समरेश सिंह की बहू ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा

प्रहरी संवाददाता/बोकारो। झारखंड के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय समरेश सिंह (दादा) की बहू डॉक्टर परिंदा सिंह ने 14 दिसंबर को कांग्रेस पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है।

इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, राज्य के प्रतिपक्ष के नेता अमर बाउरी और बोकारो विधायक विरंची नारायण विशेष तौर पर उपस्थित थे। यह घटना झारखंड की राजधानी रांची स्थित भाजपा प्रदेश कार्यालय में घटित हुई।

बताया जाता है कि दादा अपनी जिंदगी में भरपूर प्रयास किया था कि उनकी राजनीतिक विरासत का वारिस शांति के साथ उनकी गद्दी पर बैठ जाए। लेकिन इसके लिए न उनका परिवार एकमत था और ना ही बोकारो की जनता ने ही उनका साथ दिया। परिवार की दो बहू इस विरासत पर काबिज होने के लिए आमने – सामने खड़ी हो गई। विवाद के और भी पारिवारिक कारण होंगे, लेकिन इस विरासत ने दोनों को एक प्रकार से दुश्मन जैसा बना दिया।

बताया जाता है कि दादा के एक बहू श्वेता सिंह को गत विधानसभा चुनाव में जैसे -तैसे बोकारो से कांग्रेस का टिकट मिला वहीं दूसरी बहू डॉ परिंदा सिंह ने चास नगर निगम मेयर का चुनाव लड़ा। क्षेत्र की जनता ने दोनों को नकार दिया। तब श्वेता का कद खास कर झारखंड कांग्रेस में परिंदा के मुकाबले काफी बढ़ गया। नतीजा यह हुआ कि लाख प्रयास के बाद भी परिंदा कांग्रेस में कोई भी सम्मानित पद नहीं पा सकी। श्वेता उनकी इस चाह के बीच पहाड़ जैसी खड़ी थी। वे कांग्रेस में छटपटा रही थी।

इसी बीच झारखंड में जेविएम का उदय हुआ। तब जेविएम के सर्वेसर्वा रहे बाबूलाल मरांडी जेविएम से पहली बार विधायक बने। मरांडी अब पुनः जेविएम को टूटते देख भाजपा का दामन थाम लिया और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन गये। वहीं चंदनकियारी विधायक अमर बाउरी भाजपा विधायक दल के नेता बन गए।

बताया जाता है कि स्वर्गीय समरेश सिंह का मरांडी और बाउरी से काफी गहरा रिश्ता था। दादा भी कुछ ही समय के लिए सही जेविन के बड़े नेता थे। पूर्व में दादा भी भाजपा में हीं थे जिससे उन्हें वर्ष 2000 में झारखंड स्थापना के साथ बने मरांडी मंत्रीमंडल में मंत्री पद मिला था।

इन सभी तथ्यों को देखते हुए संभवतः उनकी बहु परिंदा को भाजपा में भविष्य दिखा और वे 14 दिसंबर को भाजपा में शामिल हो गयी। भाजपा में उनका भविष्य निश्चित ही कांग्रेस से बेहतर होगा, यह भाजपा के वर्तमान प्रदेश नेतृत्व को देख कर समझा जा सकता है लेकिन कितना बेहतर यह तो भविष्य के गर्त में है। अब देखना यह होगा कि एक घर की दो बहुएं सार्वजनिक जीवन और मंच से दो घुर विरोधी दलों में रहने के बाद एक – दूसरे को कैसे सम्मानित करती है।

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