आदिकाल से सोनपुर में लगता रहा है हरिहर क्षेत्र का मेला

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर से सटे सारण जिला के हद में स्थित सोनपुर में लगनेवाले हरिहर क्षेत्र मेला का संबंध पौराणिक काल से रहा है।

मूल रुप से हरिहर क्षेत्र के मेले का पुरानिक काल में हरीपुर नाम था, जहां नारायनी तट पर भगवान विष्णु अपने भक्त गज (हांथी) की ग्राह (मगरमच्छ) से रक्षा के लिए आये थे। उक्त स्थान आज वैशाली जिला के हद में हाजीपुर स्थित कौनहारा घाट के नाम से जाना जाता है।

मुगलकाल में हरीपुर का नाम हाजीपुर हो गया। इस स्थान का वर्णन भागवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथो मे मीलता है। गंगा तथा गंडक नदी के संगम पर स्थित कौनहारा घाट पर कार्तिक पूर्णिमा के आवसर पर श्रद्धालू गंगा स्नान को आते थे और सोनपुर के हरिहर नाथ मंदिर में केवल पूजा और दर्शन को जाते थे। इस अवसर पर लगने वाला मेला हाजीपुर मे ही लगता था।

मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में मेले का स्थान सोनपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। तब से गंगा स्नान का मेला हाजीपुर मे और पशु पक्षी का मेला हाजीपुर के सामने नदि उस पार सोनपुर मे लगने लगा।

सोनपुर मे लगने वाला पशु मेला ऐशिया का सबसे बड़ा पशु मेला रहता आया है। यहां किसानो के उपयोग के गाय, बैल, भैंस, बकरी के अलावे हांथी, घोड़ा, कुत्ता इत्यादि जानवर सहित अनेको तरह के लुभावन पक्षी लाखो की संख्या मे आते थे। मेले मे पक्षियों और मुर्गी की कई किस्में भी आती हैं। मेला क्षेत्र का हांथी बाजार सभी को आकर्षित करता रहा है।

सोनपुर मेला ही एक ऐसा स्थान है जहां सैकड़ो की संख्या में कानूनी रूप से हांथियों को बेचा जा सकता है। वर्ष 2004 से सोनपुर मेले में हाथियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जिस वजह से हांथी बाजार सुना पड़ा है। बैल की जगह पावर ट्रेक्टर ने ले लिया। अब बैलो की संख्या भी कम हो गई।

इस वर्ष मेले मे मात्र दो तीन सौ बैल आये। गाय और भैंस का भी यही हाल है। हाँ अभी तक मेला मे बलिया से खगरिया के गंगा क्षेत्र से पांच हजार से ज्यादा घोड़े खरीद बिक्री के लिए आ चुका है। वास्तव मे अब सोनपुर का पशु मेला प्रदर्शनी, मनोरंजन और व्यापार का मेला रह गया है।

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