बिरहोर किसे सुनाएं अपने मन की पीड़ा

विजय कुमार साव/गोमियां(बोकारो)। गोमियां प्रखंड (Gomian block) के हद में चतरो चट्टी स्थित बिरहोर टंडा के बिरहोर किसे सुनाएं अपने मन की पीड़ा।
बिरहोर अस्थाई रूप से बाहरी इलाकों में समूहों में निवास करते हैं। बिरहोर झारखंड के कई जिलों में रहते हैं। पहाड़ों और जंगलों में रहना ही उन्हें पसंद है। राज्य व् केन्द्र सरकार (Central government) उनके उत्थान के लिए बड़े-बड़े दावे करती रही। मगर यह दावे खोखला साबित होता दिख रहा है।
यही हाल गोमियां प्रखंड के हद में नक्सल प्रभावित चतरो चट्टी के बिरहोर टंडा में देखने को मिला। बिरहोरो के लिए यहां आवास बनाए गए। आश्चर्य कि इन आवासों में ना खिड़की है ना दरवाजे। कई आवासों के हालत तो जर्जर हो गई है। करीब 150 लोगों की आबादी में पानी के लिए मात्र 2 चापाकल है। बिजली के खंभे तो हैं मगर उनके घर में उजाला नहीं है। आज भी बिरहोर सामाज उपेक्षित है। इन लोगों के पास किसी तरह की कोई सुविधा नहीं। किसी के पास राशन कार्ड है तो किसी के पास वह भी नहीं। करीब 10 वर्षों से बिरहोर यहां रह रहे हैं। स्थानीय रहिवासी बुधना बिरहोर के पास तो उसका आवास भी नहीं। वह वहीं पर बने प्राथमिक स्कूल में शरणार्थी के रूप में शरण लिए हुए है। फुलमनी बिरहोरनी ने बताया कि उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय है। पहनने के लिए ढंग के कपड़े तक नही है। इन सब चीजों को देखने वाला शायद ही कोई हो।

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