बेसहारों का सहारा बनीं सुचारिता कनकरत्नम

यात्रा-एक- राह की अनोखी पहल

आनंद मिश्र/ मुंबई।
जब भी कभी कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे समाज सेवकों का जब भी नाम लिया जाएगा तो उसमें सुचारिता कनकरत्नम (Sucharita Kanakratnam) जैसी समाजसेवी का नाम सबसे आगे रखा जाएगा। कोरोना जैसी घातक महामारी और इसे रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने एक तरफ जहां लाखों बेघरों, निराश्रित, गरीबों, जरूरतमंदों को भूखा तड़पने के लिए छोड़ दिया वहीं, दूसरी तरफ श्रीमती कनकरत्नम ने अपने एनजीओ और इसके वॉलुनटियर्स ने आगे आकर इन हजारों लोगों को न सिर्फ भूख से बचाया बल्कि उन्हें राज्यों से बाहर भेजकर उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाया। 15 सालों से स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों के उत्थान के लिए काम करने वाली श्रीमती कनकरत्नम ने अपने एनजीओ “यात्रा: एक राह” के मार्फत न जाने कितने जरूरतमंदों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई। उन्होंने नर्सों, मरीजों और उनके रिश्तेदारों को और कई और जगह जगह अटके हुए लोगों को मुंबई के बाहर उनके घर भेज कर उनके लिए जैसे देवदूत बन गई। आज भी जब कहने के लिए लॉकडाउन खत्म हो गया है, परंतु फिर भी शहर के कई हिस्सों में सैकड़ों ऐसे निराश्रित और असहाय लोग पड़े हैं जिनके लिए श्रीमती कनकरत्नम सुबह शाम भोजन की व्यवस्था कर रही हैं। उनसे उनकी सामाजिक सेवा की यात्रा के बारे में जानने के लिए हमारे संवाददाता आनंद मिश्र ने बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश:

सुचारिता कनकरत्नम

सवाल: मैडम, सबसे पहले यह बताइए कि समाज सेवा की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ ?
जवाब: मैं कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से ही समाज सेवा की तरफ काफी आकर्षित थी। जब मैंने समाजशास्त्र से एमए किया तो मेरी इच्छा थी एक आईएएस अफसर बन लोगों की सेवा करूँ। परंतु पारिवारिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। फिर भी मैंने सोचा कि समाज सेवा करना है तो उसके लिए किसी पोजीशन की क्या जरूरत। तभी से मुझसे जो कुछ भी बन पड़ा मैं करती आ रही हूं। मैं स्लम में रहने वाले या गरीब मजदूरों के बच्चों को यूपीएससी का एग्जाम दे सकने के लिए, उनके मनोबल को बढ़ाने के लिए और उनका मार्गदर्शन करने के लिए पिछले की सालों से मुफ्त में क्लासेज भी लेती रहती हूं।

सवाल: आप अपनी एनजीओ के बारे में कुछ बताइए।
जवाब: पहले तो मैं पिछले 15 सालों से शहर के मुख्य झुग्गी झोपड़ियों वाली बस्तियों जैसे कि अंटॉप हिल, धारावी, माटुंगा, साकीनाका, शिवरी आदि जगहों में रहने वाले स्ट्रीट चिल्ड्रन को एजुकेट करने का काम करती आ रही हूँ। बाद में मैंने सोचा कि क्यों ना मैं खुद एक एनजीओ के मार्फत इसे व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाऊँ। इसलिए 3 साल पहले मैंने “यात्रा: एक राह” नाम के एनजीओ की स्थापना की और इसका रजिस्ट्रेशन कराया। इनमें कुछ वॉलिंटियर्स को जोड़ा और फिर इन्हीं सभी बच्चों को बुलाकर उनके अंदर छुपा हुआ टैलेंट निखार कर सामने लाने की लगातार कोशिश की जाती है। आखिर इन बच्चों को भी समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का पूरा हक है।

सवाल: किस तरह से सँवारता है आपका एनजीओ इनका भविष्य ?
जवाब: इन सभी स्ट्रीट चिल्ड्रन को हर रविवार को घाटकोपर के रेल्वे कालोनी में एक खास जगह जमा किया जाता है और फिर उनकी स्क्रीनिंग की जाती है। उनकी पसंद नापसंद के बारे में पूछा जाता है। जिन बच्चों का डांस या सिंगिंग में या किसी थिएटर में काम करने की इच्छा होती है उन्हें मैं अपने फैमिली फ्रेंड योगेश खट्टर से मदद लेकर वर्कशॉप दिलाती हूं। हरियाणा में बसे श्री खट्टर साल में दो बार विंटर वेकेशन और समर वेकेशन में मुंबई आते हैं और इन बच्चों को थिएटर में वर्कशॉप देते हैं। जो बच्चे पढ़ने में अपनी दिलचस्पी दिखाते हैं तो उनके लिए मैंने घाटकोपर के रामनिरंजन झुनझुनवाला कॉलेज (Ramniranjan Jhunjhunwala College) में पढ़ने की और प्रतियोगिता एग्जाम की तैयारी करने की व्यवस्था कराई है। यह सिलसिला पिछले 4 सालों से अनवरत यूं ही चल रहा है। इसके अलावा हमारा एक “यात्रा यूथ क्लब” (Yatra Youth Club) भी है जो बच्चों को उनकी पर्सनैलिटी डेवलपमेंट करने में मदद करती है। इस क्लब ने हमारे इन बच्चों के साथ स्वच्छ भारत, वृक्षारोपण अभियान जैसे कई जनोपयोगी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। हमारा मुख्य मकसद इन बच्चों के अंदर वैल्यू निर्माण करना है। इस साल कोरोना महामारी के चलते हालांकि इन बच्चों की गर्मियों की ट्रेनिंग नहीं हो पाई।

सवाल: लॉकडाउन के दौरान आपके एनजीओ ने क्या सामाजिक काम किए ?
जवाब: जबसे लॉकडाउन लगा तभी से हमारे एनजीओ और हमारे वॉलिंटियर्स ने मोर्चा संभाला और यह सुनिश्चित किया कि झुग्गी झोपड़ियों और बस्तियों में रहने वाले मजदूर भाई बहन को भूखा न सोना पड़े इसके लिए हमने इन लोगों को चुन-चुन कर उन्हें 10 से 15 दिन का राशन वितरित किया। हमारी गाड़ी उनके द्वार द्वार जाकर खाना वितरित किया। फिर लगभग एक हजार मजदूरों के लिए अलग से दो वक्त का खाना मुहैया कराया। अलग-अलग एरिया में तैनात पुलिसकर्मियों को चाय, बिस्किट और नाश्ते का इंतजाम किया। बाद में कई एरिया में मैंने सूप पैकेज की भी व्यवस्था की।

सवाल: इसके अलावा और क्या किया आपने ?
जवाब: इसके अलावा मैं लॉकडाउन में मुंबई में फंसे लोगों को उनके राज्यों में भेजने का काम किया। एक एडवांस्ड स्टेज की गर्भवती अचानक लॉकडाउन के कारण मुंबई में अटक गई थी। उसे अपने घर विशाखापत्तनम जाने के लिए मैंने पास निकलवा कर उसे भेजने में मदद की। इसी तरह टाटा अस्पताल के कुछ कैंसर पेशेंट और उनके संबंधियों को अस्पताल में डिस्चार्ज कर दिया था। वे अपने गांव जाने में असमर्थ थे। मैंने उन्हें उनके गांव भेजने में मदद की। मुझे याद आता है कि 36 मजदूरों को बिना मजदूरी दिए उन्हें अचानक नौकरी से निकाल दिया गया था और वे चार दिनों से शिवड़ी के एक पुरानी बिल्डिंग में भूखे प्यासे फंस गए थे। जब स्थानीय लोगों ने मुझे इसके बारे में बताया तो मैंने उनके लिए भोजन के अलावा उन्हें उनके राज्यों में भेजने का प्रबंध किया।

सवाल: आपके इस सामाजिक काम को क्या कोई अवॉर्ड मिला ?
जवाब: जी जरूर मिला। मुझे कलानिलयम संस्था से और मुंबई की जानी-मानी हार्मनी फाउंडेशन की तरफ से कोरोना काल में किए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुए हैं। इन सबसे बढ़कर, वर्ल्ड पीस ऑर्गेनाइजेशन ने मेरे सोशल सर्विस को देखते हुए मुझे डॉक्टरेट का लेटर भी दिया है। मैं इन सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूं, पर यह भी कहना चाहती हूँ कि मैंने जो भी किया वो किसी अवॉर्ड या प्रशस्ति पत्र के लिए नहीं किया।

सवाल: लॉकडाउन के दौरान पुलिस, बीएमसी के कामकाज को किस तरह देखती हैं आप ?
जवाब: मैं तो कहूंगी कि चाहे वह मुंबई पुलिस हो या बीएमसी हो या कोई और सरकारी संस्था, या सारे हेल्थ केयर वर्कर्स या हमारे जैसे अन्य एनजीओ .. सभी ने महान काम किया है। इनके हार्ड वर्क की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। इसीलिए तो प्रधानमंत्री जी ने भी इन योद्धाओं की दिल खोलकर तारीफ की। मैं भी उन्हें सैलूट करती हूं। मैंने देखा कि जब सभी लोग अपने घरों में बंद थे। खिड़कियों से बाहर झाँकते थे तो ऐसे में यह सारे पुलिसकर्मी, बीएमसी के लोग और दूसरे हेल्थ वर्कर सड़कों पर उतर कर अपनी जान जोखिम में डालकर अपना फर्ज निभा रहे थे। उनके इसी कार्य के भावना को देखकर मैंने भी खुद और अपने वॉलिंटियर्स को आगे बढ़कर समाज की सेवा करने का हौसला बढ़ाया। यहां मैं यह भी कहना चाहती हूं कि जो भी सामाजिक काम किए गए वे सभी सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों को ध्यान में रखकर किए गए।

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