हरिहरक्षेत्र कलश यात्रा से आध्यात्मिक मेला का शुभारंभ

बीते 24 वर्षों से जारी है देवोत्थान एकादशी से यह परंपरा

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर स्थित विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेला के साधु गाछी के श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश से देवोत्थान एकादशी 23 नवंबर को श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ के अवसर पर निकाला गया कलश मेला। निकाले गए हरिहरक्षेत्र कलश यात्रा के साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि से हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला का शुभारंभ हो गया।

ज्ञात हो कि, सरकारी स्तर पर 32 दिवसीय सोनपुर मेला का उद्घाटन आगामी 25 नवंबर को होगा। आज से ठीक 24 वर्ष पूर्व वर्ष 2000 में हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला कलश यात्रा की परंपरा डाली गई थी।
इस मौके पर देश के कोने-कोने से पहुंचे वैष्णव संत एवं धर्माचार्य कलश यात्रा में सम्मिलित हुए। भक्तों की भीड़ देखने लायक थी।

माथे पर कलश लेकर महिलाओं और किशोरियों की यह आध्यात्मिक यात्रा भक्ति की शक्ति का सहज ही बोध करा रही थी। देवस्थानम से मेला कलश यात्रा निकलकर पूरे सोनपुर मेला क्षेत्र का परिभ्रमण किया।

श्रीगजेंद्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने इस अवसर पर भेजे अपने संदेश में कहा कि कार्तिक पूर्णिमा की सांध्यकालीन बेला में नारायणी नदी के किनारे गजेंद्र मोक्ष घाट पर देव दीपावली का आयोजन किया गया है, जिसमें नारायणी तट स्थित गजेन्द्र मोक्ष घाट पर पूजा-अर्चना के उपरांत 1008 दीपक प्रज्वलित कर उसे नारायणी नदी को समर्पित किया जाएगा। इसे लेकर आयोजन की यहां भव्य तैयारी की गयी है।

भव्य शोभा यात्रा मेला का दर्शकों ने किया दर्शन और पूजन

श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् दिव्य देश से 23 नवंबर को देवोत्थान एकादशी पर निकाले गए शोभा यात्रा के दर्शन के लिए सड़क किनारे भक्तों की भारी भीड़ जुटी थी। उपस्थित श्रद्धालुओं ने रास्ते में हरिहरनाथ कलश यात्रा पर पुष्प वर्षा की।

देवस्थानम से आरंभ होकर कलश यात्रा हरिहरनाथ मंदिर पहुंचा, जहां दर्शन के उपरांत मीना बाजार, मीना बाजार सिंदूर चौक होते पूरे मेला क्षेत्र की यात्रा कर शहीद महेश्वर चौक, गज ग्राह गोलंबर होते हुए गजेन्द्र मोक्ष घाट पर नारायणी नदी में पहुंचकर कलश यात्रियों ने जलहरण कार्यक्रम संपन्न किया। इसके बाद देवस्थानम में कलश यात्रा विधिवत संपन्न हो गया।

इस ऐतिहासिक कलश यात्रा में बाबा हरिहरनाथ के अर्चक पवन शास्त्री, विश्वामित्र ओझा, देवस्थानम के व्यवस्थापक बाबा नंद कुमार राय, दिलीप झा, फूल झा, सौरभ कुमार, मणिकांत त्रिपाठी, संजू त्रिपाठी, देवस्थानम के मीडिया प्रभारी लालबाबू पटेल, राज किशोर सिंह, वीणा सिंह, मुकेश पाठक, शिव कुमार झा आदि नेतृत्व कर रहे थे।

तुलसी शालिग्राम विवाह संपन्न

इस अवसर ल सर्वप्रथम सुबह भगवान श्रीगजेन्द्र मोक्ष को 101 लीटर गुलाब जल से अभिषेक किया गया। भगवान के परिधान बदले गए। देवोत्थान एकादशी के शाम में ही मंदिर के प्रशस्त जगमोहन में तुलसी विवाह संपन्न किया गया। बताया जाता है कि यहां 24 नवंबर को अरणी मंथन और श्रीलक्ष्मी नारायण यज्ञ आरंभ होगा।

जानकारी के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली के अलावा यज्ञ की पूर्णाहुति और भंडारा का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर दूर दराज से आए भक्तों ने देवस्थानम के विशाल राजगोपुरम का दर्शन किया। भक्तों ने विलक्षण दृश्य को देख आनंद और सुख का अनुभव किया।

राजगोपुरम के सामने ही श्रीमन्नारायण भक्त व सखा गरूड़ देव की बद्धांजलि मुद्रा में खड़ी प्रतिमा उनकी विनम्रता, सौम्यता व शालीनता का सूचक है। यहां गरुड़देव भगवद् भक्ति में तल्लीन हैं। जगमोहन के गर्भगृह में बाला जी वेंकटेश रंगनाथ श्रीविष्णु, श्रीदेवी, भू -देवी, लक्ष्मी देवी एवं आल्वार संतों की अलग-अलग विग्रहों का भक्तों पर सदा आशीर्वाद बरसता रहता है। सर्वत्र शांति मंगलकामना व श्रीवृद्धि के लिए शुरू इस हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला कलश यात्रा को संतों व धर्माचार्यों ने भी सराहा।

यह यात्रा व यज्ञ मेले के सुखद भविष्य के साथ-साथ स्थानीय
रहिवासियों व तीर्थयात्रियों, व्यवसायियों, सुरक्षा प्रहरियों के लिए मंगलकामना का संदेश देता रहा है।

वर्ष 2000 से है हरिहरक्षेत्र मेला उद्घाटन की धार्मिक परंपरा

जानकारी के अनुसार वर्ष 2000 में धार्मिक दृष्टि से मेला शुभारंभ का एक नया इतिहास रचा गया था। यह परंपरा पिछले 24 वर्षों से कायम है। स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने बताया कि सरकार द्वारा पहले अशुभ तिथि चतुर्दशी के अवसर पर मेला का उद्घाटन होता था। मेला कमिटी में सदस्य के रुप में संत भी होते थे।

संतों ने बार बार मेला की बैठकों में सरकार और मेला प्रशासन को सुझाव दिया कि चतुर्दशी को मेला का उद्घाटन शुभ नहीं है। कई वर्षों तक उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया। धीरे धीरे संतों ने मेला की सरकारी बैठकों से किनारा कर लिया।

इस संबंध में वरिष्ठ साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी बताते हैं कि इस बड़े मेले की शुरुआत की कोई सांस्कृतिक परंपरा नहीं थी, इसीलिए वर्ष 2000 में गजेंद्र मोक्ष देवस्थानम में एक बैठक की गई जिसमें उन्होंने देवोत्थान के दिन हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला कलश यात्रा शुरु करने का प्रस्ताव रखा। स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने उसी वर्ष इसे मूर्त रुप देते हुए कलश यात्रा की परंपरा शुरु की, जो अब मेले की विशिष्ट धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बन गई है।

वरना इससे पहले प्रशासनिक स्तर पर मेले का उद्घाटन हुआ करता था। उन्होंने कहा कि अब भी मेले के सरकारी उद्घाटन पर संत महात्माओं को आमंत्रित नहीं किया जाता। जबकि देश के अन्य सभी बड़े मेलों का उद्घाटन संत महात्माओं की उपस्थिति में ही हुआ करता है।

सरकारी स्तर पर 25 नवंबर को होगा मेला का उद्घाटन

सारण के जिलाधिकारी अमन समीर ने बताया कि 32 दिवसीय हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला उद्घाटन की आधिकारिक तिथि 25 नवंबर घोषित की गई है। जबकि, अगले माह 26 दिसंबर को मेला का समापन होगा।

बताया गया कि आगामी 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए मेला के सभी घाटों और बाबा हरिहरनाथ मंदिर में पर्याप्त व्यवस्था की गई है। जलाभिषेक करनेवालों की सुरक्षा के लिए मंदिर के पास बैरेकेटिंग की गई है, जिससे महिला सहित सभी भक्तों को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।

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