सिंहासन खाली करो कि जनता आती है के रचयिता राष्ट्र कवि दिनकर की जयंती पर विशेष

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। सिंहासन खाली करो कि जनता आती है के रचयिता बिहार के लाल राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की 23 सितंबर की जन्म जयंती है।

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार राज्य के जिला बेगूसराय के ग्राम सिमरिया के बाबू रवि सिंह के पुत्र के रूप में एक साधारण किसान परिवार में 23 सितम्बर 1908 को हुआ था। सन 1928 में मैट्रीक परीक्षा पास करने के बाद सन 1932 में उन्होंने पटना कॉलेज से स्नातक प्रतिष्ठा इतिहास से पास किया।

दिनकर जब 2 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी मां मनरूप देवी ने इनका लालन पालन किया। पिता के असमय निधन के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही रहा, जिस वजह से 1932 में स्नातक पास करने के बाद शिक्षक की नौकरी कर ली। सन 1934 में बिहार सरकार में निबन्धक के पद पर नियुक्ति के साथ ही उन्हें कविता और साहित्य से विशेष लगाव हो गया।

राष्ट्र कवि दिनकर को बचपन से ही कविता से लगाव था। उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा के दौरान अपनी कविता लिखना शुरू कर दिया। पटना में पढ़ाई के दौरान इनका संपर्क काशी प्रसाद जयसवाल और अन्य लोगो के साथ हुआ। उन्होंने संस्कृत, बंगला, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य का स्वाध्यन किया।

सन1934 में सरकारी नौकरी में आ जाने के बाद भी इनकी साहित्य साधना में कमी नही आई।
उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में हुँकार, रश्मि रथी, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, रेणुका सहित सैकड़ो रचनाये है।

क्रांतिकारी कवि दिनकर की रचनाएं और कविता में देश की गुलामी से मुक्ति के लिये छटपटाहट दिखती है। इनकी कवितायों ने देश के क्रांतिकारियों में बल भरने का काम किया।

सन1977 में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में जयप्रकाश नारायण ने दिनकर की कविता की पंक्ति सिंहासन खाली करो कि जनता आती है को आंदोलन का नारा बनाया।

अंग्रेजो द्वारा प्रताड़ित बिहार सरकार में निबन्धक की नौकरी के दौरान दिनकर को अपने साहित्य और काव्य रचनायों के लिये प्रताड़ित होना पड़ा। अंग्रेजो का मानना था कि इनकी कवितायों से आंदोलनकारियों को बल मिलता है। जिस बजह से इनसे कई एक बार शो कॉज पूछा गया। सन् 1936 से 1942 के बीच इनका 22 बार स्थानांतरण हुआ।

वैशाली जिले के लालगंज निबंधन कार्यालय के निबन्धक के रूप में मात्र 3 माह ही दिनकर ने काम किया और इनपर क्रांतिकारियों से सम्पर्क के नाम पर पटना बुला लिया गया। मुख्यालय में इन्हें जन सम्पर्क का उप निर्देशक बना दिया गया।

सन् 1947 में देश की आजादी के बाद इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी।इस समय तक देश मे साहित्यकार और कवि के रूप में ये काफी प्रचलित हो चुके थे। उत्तर बिहार का प्रमुख कॉलेज लंगट सिंह के हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में दिनकर ने सन 1947 से 1952 तक कार्य किया। दिनकर महान कवि, कथाकार, नाटककार, उपन्यासकार, निबंधकार थे।

पर बहुत लोग यह भी जानते होंगे कि उनको राष्ट्रकवि इसलिए बनाया गया कि वो महान समाजवादी, समतावादी, यथार्थवादी, न्यायवादी और राष्ट्रवादी थे। दिनकर साहित्य ध्यान से पढ़ने पर ये सभी बातें हर जगह देखने को मिलता है।

सन् 1952 में राज्यसभा के प्रथम सत्र में दिनकर संसद सदस्य चुने गये, जहाँ वे सन 1962 तक सदस्य रहे। सन् 1962 के भारत चीन युद्ध में भारत की हार पर संसद में प्रधान मंत्री नेहरू की दिनकर ने तीखी आलोचना की, जिस वजह से इनको कांग्रेस ने संसद में जाने का दुबारा मौका नही दिया।

1964 में दिनकर भगलपुर विश्वविद्यालय का उप कुलपति बनाये गए और 1965 से दिनकर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के पद पर रहे। उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को मद्रास (वर्तमान में चेन्नई) में हुई तथा अंतिम संस्कार सिमरिया घाट में ही हुआ।

कालजयी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को साहित्य जगत का ज्ञानपीठ पुरष्कार औऱ साहित्य अकादमी पुरष्कारो के अलावे बहुत से पुरष्कार मीला।vइन्हें पदम विभूषण से भी अलंकृत किया गया। वर्ष 1999 में भारत सरकार ने इनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया। ऐसे महापुरुष को शत शत नमन।

 206 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *