ओड़िशा का लोकप्रिय त्योहार है प्रथमाष्टमी

पीयूष पांडेय/बड़बिल (ओड़िशा)। प्रथमाष्टमी ओडिशा का एक लोकप्रिय त्योहार है। यह हर घर के पहले बच्चे की समृद्धि और लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। बच्चे को सभी प्रकार की बुराइयों से बचाने के लिए प्रार्थना की जाती है।

जानकारी के अनुसार प्रथमाष्टमी के अवसर पर परिवार के सबसे बड़े बच्चे को नए कपड़े और एक विशेष मिठाई, एंडुरी पीठा से सम्मानित किया जाता है। ओडिशा का यह प्रमुख त्योहार मार्गशिरा महीने के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन मनाया जाता है।

बताया जाता है कि प्रथमाष्टमी पर्व अनिवार्य रूप से सबसे बड़े बच्चे की लंबी आयु और कल्याण का अनुष्ठान है। यह दिन ओडिशा में एक पारंपरिक त्योहार है। इसे स्थानीय भाषा में परुहा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सबसे बड़े बच्चे की लंबी उम्र की कामना की जाती है और षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। इसे लेकर कई जगहों पर प्रथमाष्टमी को ज्येष्ठा देवी भी कहा जाता है।

प्रथमाष्टमी सामाजिक मान्यता पर निर्भर करती है कि सबसे बड़े बच्चे को ही अभिभावकों के निधन के बाद परिवार की देखभाल करने की आवश्यकता होती है। उसे ही पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी होती है। सबसे बड़े बच्चे को चुनने के पीछे परंपरा के अनुसार यह तर्क दिया जाता है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद वही परिवार का पालन-पोषण करेगा।

इस अवसर पर विशेष केक जिसे एंडुरी या हलदी पत्र पीठा कहा जाता है। यह चावल का केक है जो मीठी सामग्री से भरा होता है और भाप में पकाने से पहले हल्दी के पौधे की हरी पत्तियों में लपेटा जाता है। जिसे प्रसाद के रूप में बनाया जाता है।

साथ हीं वितरित भी किया जाता है। केक को सबसे पहले षष्ठी देवी को अर्पित किया जाता है, जो बच्चों की रक्षक हैं। फिर प्रियजनों को वितरित किया जाता है।

वयोवृद्ध जनों के अनुसार प्रथमा अष्टमी को 14वीं शताब्दी से ओडिशा में त्योहार के रूप में मान्यता प्राप्त है। साथ ही इस दौरान अच्छी फसल की पैदावार भी देखने को मिलती है। अच्छी फसल के परिणामस्वरूप, किसान बहुत भाग्यशाली महसूस करते हैं। इसे वर्ष का सबसे अच्छा समय मानते हैं।

इस उत्सव से स्पष्ट है कि ओडिशा का प्रत्येक पारंपरिक त्योहार समृद्धि और सद्भावना के साथ कुछ सापेक्षता रखता है। इस दिन मंदिरों में भगवान को नए वस्त्रों से सजाया जाता है। इस दिन पुरी श्रीमंदिर में भगवान बलभद्र की पूजा की जाती है।

इस दिन लिंगराज मंदिर, विशेष रूप से वरुभेशरेश्वर देवताओं को मणिकर्णिका घाट ले जाया जाता है। सबसे बड़ी बेटी भार्गवी या महालक्ष्मी के रूप में इस दिन मौजूद मानी जाती है। भक्तों और गुरुओं द्वारा उसकी पूजा और प्रार्थना की जाती है।

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