गोपालपुर में है स्वयंभू बाबा नर्मदेश्वर महादेव का स्थापित शिवलिंग

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में छपरा-पटना राष्ट्रीय राजमार्ग 19 के समीप सोनपुर प्रखंड के नयागांव के समीप गोपालपुर गांव में बाबा नर्मदेश्वर महादेव का स्वयंभू प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है। इन दिनों यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

मंदिर में वैसे तो सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, किंतु श्रावण माह में बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। यहां भक्तगण बिल्व पत्र, भांग, धतूर फल भी चढ़ाते है और जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ-साथ बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी सुरक्षा मिलती है।

स्थानीय गोपालपुर के ग्रामीण भक्त विनय सिंह व कालीका सिंह बताते हैं कि वर्षो पुराने बने इस मंदिर में स्वयंभू प्राकृतिक शिवलिग स्थापित है, जिसे भाग्य संवारने वाला माना जाता है। इनकी पूजा से किस्मत चमक जाती है और दुर्भाग्य के दिन टल जाते हैं। भगवान शंकर के शिवलिंग से थोड़ी दूर पर माता पार्वती तथा नंदी की सफेद प्रतिमा स्थापित है।

वही मंदिर के बाहर सटे उत्तर दिशा में संकट मोचन हनुमान जी का भव्य प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा में बजरंग बली के मस्तक पर चांदी का मुकुट शोभायमान हो रहा है। मंदिर के मुख्य द्वार पर विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश विराजमान है।

नर्मदा नदी किनारे प्राकृतिक रुप से पाए जानेवाले शिव लिंगों को ही नर्मदेश्वर शिव लिंग कहा जाता है। मां नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था कि नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पत्थर बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिव लिंग के रुप में जगत में पूजा जायेगा।इसलिए नर्मदा में पाए जाने वाला हर पत्थर शिव- लिंग के रुप में धर्मग्रंथों द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसे ही वाण- लिंग कहा जाता है। पर, नर्मदेश्वर शिवलिंग की ही प्रसिद्धि है।

स्थानीय ग्रामीण रहिवासी रमेश सिंह, उदय सिंह, सुनील सिंह, समीर सिंह, अरुण सिंह, पंडित विकास कुमार बतातें है कि सावन माह के अलावे शिवरात्रि के मौके पर मंदिर परिसर में विशेष सजावट की जाती है। शिवलिग का फूल, फल, चंदन, इत्र आदि से विशेष श्रृंगार किया जाता है। नर्मदेश्वर मंदिर के पूर्व के पुजारी स्वर्गीय विश्वनाथ ओझा के पौत्र श्रीवेंकटेश्वरा वैदिक युनिवर्सिटी तिरुपति के छात्र रहते हैं।

गौतम बाबा बताते हैं कि सावन महीना में भगवान शिव को जल अर्पित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शंकर पर बिल्व पत्र, भांग, धतूर, फल चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति किसी तीर्थ स्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा कर उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है। सुबह-शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है। वहीं बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं।

बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्द्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है। भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाने का जितना महत्व है, उतना ही महत्व बिल्व पत्र के वृक्ष का भी माना गया है।

शिव के निराकार स्वरुप लिंग की होती पूजा

पराशक्ति परिपूर्णता में भगवान शिव का आकार हैं, परन्तु परशिव परिपूर्णता में वे निराकार हैं। सामान्यतः पत्थर, धातु व चिकनी मिट्टी से बना स्तम्भाकार या अंडाकार (अंडे के आकार का) शिवलिंग भगवान शिव की निराकार सर्वव्यापी वास्तविकता को दर्शाता है। निश्चित रुप से भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग सर्वशक्तिमान, निराकार प्रभु की याद दिलाता है। इसलिए नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ- साथ बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी सुरक्षा मिलती है।

कहते हैं कि कई देवताओं की पूजा से जो फल प्राप्त होता है उससे सौ गुना अधिक मिट्टी के लिंग के पूजन से होता है। हजारों मिट्टी के लिंगों के पूजन का जो फल होता है, उससे सौ गुना अधिक फल नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से मिलता है।

घर- गृहस्थी वालो के लिए नर्मदेश्वर शिवलिंग अत्यंत फायदेमंद है। प्रतिदिन इनकी पूजा करने से घर में शांति आती है और परिवारजनों के ऊपर आने वाले रोगों और संकट टल जाते हैं। इनकी पूजा आपको तथा आपके परिवार को ज्ञान, धन, सिद्धि और ऐश्वर्य देगी। वैदिक काल से कहा और माना जाता रहा हैं कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम निकट नहीं आते हैं।

 

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