दहेज रूपी दानव से बचने की जरूरत, क्षमता के विपरीत न मांगे दहेज-अनुराधा

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। पेटरवार प्रखंड के हद में अंगवाली पंचायत के मैथानटुंगरी में आयोजित यज्ञ में 16 मार्च की कथा में भगवान राम के विवाह की चर्चा की गई।

कथा में कहा गया कि गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस में वर्णन किया है कि विवाह उपरांत महाराज जनक ने अपनी ओर से वाहनों में भर भरकर सोना, वस्त्र, रत्न तथा नाना प्रकार की चीजें राजा दशरथ को दिया था, जिसे देखकर लोकपालों की संपदा भी थोड़ी जान पड़ती थी।

आज भी हमारे समाज में यह प्रथा चल रही है। विवाहोपरांत कन्या का पिता दहेज देकर कन्या की विदाई करता है। इस प्रसंग का बेवाक व्याख्या करते हुए अयोध्या धाम से पधारी मानस माधुरी अनुराधा सरस्वती ने अंगवाली में आयोजित मानस महायज्ञ के पंचम रात्रि प्रवचन के दौरान कहा कि जो प्रथा प्राचीनकाल में सुप्रथा के नाम से जानी जाती थी, आज उसी प्रथा ने कुप्रथा का रूप धारण कर लिया है।

जिसके कारण हमारे देश से कन्या रुपी रत्न को समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज में विवाह नहीं सौदा किया जाने लगा है। मन को नहीं, बल्कि धन को मिलाने में लगे हुए हैं।

मानस माधुरी ने अपने व्याख्यान में कहा कि श्रीराम चरित मानस के माध्यम से गोस्वामी जी ने दुनिया वालों को यह संदेश दिया है कि दहेज ना लेना बुरा है, और ना देना बुरा है, बल्कि दहेज जबरन कन्या के पिता से मांगना बिल्कुल बुरा है।

जिस पिता ने अपनी कन्या को बचपन से पढ़ाया, लिखाया और अच्छे संस्कार देकर ससुराल वालों की सेवा हेतु सौंप दिया हो, इससे बड़ा दहेज और क्या हो सकता है। इसके बावजूद यदि वह विदाई के समय कुछ उपहार स्वरूप भेंट कर रहा हो तो उसे सहर्ष स्वीकार कर उस कन्या के पिता का सम्मान करना चाहिए। जिससे बेटी के जन्म पर उसे शर्मिंदा ना होना पड़े। बल्कि कन्या के पिता होने पर गर्व की अनुभूति हो सके।

मानस माधुरी ने कहा कि कन्या के पिता को उसकी असमर्थता का बोध आजीवन कभी ना हो सके। उसका ध्यान रखना प्रत्येक वर तथा वर के पिता की नैतिक जिम्मेदारी बनती है।रात्रि को मंच संचालक सहित यज्ञ समिति के सभी सदस्यगण सक्रिय रहे। शाम को हवा के साथ हल्का बूंदा बांदी हुई। अंत में राम सीता विवाह की मनमोहक झांकी निकाली गई।

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