नटवर साहित्य परिषद के कवि गोष्ठी में गीत ग़ज़लों की बयार

एस. पी. सक्सेना/मुजफ्फरपुर (बिहार)। मुजफ्फरपुर शहर के छोटी सरैयागंज स्थित नवयुवक समिति सभागार में 25 फरवरी को नटवर साहित्य परिषद की ओर से मासिक कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया।

कवि गोष्ठी व् मुशायरा की अध्यक्षता डॉ जगदीश शर्मा, मंच संचालन युवा कवि सुमन कुमार मिश्र, स्वागत उद्बोधन नटवर साहित्य परिषद के संयोजक डॉ नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ विजय शंकर मिश्र ने किया। इस अवसर पर कवि गोष्ठी की शुरुआत आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के गीत से किया गया। इसके बाद कवि व् गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने नदी निरंतर बहती कहती, रुकना मेरा काम नहीं है सुनाकर तालिया बटोरी।

शायर डॉ नर्मदेश्वर मुजफ्फरपुरी ने गजल करीब मौत खड़ी है जरा ठहर जाओ, कज़ा से आंख लड़ी है जरा ठहर जाओ प्रस्तुत की। डाॅ लोकनाथ मिश्र ने तेज हवा का झोका, झर झर गिरते जाते पत्ते सुनाकर तालियां बटोरी। अंजनी कुमार पाठक ने बसंत के कई रंग है, ऋतु बसंत ने हमें है सिखाया सुनाया। कवयित्री मुस्कान केशरी ने तेरे बारे में कुछ कुछ लिखना, वो सब को पसंद आ जाता है सुनाया।

अखिलेश्वर सिंह ने यार न ज्यादा दोस्त बना सुनाकर तालियां बटोरी।
गोष्ठी में डाॅ जगदीश शर्मा ने नीले अम्बर में छाया काले बादल का घेरा है, उदित भास्कर के आगे आज अंधेरा है सुनाया। सुमन कुमार मिश्र ने चिंता में रहे कटेंगे कैसे, दु:ख के दिन अमावस जैसे सुनाकर तालियां बटोरी। यहां मुजफ्फरपुर की युवा कवयित्री सविता राज ने एक दिन छोड़ के दुनिया से चले जाना है, चोट खानी है यहां और मुस्कुराना है प्रस्तुत कर जीवन की सच्चाई सुनाई।

कवि उमेश राज ने मैं हूं अंकिचन प्रेम का प्रिया सुनाया। अमर बिहारी ने बुरे हालात है पर अब न रोना है सुनाया। अरुण कुमार तुलसी ने उपवन की सुन्दरता पुष्प से पलते सुनाया। मोहन कुमार सिंह ने दिल मेरा दिमाग का नहीं सुनता सुनाया। दीनबंधु आजाद ने एक वो जमाना था सुनाया। इसके अलावे कवि गोष्ठी व् मुशायरा में रिद्धि मोहन, सिद्धि मोहन, अजय कुमार आदि की रचनाएं भी सराही गई।

 

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