समाज में सोच बदलेगा, तभी होगा रामराज-गणेशाचार्य

जारंगडीह में नौ दिवसीय यज्ञ का समापन

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। रामराज सबसे उत्तम व्यवस्था है। व्यवस्था मन की बात नहीं है। आज समाज में चारों तरफ दुश्मनी फैला है। रामराज में ऐसी व्यवस्था थी कि बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे।

राजतंत्र होते हुए भी रामराज में प्रजा सर्वोपरि था। उक्त बातें बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह में आयोजित नौ दिवसीय नवान्ह परायण यज्ञ के अंतिम दिवस 20 मार्च की रात्रि जगद्गुरु गणेशाचार्य जी महाराज ने की।

उन्होंने कहा कि आज समाज में चारों तरफ स्वार्थ समा गया है। राजनीति में स्वार्थ का प्रवेश हो गया है। स्वार्थ रुपी जहर चाहूंओर फैल गया है। समाज से भाईचारगी समाप्त होने लगा है। समाज जाति, धर्म, मजहब, संप्रदाय, क्षेत्र, प्रदेश के आपसी विवादों में फंस गया है। उन्होंने कहा कि समाज चाहता है कि हमारे देश में रामराज की स्थापना हो। जिसमें स्वार्थ का कोई स्थान ना हो, क्योंकि रामराज उत्तम व्यवस्था है।

जहां आपस में प्रेम भाव से सभी सगे भाई की तरह एक दूसरे का सम्मान किया जाता है। उन्होंने कहा कि रामराज ऐसा था कि एक भाई दूसरे भाई का सम्मान करते हुए दूसरे भाई के लिए राज गद्दी छोड़ देता है। राक्षस रूपी रावण का वध ब्राह्मण होते हुए भी किया जाता है। आततायी रूपी बाली का वध किया जाता है।

भक्त वत्सल निषाद राज केवट को भाई जैसा सम्मान और भीलनी मां शबरी को मां का स्थान दिया जाता है। यही वास्तव में राम राज था, लेकिन आज ठीक इसके उलट समाज में संबंध बिगड़ रहे हैं। एक दूसरे पर संदेह किया जाता है। मर्यादा तार-तार हो रही है। जाति बंधन, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद हावी हो गया है। इसे दूर करना होगा अन्यथा रामराज संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि महाभारत काल में भी अनन्य शिष्य होने के बावजूद भी द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा काट दिया गया। यादव वंशी श्रीकृष्ण द्वारा यादव का संघार किया गया। यह राष्ट्रभक्ति और मर्यादा के सर्वोपरि स्थान को प्रदर्शित करता है।

उन्होंने कहा कि राम राज में ही राजतंत्र के बावजूद वास्तविक रूप में प्रजातंत्र था, क्योंकि भगवान श्रीराम ने माता कैकेई के वरदान के कारण राजगद्दी त्यागकर वनवास स्वीकार किया था।धोबिन पर उसके पति द्वारा सतीत्व पर उंगली उठाए जाने से आहत श्रीराम ने प्रजातंत्र का सम्मान करते हुए अपनी अर्धांगिनी माता सीता तक का त्याग करते हुए जन भावना का आदर किया।

जगद्गुरु गणेशाचार्य महाराज ने कहा कि धर्म इंसानियत का है। धर्म सनातनी है। धर्म हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी नहीं। यह तो केवल शरीर का एक रूप है। क्योंकि हम सभी अंदर से एक हैं। धर्म इंसानियत है।

कोरोना काल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पौराणिक काल से हमारे यहां हाथ पैर को अच्छी तरह धोकर घर के भीतर जाने की परंपरा रही है। इसे सभी लोग लगभग भूल गए थे। यही कारण है कि कोरोना वायरस महामारी ने हमारे पुराने कर्तव्य को धरातल पर लाने का काम किया।

मौके पर रामदास केवट, ललेंद्र ओझा, योगेंद्र सोनार, रघुनाथ, श्याम सिंह तथा उनकी धर्मपत्नी सुषमा देवी आदि मौजूद थे। इस अवसर पर यज्ञ स्थल पर जगतगुरु का विधिवत पूजन एवं माल्यार्पण किया गया साथ ही संत प्रवर सूरदास की याद में एक मिनट का मौन धारण कर उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की।

वहीं यज्ञ के समापन दिवस पर श्रद्धालुगण महाराज जी के प्रवचन का लाभ उठाया। यहां गणमान्य जनो, यज्ञ समिति तथा यज्ञ की बेहतर समाचार संकलन के लिए पत्रकारों का सम्मान किया गया।

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