कबीर ज्ञान मंदिर में आयोजित गीता ज्ञान महायज्ञ की पूर्णाहुति

ममता सिन्हा/तेनुघाट (बोकारो)। गिरिडीह स्थित कबीर ज्ञान मंदिर में आयोजित श्रीमद्भगवद्गीता जयंती की पूर्णाहुति 5 दिसंबर को गीता ज्ञान महायज्ञ के साथ की गई। जिसमें परम वंदनीया सद्गुरु मां ज्ञान के सानिध्य में सैकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा अनुष्ठान का यज्ञ हवन किया गया।

जानकारी के अनुसार कबीर ज्ञान मंदिर में हवन के पश्चात महा आरती एवं भंडारे का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धायुक्त होकर श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक अर्थ सहित पाठ के साथ आहुति दी गई। इस महायज्ञ का फल राष्ट्र को समर्पित करने का संकल्प लिया गया।

इस अवसर पर सद्गुरु मां ज्ञान ने कहा कि जब हमारा राष्ट्र समृद्ध होगा, तो राष्ट्र का हर प्राणी समृद्ध होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम ईश्वर को साक्षात देखना चाहते हैं, तो अपने राष्ट्र को देखें। यदि ईश्वर की आराधना करना चाहते हो, तो राष्ट्र की सेवा करो।

हमारे देश की मिट्टी बहुत दिव्य मिट्टी है, जो परमात्मा को भी अपने में अवतरित करती है। हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि जैसे अर्जुन के रथ को भगवान ने संभाला था उसी तरह हमारे जीवन को भी प्रभु संभाले। हमारा मन इंद्रियों के घोड़ों की बागडोर को भी प्रभु अपने हाथ में थाम ले।

हम सबों का बोलना, चलना, व्यवहार करना सब कुछ गीता के अनुरूप हो। सदगुरु मां ज्ञान ने कहा की सभी धर्म ग्रंथों में जो भी सार बातें हैं, गीता से ही ली गई है। जहां भी कुछ अच्छाई और दिव्यता दिखती है। उसमें गीता ही प्रतिबिंबित होती है। गीता के एक-एक शब्द में मानव हित समाया हुआ है। भारत के पास गीता जैसे ग्रंथों का खजाना ही इसे विश्व गुरु के पद पर आसीन करता है।

उन्होंने कहा कि आज से 5570 वर्ष पूर्व भगवान द्वारा अर्जुन के माध्यम से जन-जन को दिया गया संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था।

चिंता, द्वेष मनोमुखता, नफरत, अराजकता, वैमनस्यता, दरिद्रता, पशुता की काली छाया से मुक्त होकर एक शीतल, शांत, संतुलित, प्रेमिल, सुखी जीवन शैली को प्राप्त करने के लिए गीता के ज्ञान में डूबना आवश्यक है। गीता का ज्ञान केवल आध्यात्मिकता का विकास नहीं करती, अपितु भौतिक जगत में भी सुखी और संपन्न बनाने की कला सिखाती है।

 

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