नदियां एक घाट बहुतेरे-मानस मंदाकिनी

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। नदियां एक घाट बहुतेरे, कहहीं सुनहीं समझ के फेरे। मानव मन हमेशा लोभ मोह में बंधा होता है। जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति सहज नहीं हो पाता है। उक्त बातें बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह में आयोजित रामायण नवाहन नौ दिवसीय महायज्ञ में अयोध्या से पधारी मानस मंदाकिनी साध्वी पूनम ने एक भेंट वार्ता में कही।

उन्होंने कहा कि कलियुग में राम की महत्ता अपरम्पार है। जो मनुष्य को चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्ति देता है। उन्होंने अपने जीवन के विषय में कहा कि वर्ष 2005 से मंच पर वे भागवत कथा और प्रभु श्रीराम की अगुवाई के रूप में महिला सेवा आश्रम चला रही हैं। वे बचपन से ही काशी में रही।

16 साल से अयोध्या के जानकी घाट में रह रही है। पिछले 20 वर्ष से वैराग्य ली है। रामायण और राम चरित मानस के विषय में साध्वी कहती है कि गोस्वामी तुलसीदास ने कलयुग के लिए राम चरित मानस की रचना कर राम के जीवन चरित्र को जन जन तक पहुंचाने का काम किया है।

जिसका तात्पर्य भगवान शंकर के सबसे प्रिय राम का वर्णन है, जबकि महर्षि बाल्मीकि ने रामायण की रचना की, जिसमें अयोध्या कांड के बाद उत्तरकांड समाहित है।

मानस मंदाकिनी के अनुसार गर्भ में शिशु के पलने के समय पति-पत्नी को ब्रह्णश्चर्य का पालन करना चाहिए। इसलिए राम ने लव-कुश के जन्म के पूर्व माता सीता को महर्षि के आश्रम में भेजकर ब्रह्णश्चर्य का पालन किया। जिसके कारण उनके दोनों पुत्र महाप्रतापी बने।

वर्तमान समय में मानव लोभ, मोह के वशीभूत होकर अपना मानव धर्म भूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामायण तथा राम चरित मानस का कोई मजहब नहीं है। यह मानव जीवन को मोक्ष के मार्ग पर चलने तथा धर्म रूपी धवजा का प्रचार प्रसार का मार्ग प्रसस्त करता है।

बशर्ते मानव को व्यसनों से दूर रहना होगा। उन्होंने कहा कि दुनियां का कोई भी धर्म ग्रंथ मानव को सदाचारी बनने की प्रेरणा देता है। इसीलिए कहा गया है कि नदियां एक घाट बहुतेरे, कहहीं सुनहीं समझ के फेरे। उन्होंने कहा कि परब्रम्ह साकार और निराकार दोनों रूपों में है।

मानस मन्दाकिनी के अनुसार वे अपनी पूरी जिंदगी फलाहार के रूप में लेते आ रही है। वे जन्म से क्षत्रिय परिवार में जन्मी है, फिर संत बन गयी। इसमें कोई भेद नहीं। साध्वी के अनुसार अच्छे कर्म करें। दो लोगों को रोटी दे सके। उन्हें विभिन्न जगहों पर प्रवचन के दौरान जो भी प्राप्त होता है उसे सहर्ष आश्रम में न्योछावर कर देती है।

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