मुहर्रम के दिन भी देश की खुशहाली और अमन शांति के लिए मांगी गई दुआऐं

आशूरा और हजरत इमाम हुसैन की भूली बिसरी यादें !

मुश्ताक खान/मुंबई। यौमे ए आशूरा के मौके पर मुंबई के बहुल क्षेत्रों के अलावा हर इलाके में हजरत इमाम हुसैन की शहादत को यद् किया गया, गम किस महीने में दस दिनों की मजलिस (बयान) के बाद शनिवार को जुलुस भी निकला गया। इस मौके पर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए या हुसैन -या हुसैन, ” इस्लाम जिन्दा होता है, हर कर्बला के बाद ” के नारों के साथ लोग कर्बला तक गए।

कर्बला में भी देश में अमन शांति और तरक्की के लिए दुआएं मांगी गई। दरअसल मुहर्रम गम और मातम का महीना है, इसे इस्लाम को मानने वाले मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम इस्लाम का पहला महीना होता है। यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन् का शुरुआती महीना है।

हर वर्ष की तरह इस साल 29 जुलाई को यौमे ए आशूरा मनाया गया। इस्लाम के मानने वाले लोगों के लिए यह महीना बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर भी मनाते हैं, जिसे आशूरा कहा जाता है।

मुहर्रम, बकरीद यानि ईदुल अजहा की नमाज के लगभग 28 से 29 दिनों के बाद मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार मुहर्रम की पहली तारीख से आसूरा यानि 10 दिनों तक रोजा रहने की परम्परा है। ऐसे में कुछ लोग कम रोजे भी रहते हैं।

क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?

इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10 वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है। कहा जाता है कि इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह था, जो इंसानियत का दुश्मन था।

यजीद को अल्लाह पर भरोसा नहीं था, यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनके खेमे में शामिल हो जाएं। हालांकि इमाम साहब को यह मंजूर न था। उन्होंने बादशाह यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। इस जंग में वह अपने बेटे, घर वाले और अपने साथियों के साथ शहीद हो गए।

कौन थे हजरत इमाम हुसैन?

इस्लाम की रूह से देखा जाये तो हजरत मुहम्मद (स. व.) के नवासे थे हजरत इमाम हुसैन, उनके वालिद यानी पिता का नाम मोहतरम ‘शेरे-खुदा’ अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे। इमाम हुसैन की मां बीबी फातिमा थीं। हजरत अली को खलीफा बनाया गया था। कहा जाता है कि हजरत अली की मौत के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन हजरत अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा कर लिया।

मुआविया के बाद उनके बेटे यजीद ने खिलाफत अपना ली। यजीद जालिम राजा बना। उसे इमाम हुसैन का डर था, इंसानियत को बचाने के लिए यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए।

कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?

मुहर्रम के 10वें दिन यानी आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है। इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है, जिसकी हुबहू नकल कर ताजिया बनाई जाती है। शिया उलेमा के मुताबिक, मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखी जाती है। इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया और जुलूस निकालते हैं। हालांकि ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया समुदाय में ही होती है।

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