शिवसेना किसकी?

SC में बुधवार को नहीं हो पाया फैसला, आज फिर होगी सुनवाई

प्रहरी संवाददाता/मुंबई। शिवसेना किसकी? को लेकर चल रही रस्साकसी विराम लेने का नाम नहीं ले रही है। इसे लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी और अब इस मामले की सुनवाई आज यानि गुरुवार को होनेवाली है।

बुधवार की सुनवाई में उद्धव ठाकरे के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग द्वारा तय किया जाता है। उनका तर्क है कि उनके पास बहुमत है, लेकिन बहुमत को 10वीं अनुसूची द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। अब आज की सुनवाई में पहले एकनाथ शिंदे की ओर से वकील दलील देंगे।

इससे पहले उद्धव ठाकरे गुट की ओर से दलील पेश करते हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि आज भी शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ही हैं। एकनाथ शिंदे को नई पार्टी बनानी होगी, या किसी अन्य पार्टी के साथ विलय होना पड़ेगा ।

बुधवार को उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के वकील कपिल सिब्बल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “अब महत्वपूर्ण बात यह है कि दो तिहाई लोग नहीं कह सकते कि वे मूल राजनीतिक दल हैं। पैरा 4 (10वीं अनुसूची का) इसकी अनुमति नहीं देता है.” उन्होंने कहा, “वे तर्क दे रहे हैं कि वे असली पार्टी हैं।

जबकि कानूनन यह मंजूर नहीं है। क्या वे चुनाव आयोग के सामने स्वीकार करते हैं कि विभाजन हुआ है। इस पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा ने कहा कि अलगाव उनके लिए बचाव नहीं है।

सिब्बल ने आगे कहा कि 10वीं अनुसूची में “मूल राजनीतिक दल” की परिभाषा को संदर्भित किया गया है “मूल राजनीतिक दल”, एक सदन के सदस्य के संबंध में है। पैरा 2 में कहा गया है, “एक सदन के एक निर्वाचित सदस्य को उस राजनीतिक दल से संबंधित माना जाएगा, यदि कोई हो, जिसके द्वारा उसे ऐसे सदस्य के रूप में चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया गया था। ”

मूल पार्टी का दावा नहीं कर सकते- सिब्बल

उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा मामले में इस अदालत ने कहा कि पार्टी सदस्यता राशि का त्याग आचरण से अनुमान लगाया जा सकता है। यहां उन्हें पार्टी की बैठक के लिए बुलाया गया, वे सूरत गए और फिर गुवाहाटी चले गए। उन्होंने डिप्टी स्पीकर को लिखा, अपना व्हिप नियुक्त किया।

आचरण से उन्होंने (शिंदे समूह) पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है। वे मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। 10वीं अनुसूची इसकी अनुमति नहीं देती है। उद्धव गुट की ओर से सिब्बल ने कहा कि चीफ व्हिप राजनीतिक दल और विधायक दल के बीच की कड़ी होता है। एक बार आपके चुने जाने के बाद आप राजनीतिक दल से जुड़ते हैं।

आप यह दावा नहीं कर सकते कि आप राजनीतिक दल हैं। आप कहते हैं कि आप गुवाहाटी में बैठे राजनीतिक दल हैं। राजनीतिक दल चुनाव आयोग द्वारा तय किया जाता है। आप गुवाहाटी में बैठने की घोषणा नहीं कर सकते, उनका तर्क है कि उनके पास बहुमत है, लेकिन बहुमत को 10वीं अनुसूची द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आपके अनुसार, उन्हें भाजपा पार्टी (BJP Party) में विलय करना होगा या उन्हें एक नई पार्टी बनानी होगी और चुनावी पार्टी के साथ पंजीकरण करना होगा।” जवाब में सिब्बल ने कहा कि यही एकमात्र बचाव संभव है।

एंटी डिफेक्शन एक्ट लोकतंत्र की आत्मा है-हरीश साल्वे
वहीं दूसरी ओर, एकनाथ शिंदे गुट की ओर कोर्ट में पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि एंटी डिफेक्शन एक्ट लोकतंत्र की आत्मा को नहीं बदल सकता है। आज शिवसेना (Shivsena) बदल गई है यह एक विवाद है। लेकिन वकील कपिल सिब्बल ने जो भी तर्क दिए वो उचित नहीं है।

उन्होंने कहा कि जब आप अपनी पार्टी छोड़ते हैं, तब दलबदल कानून लागू होता है। यहां किसी ने पार्टी नहीं छोड़ा है। दलबदल कानून उस नेता के लिए नहीं है, जो अपने विधायकों को कमरे में बंद कर दे। ये कानून पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को खत्म करने के लिए नहीं है। शिवसेना के अंदर बहुत दिक्कतें हैं।

सिब्बल साहब ने जो कहा वो सही नहीं है। साल्वे ने कहा कि अभी तक किसी ने किसी को अयोग्य नहीं ठहराया है। अगर मीटिंग अटेंड न करे तो अयोग्यता नहीं होता। व्हिप सिर्फ सदन के अंदर के लिए होता है। पार्टी मीटिंग (Meeting) के लिए नहीं, अभी किसी विधायक ने पार्टी नहीं छोड़ी है। वकील कपिल सिब्बल और हरीश साल्वे की जिरह के बाद इस मामले को गुरुवार के लिए बढ़ाया गया, अब सुनवाई आज होगी।

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