शैव व् वैष्णव सम्प्रदाय की संयुक्त साधना स्थली है तारकेश्वरनाथ जोड़ा मंदिर

मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण हैं आसीन

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में नारायणी नदी के पश्चिमी किनारे सोनपुर प्रखंड के शिकारपुर गांव में अवस्थित जोड़ा मंदिर श्रावण माह में बोल बम के गगनभेदी नारों से गूंज रहा है। यहीं पर दूसरी तरफ भक्त जय श्रीराम के भी नारे बुलंद कर रहे हैं।

इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि इस मंदिर में आनेवाले श्रद्धालुओं को एक साथ हरि और हर दोनों का दर्शन होता है। यह मंदिर शैव-वैष्णव सम्प्रदायों की संयुक्त साधना स्थली है, क्योंकि मंदिर के एक गुम्बद के गर्भ गृह में भगवान श्रीराम, देवी सीता, लक्ष्मण और श्रीकृष्ण विराजमान हैं। ठीक भीतर द्वार की दीवार में बने स्थान में श्रीराम भक्त हनुमान (महावीर) भी प्रतिष्ठित हैं। यह मूर्ति संगमरमर से बनी हुई है। इस मंदिर का असली नाम तारकेश्वरनाथ जोड़ा मंदिर है।

इसके ठीक बगल में मंदिर के दूसरे गुम्बद के भीतर गर्भ गृह में भगवान भोलेनाथ शिव लिंग के रुप में साक्षात विराजमान हैं। शिव लिंग के ऊपर अष्टधातु निर्मित घड़ा है, जिसमें गंगाजल शिव लिंग पर अनवरत टपकता रहता है। हालांकि, यह शिव लिंग महज दो दशक पुराना है, क्योंकि दो दशक पूर्व अष्टधातु से निर्मित प्राचीन शिव लिंग चोरों की भेंट चढ़ गया। उक्त शिव लिंग की विशेषता थी कि वह अपना तीन बार रंग बदलता था।

स्थानीय भक्तों ने की थी शिवलिंग की स्थापना

अद्भुत एवं विलक्षण मूर्ति की चोरी होने के बाद स्थानीय भक्तों ने नवीन मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की, जिसमें ग्रामीण भक्तों की बड़ी आस्था है।वैसे, इस नवीन शिवलिंग के निकट ही पुरानी एक और लघु आकृति वाली शिवलिंग स्थापित है, जो सभी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति करनेवाली मानी जाती है। यहीं पर दीवार में बने लघु मन्दिर में विघ्नहर्ता श्रीगणेश विराजमान हैं। यानी शिवलिंग और गणेश की यह प्रतिमा पुरानी धरोहर है। मंदिर में कुछ पुराने पत्थर भी दिखते हैं जिन्हें सहेज कर रखा गया है।

जैसे ही आप मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते हैं तो खूबसूरत और अत्यंत आकर्षक जोड़ा मंदिर दिखाई पड़ता है। मंदिर प्रांगण में एक कुंआ भी है जिसे अब सीमेंट-बालू के मिश्रण से पक्के फर्श के रुप में ढाल दिया गया है। जिससे कोई दुर्घटना नहीं हो और कुंआ सुरक्षित रहे।

मंदिर के पुजारी का मानना है कि बहुत पहले किसी ने मूर्ति तोड़ कर कुएं में डाल दी थी। तब से कुंआ सार्वजनिक रुप से बंद कर दिया गया। मुख्य जोड़ा मंदिर अपनी खूबसूरती एवं बेहतरीन नक्काशी के लिए चर्चित है। देखने वाले इसके सौंदर्य को निहारते ठगे से रह जाते हैं।

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी

उक्त जोड़ा मंदिर के बारे में मंदिर के पुजारी मुक्तिनाथ गिरी बताते हैं कि यह डेढ़ से दो सौ साल पुराना है। वे बताते हैं कि दुर्गा बाबा ने मंदिर का निर्माण कराया था। जब नवीन शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी, तब पूजा में प्रयोग के लिए मरहौरा के सिल्हौरी धाम शीलनिधि की माटी लायी गयी थी।

पुजारी गिरि का कहना है कि धनंजय सिंह नामक भक्त ने उन्हें बताया था कि उनके बाबा कहते थे कि इस जोड़ा मन्दिर का असली नाम तारकेश्वरनाथ जोड़ा मंदिर है। इस नाम को रहिवासी अब भूल गए। बस जोड़ा मंदिर नाम याद रह गया। यहां फागुन शिवरात्रि एवं वैशाख शिवरात्रि में यहां मेला लगता है। काष्ठ फर्नीचर की वस्तुएं, कपड़े आदि की विक्री होती है। सोनपुर के उत्तरी भाग के इलाके का यह बड़ा मेला कहा जा सकता है।

मंदिर परिसर में है देवी दुर्गा स्थान

भक्त रणधीर कुमार बताते है कि जोड़ा मंदिर परिसर में दुर्गा स्थान भी बना हुआ है। जहां प्रतिवर्ष दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है। कोई भी धार्मिक आयोजन यहां करने के लिए पर्याप्त जगह है।

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