इस अक्षय तृतीया देश में नहीं होने देंगे एक भी बाल विवाह

बाल विवाह के खिलाफ गैरसरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। अक्षय तृतीया और शादी ब्याह के मौसम को देखते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान से जुड़े विभिन्न गैरसरकारी संगठनों के सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ता देश की राजधानी नई दिल्ली में जुटे। इस दौरान होने वाले बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर चर्चा की गयी।

जानकारी के अनुसार सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए इस क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन वी फॉर हर फाउंडेशन और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के सहयोग से इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड ने आयोजित किया था।

शादी ब्याह के मौसम को देखते हुए बाल विवाह को रोकने के लिए जमीनी स्तर पर गांव-देहात में काम कर रहे सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए यह काफी महत्वपूर्ण समय है, क्योंकि इस दौरान देश में हजारों की संख्या में बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंक दिया जाता है।

खास तौर से देश के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में अक्षय तृतीया का त्योहार बाल विवाह की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। बाल विवाह मुक्त भारत अभियान देश भर के 161 गैर सरकारी संगठनों का गठबंधन है जो वर्ष 2030 तक देश में बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी टिपिंग प्वाइंट यानी वह मुकाम है, जहां से बाल विवाह अपने आप खत्म होने लगेगा, को हासिल करने के लिए जमीनी अभियान चला रहे हैं।

इस तरह की कार्यशालाओं की अहमियत को रेखांकित करते हुए प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं लेखक भुवन ऋभु ने कहा कि, भारत 2030 तक बाल विवाह की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की ओर अग्रसर है। देश में बाल विवाह की ऊंची दर वाले इलाकों में पिछले एक वर्ष में गैर सरकारी संगठनों और सरकारों के प्रयासों ने जो गति पकड़ी है, उसे मजबूती और विस्तार देने की आवश्यकता है।

बताया गया कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में अगले एक महीने काफी महत्वपूर्ण है। समुदायों, पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों और राज्य, जिला एवं प्रखंड स्तर पर सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है कि इस अक्षय तृतीया किसी बच्चे का बाल विवाह नहीं होने पाए।

भुवन ऋभु ने कहा कि बाल विवाह एक वैश्विक समस्या है, लेकिन दुनिया के किसी भी देश ने एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीतियों और क्रियान्वयन के स्तर पर उतनी तरक्की नहीं की है, जितनी भारत ने की है। सच कहें तो बेटी बताओ, बेटी पढ़ाओ की असली सफलता बाल विवाह के खात्मे में है।

भुवन ऋभु ने हाल ही में आई अपनी बेस्ट सेलर किताब व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज में 2030 तक बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक मुकाम तक पहुंचने के‌ लिए एक ठोस रणनीतिक खाका पेश किया है।

इस किताब में सुझाई गई रणनीतियों को देश भर के नागरिक समाज संगठनों ने भी अंगीकार किया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-21) के आंकड़ों के अनुसार देश में 20 से 24 आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था।

कार्यशाला को संबोधित करते हुए इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के ट्रस्टी राजीव भारद्वाज ने कहा कि बाल विवाह बच्चों की सुरक्षा के लिए शुरू की गई सभी पहलों और प्रयासों के लिए एक अभिशाप है। उन्होंने कहा कि एक सभ्य दुनिया में इसकी कोई जगह नहीं है।

कार्यशाला में विभिन्न राज्यों से आए सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं (कम्यूनिटी सोशल वर्कर्स) ने बाल विवाह की रोकथाम में आ रही चुनौतियों के बारे में एक दूसरे से अपने अनुभव साझा किए। इस दौरान कार्यकर्ताओं को इससे निपटने के तरीकों और बाल विवाह को हतोत्साहित करने‌ वाले कदमों की जानकारी दी गई।

खास तौर से उन कानूनों जो कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं, के बारे में विस्तार से जानकारी‌ दी गयी। कार्यशाला में मौजूद विशेषज्ञों और रणनीतिकारों ने अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों को रोकने पर विस्तार से मंथन किया और इसे रोकने के लिए रणनीतिक उपाय सुझाए।

इस अवसर पर सहयोगिनी बोकारो के निदेशक गौतम सागर ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं बाल‌ विवाह की रोकथाम के लिए जमीनी अभियान चला रहे कार्यकर्ताओं के सामने आ रही चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में सक्षम बनाने में सहायक होंगी। कहा कि सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार, रहिवासियों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाने और बाल‌ विवाह रोकने की दिशा में अनथक प्रयास कर रहे हैं।

कार्यशाला में आने वाले शादी ब्याह के मौसम में बाल विवाह की रोकथाम के लिए कार्यकर्ताओं को अदालत से निषेधाज्ञा आदेश लाने, प्रत्येक गांव का जनसांख्यिकीय अध्ययन और बाल विवाह की दृष्टि से संवेदनशील परिवारों की पहचान, धार्मिक स्थलों के सामने बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता का संदेश देने वाले तथा मंदिर या मस्जिद में बाल विवाह नहीं कराए जाते हैं जैसे पोस्टर‌ लगाने, पंचायत भवनों में बाल‌ विवाह कराने या इसमें शामिल होने पर होने वाली सजा के बारे में जानकारी देने‌ वाले पोस्टर लगाने सहित तमाम उपायों पर चर्चा की गई।

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