कब्रिस्तान बना रायगढ़ का आदिवासी गांव,13 लोगों की मौत

248 लोगों में से 142 लापता, आदिवासियों का पूरा गांव धंसा

प्रहरी संवाददाता पुणे। रायगढ़ जिले का एक आदिवासी गांव पूरी तरह से कब्रिस्तान बन गया है। बताया जाता है कि 248 लोगों की जनसंख्या वाले इस गांव में जबरदस्त भूस्खलन हुआ है। इस हादसे में अबतक मलबे में दबे 13 लोगों का शव निकाला जा चूका है, जबकि 93 लोग जीवित हैं जो घटना के समय मौजूद नहीं थे जान बचाकर भागने में कामयाब रहे। इस तरह यह आंकड़ा 106 का हुआ यानी कि प्रशासनिक आंकड़ों को सही माने तो 142 लोग अब भी लापता हैं। कयास लगाया जा रहा है कि कहीं बचे हुए लोग मलबे में लो नहीं ?

इस हादसे में जिन लोगों को मलबे से निकाला जा रहा है, उनके परिजन उनका अंतिम दर्शन भी नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि दुर्गम पहाड़ी होने के करण शव को नीचे लाने की कोई व्यवस्था भी नहीं है, जिसके कारण शव को वहीं दफना दिया जा रहा है। मौसम की मार ऐसी है कि भूस्खलन दिन में भी 2 बार हुआ। मौसम के चलते हेलीकॉप्टर से भी रेस्क्यू संभव नहीं है। केंद्र की मदद से दो हेलीकॉप्टर भी घटना स्थल पर तैयार है लेकिन वो उड़ान भरने में सक्षम नहीं हैं।

गौरतलब है कि रायगढ़ जिले के खालापुर में इरशाद किले की तलहटी में एक ऊंची दुर्गम पहाड़ी पर स्थित है। इस गांव में आने जाने के लिए कोई वाहन सड़क नहीं है। वहां जाने के लिए मनीवली गांव के चौक से होकर जाना पड़ता है। करीब दो-दो किलोमीटर की 3 पहाड़ियों को पार करने के बाद आप इस गांव तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन पिछले 3 दिनों की बारिश ने सब कुछ तबाह कर दिया। इस दौरान 499 मि.मी बारिश दर्ज की गई है, जो कि रिकॉर्ड है।

जिला प्रशासन को एक घंटे बाद मिली जानकारी

मुंबई से महज 80 किमी की दूरी पर बसे इस गांव में ठाकर नामक आदिवासी समाज के लोग रहते है। यहां टेलीफोन, मोबाइल संचार मुश्किल है। इस घटना की जानकारी जिला प्रशासन को 11.30 बजे के बीच मिली, रात 12 बजे स्टेट कंट्रोल रूम को मिली सूचना। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, इरशादवाड़ी संभावित दरार वाले स्थानों की सूची में शामिल नहीं है।

पहले इस जगह पर भूस्खलन और भूस्खलन जैसी कोई घटना नहीं हुई है। इस परिसर में मिट्टी और पत्थरों की प्रकृति और चट्टान की खड़ी ढलान है। पिछले 3 दिनों से हो रही लगातार बारिश के कारण कीचड़ और मलबा जम गया है। एनडीआरएफ (NDRF) की देखरेख में युवाओं के जरिए से सावधानी से ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इस ऑपरेशन में स्थानीय युवाओं और एनडीआरएफ के जवान के साथ सिडको से भेजे गए मजदूर भी राहत कार्य में लगे हैं।

NDRF के जवानों के साथ खोजी कुत्तों का दस्ता

एनडीआरएफ की 2 टीमें (60 जवान) रात में पुणे से रवाना हुईं और सुबह 4 बजे से पहले पहुंच गईं। खोजी कुत्ता दस्ता भी मौके पर पहुंच गया है। चूंकि घटना स्थल सुदूर इलाके में है, इसलिए किसी भी वाहन से घटना स्थल तक पहुंचना असंभव है, इसलिए पहाड़ी के नीचे एक अस्थायी नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है। वहां का संपर्क नं. 8108195554 है।

युवा जो पनवेल स्थित ट्रैकर्स समूह यशवंती ट्रैकर्स और निसर्ग ग्रुप के नियमित ट्रैकर्स हैं और क्षेत्र की भौगोलिक स्थितियों का अनुभव रखते हैं, बचाव दल में शामिल हैं। वायु सेना के दो हेलीकॉप्टर सुबह से ही सांताक्रूज हवाई क्षेत्र में बचाव के लिए तैयार थे, लेकिन मौसम के मिजाज को देखते हुए उड़ान नहीं भर सके।

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