चिड़ैया मठ में स्थापित हैं बाबा विशालनाथ महादेव एवं देवी पार्वती की सौम्य मूर्ति

चिड़ैया मठ है ग्रामीण आध्यत्मिक जागरण का केंद्र

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरनाथ-पहलेजाधाम पथ के उत्तरी किनारे सोनपुर गांव में ऐतिहासिक चिड़ैया मठ स्थित है। इसी मठ के क लघु मंडप में बाबा विशालनाथ की चतुर्भुज सौम्य मूर्ति उत्तराभिमुख विराजमान हैं। उनके बायीं ओर देवी पार्वती की पद्मासन मूर्ति स्थापित हैं।

जानकारी के अनुसार ऐतिहासिक चिड़ैया मठ में देवी की यह मूर्ति ध्यानमुद्रा में और करबद्ध है। इसे बद्धाजंलि मूर्ति भी कहते हैं। यह मठ अति प्राचीन है। इसका भवन पहले खपरफोस था। जिस भूमि पर यह मठ अवस्थित है, उसका खाता नम्बर 516 खेसरा नम्बर 1059 है। इसका कुल रकवा 16 डीसमील है। यहीं पर विशालनाथ की संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है। शिव- पार्वती की यह अनुपम मूर्ति है।

उक्त मठ के बारे में लोक प्रचलित धारणा है कि इस मठ के रक्षक नाग नाथ बासुकी स्वयं है। उनका मुंह आदमी और शरीर सर्प का है।यदा-कदा यहां के पुराने पुजारियों को ऐसा दृश्य देखने का सौभाग्य मिला था, परंतु किसी को कभी नुकसान नहीं पहुंचा। वर्तमान में इस मठ का कोई स्थाई पुजारी नहीं है, जो यह दावा कर सके कि उसने कभी कोई ऐसा दृश्य देखा है या नहीं।

ग्रामीण भक्तगण स्वयं इस मठ की देखभाल एवं यहां स्थापित देवी पार्वती एवं शिव की अर्चना-पूजा करते हैं। कहते हैं कि मठ के भीतर कभी कोई खाट पर नहीं सोता। इस मंदिर में स्थापित शिव और पार्वती की मूर्ति बेहद आकर्षक है।

सौम्य मूर्ति की वजह से सर्वसिद्धि कामना की पूर्ति के लिए यहां ग्रामीण भक्तों की भीड़ लगी रहती है। श्रावण माह में पूरे विधि-विधान के साथ यहां बाबा विशालनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। बाबा विशालनाथ की जयजयकार से सम्पूर्ण गंवई वातावरण गूंज रहा है।

संतों की तपभूमि है चिड़ैया मठ

चिड़ैया मठ एवं उसके आसपास का सम्पूर्ण इलाका प्राचीन समय में संतों व महात्माओं की तपोभूमि रही है, जिसके प्रमाणस्वरुप अभी भी आसपास में स्थित अनेक समाधि है। इसी मठ के सुप्रसिद्ध महात्मा रैनगिरी बाबा थे, जिनकी प्रसिद्धि दूर-दराज तक था। उन्हीं के पौत्र चेला मौनी बाबा थे। इस मठ में संतों की उज्ज्वल परंपरा रही है।

दूर-दूर तक इसकी ख्याति फैली हुई थी। बाबा विशालनाथ का दर्शन-पूजन के लिए गांव के भीतर से जाना हो तो कंचन घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने दक्षिण दिशा में उक्त चिड़िया मठ अवस्थित है। हरिहरनाथ-पहलेजा सड़क की ओर से मुख्य द्वार बन जाने पर इस मंदिर की लोकप्रियता में और अधिक वृद्धि होगी। इसका चहुमुखी विकास होगा। फिलहाल यह गंवई पूजा-आराधना का केंद्र बन कर प्रगति के पथ पर शनै:शनैः बढ़ रहा है।

जानकार बताते है कि कुश्ती-दंगल का इतिहास भी इस मठ से जुड़ा हुआ है। 20वी शताब्दी के प्रारंभिक चरण से सन् 1930 तक यह मठ कुश्ती- दंगल का सुप्रसिद्ध अखाड़ा था। यह मठ संगीत का भी प्रमुख केन्द्र था। कुश्ती दंगल के स्थानीय प्रमुख स्थलों में सोनपुर के चिड़िया मठ के अलावा गाईं अखाड़ा तथा बाबू माधो सिंह का अखाड़ा बिहार में प्रसद्धि था।

सोनपुर के पहलवान राम नेपाल सिंह, बाबू राघो सिंह, शिब्बन सिंह, शोभा सिंह, प्रभु सिंह, द्वारिका सिंह, रामखेलावन सिंह, रिपन सिंह तथा हरेन्द्र सिंह की इलाके में काफी प्रसिद्धि थी। चिड़िया मठ के इतिहास लेखक विश्वनाथ सिंह अधिवक्ता के अनुसार वे सभी इसी चिड़िया मठ के अखाड़ा से पहलवान बने थे। गामा पहलवान जब सोनपुर आये ये तब वह भी चिड़िया मठ के अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़े थे। सन् 1930 के पूर्व चिड़िया मठ मे सफल गायन- वादन का कार्यक्रम चलता था।

जब यह परम्परा यहां बंद हुआ तो संत बाबा रामलखन दास ने वर्ष 1942 के बाद लोक सेवा आश्रम में ही शास्त्रिय- अंतर्राष्ट्रीय संगीत का कार्यक्रम कराना शुरू किया, जो अब- तक जारी है। यहां राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनगिनत कलाकार आकर अपनी कला की प्रस्तुति दे चुके है।

पुरातत्त्व निदेशालय की नजर में चिड़ैया मठ

अक्टूबर 2000 में पुरातत्त्व विभाग पटना की टीम ने सर्वेक्षण में चिड़ैया मठ के मही नदी किनारे की प्राचीन दीवारों को मुस्लिम कालीन बताया था। सर्वेक्षण के समय मठ की दीवारों को लखौड़ी ईंटों से बना बताया था जिस पर बाघ, मृग, मछली, मोर के धुंधले चित्र दिखलाई पड़ रहे थे। मठ की सड़क किनारे की मोटी प्राचीन दीवारों को 17 वीं-18वीं सदी का बताया गया था।

इस मठ की दीवारों के बाहरी स्वरूप को देखकर पुरातत्व संरक्षण पदाधिकारी सहदेव कुमार का मानना था कि यह मुस्लिम काल में कोई महत्वपूर्ण किला रहा होगा। दीवारों से लगी ईंटों का मुआयना करने के उपरांत पुरातत्व निदेशक डॉ अजय कुमार सिन्हा ने कहा कि इसका बार-बार निर्माण हुआ है।

मठ के अन्दर एक लकड़ी के तख्त पर खुदे बजरंगबली के चित्र को पुरातात्विक महत्व का बताते हुए उन्होंने कहा था कि यह नीम की लकड़ी पर निर्मित है। यह डेढ़ फीट की है तथा प्राचीन भी है। मठ के भीतर और बाहर रखे चार प्रस्तर स्तम्भों को पुरातत्त्वविदों ने गुप्तकाल का बताया। यानी इस मठ का इतिहास गुप्त काल तक जाता है।इस दौरान अलग-अलग कालों में इस जगह के रूप-रंग परिवर्तित होते रहे।

इस मठ में गांधी जी का भी हो चुका है पदार्पण

बाबा विशालनाथ (शिव) व देवी पार्वती की इस अनुपम मूर्ति का दर्शन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी कर चुके है। गांधी जी जब कस्तूरबा गांधी के साथ सोनपुर आये थे, तो इसी चिड़िया मठ में ग्रामीणों की सभा हुई थी, जिसको उन्होंने संबोधित किया था। उस वक्त गांधीजी ने स्वाधीनता आंदोलन के चंदा के लिए इस मठ को अपना केंद्र बनाया था। उस समय ग्रामीण महिलाओं ने अपने- अपने तन से सोने -चांदी का आभूषण उतारकर और नगद राशि देकर गांधी जी का गमछा भर दिया था।

लोक संस्कृति से भी इस मठ का गहरा जुड़ाव रहा है। गांव के रहिवासी होली के अवसर पर सर्वप्रथम इसी मठ में बाबा विशालनाथ के समक्ष नए वस्त्र धारण कर पहुंचते हैं और संतों की समाधि पर अबीर चढ़ाकर होली का शुभारंभ करते है।

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