आजादी के अमृत महोत्सव पर वैशाली के वीर योद्धाओं को नमन

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। आजादी के 75 साल। आजादी के अमृत महोत्सव पर क्रांतिवीरो की धरती वैशाली जिला के हद में लालगंज क्षेत्र के लाल नर केशरी योगेंद्र शुक्ल, जन नायक किशोरी प्रसन्न सिंह, बाबू दीपनारायण सिंह, अमर शहीद वैकुंठ शुक्ल, विरांगना सुनीति देवी और राधिका देवी की कहानी के बिना देश की स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी अधूरी है। वैशाली के इन वीर योद्धाओं को नमन।

लालगंज क्षेत्र के जगोडीह गांव के एक साधारण किसान परिवार से आने वाले किशोरी प्रसन्न सिंह का देश की स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश 7 दिसम्बर 1920 को हुआ, जब वे जीएच स्कूल के छात्र थे। इसी स्कूल के शिक्षक पंडित जयनन्दन झा के प्रयास से चंपारण जाने के क्रम में महात्मा गांधी हाजीपुर में आश्रम की नींव रखी, जो कालांतर में गांधी आश्रम हो गया।

किशोरी प्रसन्न सिंह का गांधी से पहला साक्षात्कार हुया और उन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित कर कांग्रेस सेवा दल के सदस्य हो गए। इनकी पत्नी सुनीति देवी भी देश सेवा कार्य में आगे बढ़कर योगदान देने लगी। राजेन्द्र बाबू के कहने पर किशोरी बाबू चरखा संघ का काम देखने लगे और गोरौल के नजदीक सोंधो में आश्रम की स्थापना हुई।

सन 1927 में किशोरी बाबू को कर्नाटक के हुबली में भारत सेवा दल के स्वयंसेवक के ट्रेनिग कैम्प में भेजा गया। जब किशोरी बाबू वहाँ पहुचे तो पता चला कि कैम्प में महिलाओं का प्रवेश नही है, लेकिन सुनीति देवी नही मानी और सैलून में अपना केश कटवा कर पुरुष वेश धारण कर ली। कैम्प में किशोरी बाबू के साथ सुनिती जी ने मर्दाना वेश में 9 माह की ट्रेनिग पूरी की।

उसी कैम्प में सुनीति साइकल, घुड़सवारी से लेकर अस्त्र चलना सिख ली, जो आगे जाकर काम दिया। गांधीजी को जब इस घटना की जानकारी मिली तो गांधी जी ने सुनीति को अपने पास बुलवाया और कांग्रेस महिला संगठन का कार्य सुनीति देवी को दिया। वर्ष 1928 से किशोरी बाबू हजीपुर गांधी आश्रम को अपना मुख्यालय बनाकर स्वतन्त्रता आंदोलन का कार्य देखते आये।

लालगंज क्षेत्र के जलालपुर गांव के क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल जो देश के क्रांतिकारी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रास बिहारी बोस, बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियो के साथ मिलकर देश की आजादी के लिये हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का गठन कर चुके थे भी किशोरी बाबू के सम्पर्क में आये। क्रन्तिकारी बसावन सिंह भी योगेंद्र शुक्ल के दल में थे। इस तरह किशोरी प्रसन्न सिंह जिले के नरम दल और गरम दल दोनों के नेता थे।

वर्ष 1930 में योगेंद्र शुक्ल और वसावन सिंह के गिरफ्तार हो जाने पर जिले में आंदोलन कमजोर पड़ने लगा। आश्रम के अक्षयबट राय और किशोरी प्रसन्न सिंह लालगंज क्षेत्र के ही गांव पुरनटांड के बाबू दीपनारायण सिंह को स्वतन्त्रता आंदोलन में लाने का बहुत दिनों से प्रयास कर रहे थे।

बाबू दीपनारायण सिंह सरकारी स्कूल के इंस्पेक्टर की नौकरी करते थे, और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होने के पहले ही दीप बाबू नौकरी छोड़कर आजादी के आंदोलन में अपने को समर्पित कर दिया।

किशोरी बाबू और सुनीति देवी के प्रयास से जलालपुर गांव के शिक्षक बैकुण्ठ शुक्ल और उनकी पत्नी आजादी के आंदोलन में अपना जीवन समर्पित कर दिया। देश की आजादी के लिए संघर्ष में बैकुण्ठ शुक्ल 14 मई 1934 को गया जेल में 27 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे को चूम लिया और राधिका जी 24 वर्ष की उम्र में वैद्यव्य हो गयी।

किशोरी बाबू किसानऔर बाद में साम्यवादी आंदोलन से जुड़े, लेकिन दिप बाबू खांटी गांधीवादी रहे। देश की आजादी के बाद महनार से सन 1952 में बाबू दीपनारायण सिंह विधायक चुने गए और डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में सिंचाई और बिजली मंत्री और 1957 में हाजीपुर से विधायक चुने जाने के बाद बिहार के वित्त मंत्री बने। 31 जनवरी 1961 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद 1 फरवरी 1961 को बिहार के दूसरे मुख्यमंत्री बने और 18 फरवरी को बिनोदानन्द झा के मुख्य मंत्री बनने पर पुनः कैविनेट मंत्री बने।

1962 मे भी हाजीपुर से दीप बाबू बिधायक बने, लेकिन 1967 का चुनाव किशोरी प्रसन्न सिंह से हार गए। तब पुनः लालगंज से 1969 और 1972 में विधायक और मंत्री बने। बाबू दीपनारायण सिंह सादगी के प्रतीक रहे। गांधी आश्रम से इन्हें बहुत प्रेम रहा।

दिघी के बाबू ध्रुव नारायण सिंह ने गांधी आश्रम में जब गांधी स्मारक पुस्तकालय की स्थापना की तो दिप बाबू उसके पहले अध्यक्ष बने। गांधी आश्रम में ही दिप बाबू के नाम पर एक संग्रहालय बना हुआ है।

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