ मौनी बाबा ने भैया दूज के व्रत के बारे मे बताया कि समाजिक मान्यता व लोककथा में यह कहा गया है कि भगवान सूर्य ओर उनकी पत्नी की कोख से यमराज व यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। यमराज अपने कार्य में व्यस्त होने के कारण बहन के घर नहीं जा पा रहे थे। एक बार बहन यमुना ने अनुनय-विनय कर भाई यमराज को अपने घर बुलाया।

कार्तिक शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को वे बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि आप इसी तरह हर साल उनके घर आया करें। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करेगी उसे आशीष दें कि उसे आपका भय न रहे। यमराज ने उनकी ईच्छा पूरी कर दी। इस दिन को यम द्वितीया भी कहते हैं।

भैया दूज की यह कथा भी प्रचलित है कि नरक दीपावली से एक दिन पहले यानि कार्तिक कृष्णपक्ष के चतुदर्शी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन को नरक चतुदर्शी भी कहा जाता है। नारकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को बहन सुभद्रा के घर पहुंचे थे। सुभद्रा ने भगवान श्रीकृष्ण की खातिरदारी की थी। भगवान ने बहन को वरदान दिया था कि आज के दिन जो भाई बहन के घर आकर आतिथ्य स्वीकार करेंगे वे रोग, शोक मुक्त होकर पूरी आयू व्यतीत करेंगे।

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