बजट राशि खर्च न करना झारखंडी समाज के साथ धोखा एवं अन्याय-विजय शंकर नायक

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। बजट की राशि को खर्च ना करके झारखंडी समाज के विकास की करोड़ो, अरबो की राशि सरेंडर कर देने की परम्परा गरीब झारखंडी समाज के साथ धोखा एवं अन्याय है।

उपरोक्त बातें 18 फरवरी संपूर्ण भारत क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सह झारखंड, छत्तीसगढ़ प्रभारी विजय शंकर नायक ने राज्य की राजधानी रांची स्थित अपने कार्यालय कक्ष में कही। झारखंड सरकार के जनवरी तक मात्र 54 फ़ीसदी राशि ही खर्च होने एवं 16,500 करोड़ रुपए सरेंडर होने की संभावना पर नायक ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उक्त बातें कही।

नायक ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए कुल राशि 116418 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया था। इसमें से विकास योजनाओं पर 70973 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई गई थी। सरकार बीते माह जनवरी तक विकास योजनाओं पर सिर्फ 44546.65 करोड़ रूपया ही खर्च पाई है, जो झारखंड के सदियों से शोषित पीड़ित अधिकार से वंचित गरीब, दलित, आदिवासी, मूलवासी समाज के साथ साथ सरासर धोखा एवं अन्याय है।

नायक ने कहा कि सभी सरकारों ने चाहे बीजेपी-आजसू, झामुमो-कांग्रेस-राजद की सरकार रही हो, विकास का सपना दिखाकर तथा विकास ना कर सभी सरकारों ने करोड़-अरबो रुपया सरेंडर करने की परम्परा बना दिया, जो आज तक चल रहा है। उन्होंने कहा कि झारखंड जैसे गरीब राज्य के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।

कहा कि जिस झारखंड राज्य में गरीब, असहाय माता, बहने, बुजुर्ग महिला प्रोटीन के अभाव में एनीमिया, खुन की कमी जैसे रोग से 70 प्रतिशत ग्रसित हैं। जहां आदिवासी-मूलवासी समाज का पलायन जोरों पर है। गरीबी, बेरोजगारी चरम सीमा पर है। जहां की बच्ची भात भात कह कर भूख से दम तोड़ देती हो, वहां विकास की राशि का सरेंडर होना सभी राजनेताओं, नौकरशाहों एवं सभी सरकार के मंत्रियों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

नायक ने कहा कि विकास योजनाओं पर जो खर्च किए गए वह बहुत ही शर्मसार करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के कृषि विभाग मात्र 16.25 प्रतिशत, पशुपालन विभाग 9.80 प्रतिशत, मत्स्य विभाग 9.45 प्रतिशत, सहकारिता विभाग 27.83 प्रतिशत, भवन निर्माण विभाग 61.20 प्रतिशत, वाणिज्य कर विभाग 42.74 प्रतिशत, नागर विमानन विभाग 7.05 प्रतिशत, पेयजल विभाग 46.80 प्रतिशत, उत्पाद विभाग 1.20 प्रतिशत, खाद्य आपूर्ति विभाग 46.23, वन एवं पर्यावरण विभाग 28.67 प्रतिशत, आदि।

वित्त विभाग 32.45 प्रतिशत, स्वास्थ्य विभाग 45.19 प्रतिशत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग 45.39 प्रतिशत, उच्च शिक्षा विभाग 12.76 प्रतिशत, गृह एवं कारा विभाग 37.06 प्रतिशत, आपदा प्रबंधन शून्य, उद्योग विभाग 34.34 प्रतिशत, सूचना प्रावैधिक विभाग 17.28 प्रतिशत, श्रम नियोजन विभाग 68.74 प्रतिशत, विधि विभाग शून्य, खान एवं भूतत्व विभाग 10.46 प्रतिशत, कार्मिक विभाग 39.62 प्रतिशत, योजना विकास 33.83 प्रतिशत, पंचायती राज द्वारा 63.07 प्रतिशत, आदि।

 

भू- राजस्व विभाग द्वारा 44.99 प्रतिशत, पथ निर्माण विभाग द्वारा 53.47 प्रतिशत, ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 43.26 प्रतिशत, आरइओ द्वारा 44.20 प्रतिशत स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा 58.65 प्रतिशत, कल्याण विभाग द्वारा 29.90 प्रतिशत, पर्यटन विभाग द्वारा 29.21 प्रतिशत, कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा 36.19 प्रतिशत, नगर विकास विभाग द्वारा 26.87 प्रतिशत, आवास मद में शून्य, जल संसाधन मद में 58.89 प्रतिशत, समाज कल्याण मद में 65.76 प्रतिशत अभी तक राशि खर्च की गई है जो काफी असंतोषजनक है।

नायक कहा कि राज्य सरकार के 40 विभागों में से 8 विभागों ने आबंटित राशि का मात्र 25 प्रतिशत राशि से भी कम खर्च की तो 3 विभाग ने कुछ खर्च किया ही नहीं। 9 विभाग ने मात्र 50 प्रतिशत से ज्यादा राशि खर्च किया और 18 विभागों में 50 प्रतिशत से भी कम खर्च किया जो राज्यहित में नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपने आंतरिक संसाधनों में वृद्धि करना चाहिए, ताकि शत प्रतिशत राशि विकास कार्य में खर्च हो सके और राशि सरेंडर करने की परंपरा कम से कम झारखंड जैसे गरीब राज्य के लिए बंद होने चाहिए।

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