यह पागल नहीं कलाकार है भाई

सन्नी के हौसले को सलाम

सुनील मंथन शर्मा/ मुंबई। भाईचारे का प्रतीक होली का पर्व और देश की आर्थिक राजधानी महानगर मुंबई का अजनबी माहौल। एशिया महादेश का इकलौता टाटा मेमोरियल सेंटर यानी कैंसर हॉस्पिटल के डॉक्टर और पहला माला, दूसरा माला के चवकर से इतमिनान। ऐसे में याद आयी झारखंड की होली। जिज्ञासा हुई मुंबई में कैसी होती है होली। सो, निकल पड़ा हॉस्पिटल के आस- पास वाली गलियों में। धूम-धड़ाका के बीच उड़ते रंग-गुलाल से नहाये लोगों के बीच बच्चों की अतरंगी होली में नयापन देखने को मिला।

यहां के नन्हें- मुन्ने अतरंगी बच्चे चोरी- चोरी, चुपके- चुपके छोटी- छोटी रंगों

सन्नी के हौसले को सलाम

सन्नी के हौसले को सलाम

से भरे प्लास्टिक के फुग्गे लोगों पर फेंक कर मजा ले रहे थे। इत्तेफाक से किसी ने मुझे रंग- गुलाल तो नहीं लगाया, पर बिना कीचड़ की झारखंड और बिहार की तरह मस्ती देख मन विविध रंगों से सराबोर हो गया। आगे का नजारा देखने की इच्छा और प्रबल हुई, तो बिना भांग के ही झूमते- झामते परेल से दादर स्टेशन के रास्ते चल पड़ा। डॉ अम्बेडकर रोड के पास से दादर जाने वाली ओवरब्रिज के पास पहुंचते ही एक शख्स को देखकर ठिठक गया। मैला- कुचैला, बिखरे-बिखरे बाल, बगल में दो थैलियां और अंगुलियों में फंसी बॉल पेन। होली का त्योहार है और पूरे इलाके में मस्ती का आलम, तो फिर यह व्यक्ति इधर क्यों पड़ा है। जेहन में कौंधा- यह तो पागल लगता है।

लेकिन, कुछ देर वहां रुकने और उसकी अंगुलियों की हरकत देखते-देखते मैं गलत निकला। कलाकार है भई कलाकार, अव्वल दर्जे का कलाकार। कोई रंग नहीं, कोई ब्रश नहीं, कोई स्टैंड नहीं, सिर्फ बॉल पेन और कागज पर उसने डॉ़ भीम राव अम्बेडकर की तस्वीर बना दी। उनकी नजर मेरी ओर उठते ही मैंने शाबाशी दी, भाई आप तो कलाकार हो। जवाब मिला, अरे नहीं भाई यह तो ऊपरवाले की मेहरबानी है। बगल में बैठकर ना-नुकुर के साथ डेढ़ घंटे बातचीत चली। जो परिस्थितियां उनके साथ गुजर रही हैं, जो उनके हालत हैं, उन पर जब सवाल किये गये तो एक बार फिर जवाब मिला, यह तो ऊपरवाले की मेहरबानी है।

यदि, उस शख्स की बातों पर यकीन किया जाये तो उनका नाम है सन्नी गायकवाड। रहने वाला पुणे का। वह पेंटर हैं। सभी तरह के वॉल पेंटिंग्स, साइनबोर्ड, कोई भी तस्वीर मिनटों में बनाने मे महारत रखते हैं। पढ़ाई तो मात्र दूसरी वलास तक ही की, लेकिन अंग्रेजी व हिन्दी के शब्द छापेखानों की तरह लिखते हैं। आज से सात महीने पहले पुणे में ही एक साइनबोर्ड बनाने के दौरान सीढ़ी से नीचे गिर पड़े और कंधे के पास की एक हड्डी टूट गयी। पहले तो पुणे में इलाज कराया, लेकिन पूरा न हो सका तो मुंबई में एक रिश्तेदार के पास आ गये इलाज कराने। पर हो न सका और इधर ही पड़े रह गये।

छह महीने से परेशान हैं। घर में पत्नी है, बच्चे हैं, लेकिन कमाने वाला अकेला होने की वजह से शुरु में जो रुपये खत्म हुए तो खत्म हो गये। अब न तो कमा पा रहे हैं और न ही उनके पास कोई संपत्ति है, जिसे बेचकर अपना इलाज करा सके। अब देखिये, उनकी खुद्दारी और सम्मान के साथ जीने का जज्बा। मैंने सलाह दी, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के पास बहुत सारे ट्रस्ट वाले हैं, वह इलाज कराने में मदद करते हैं, उनके पास वयों नहीं जाते। जवाब मिला, अरे नहीं भाई मैं दूसरों की मदद नहीं लूंगा। मैं खुद कमा कर अपना इलाज कराउंगा। अब चाय पीते हैं सिर्फ चाय पिला दो मुलाकात और दोस्ती भी बरकरार रहेगी।

 444 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *