उद्धव सरकार फेल

लोगों को याद आते हैं फड़नवीस जी: मोहित भारतीय

आनंद मिश्र 
मुंबई की सरजमीं को अपनी कर्मभूमि बना चुके और अपने सरनेम कंबोज को हटाकर इसे राष्ट्रीयता से जोड़ चुके मोहित भारतीय (Mohit Bhartiya), एक ऐसे युवा उद्यमी, मोटिवेशनल लीडर और भारतीय जनता पार्टी की जड़ों से जुड़े कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बहुत ही कम समय में अपने मिशन और विज़न का विस्तार कर सामाजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में एक मुकाम हासिल कर लिया है। ऐसे समय में जब मुंबई शहर में कोरोना का प्रकोप बेकाबू होता जा रहा है, उन्होंने अपने अनेकों मुहिम छेड़कर यह साबित कर दिखाया है कि वे शब्दवीर नहीं, बल्कि सच्चे मायने में कर्मवीर हैं। मुंबई भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष, वर्तमान में जनरल सेक्रेटरी और उत्तर भारतीय जन-मानस में तेजी से लोकप्रिय हो रहे श्री भारतीय का मानना है कि जनता उसी को फॉलो करती है जो जनता के जीवन में कुछ बदलाव लाता है, जो जनता को संरक्षण का अहसास कराता है और जो सदैव जनता की बेहतरी के लिए कार्य करता रहता है। महामारी के दौर में आज के इस तेजी से बदलते हालात पर आनंद मिश्र ने उनका साक्षात्कार लिया। पेश है प्रमुख अंश: 
आपने बीएमसी से शवों का अंतिम संस्कार करने की परमिशन क्यूँ मांगी है ?
जवाब: मैंने और मेरी टीम ने नोटिस किया कि शहर भर के अस्पतालों में लाशों का अंबार लगने लगा है और लॉकडाउन तथा बीएमसी की नाकामी से इन पार्थिव शरीरों अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है। इससे लोगों के बीच में बड़ा ही गलत मैसेज जा रहा है और मृतकों के परिजन काफी आक्लांत हैं। इसलिए बतौर मोहित भारतीय फाउंडेशन चेयरमैन, मैंने बीएमसी कमिश्नर से औपचारिक मुलाकात कर उनसे अनुमति देने का अनुरोध किया है कि ताकि हमारी टीम मृतकों का उनके धर्म/मजहब के रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार कर सके।
तो क्या परमिशन मिल गई ?
जवाब: दो हफ्ते होने को आए हैं, अभी तक बीएमसी प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया है। मैं खुद अपने स्तर पर फॉलो-अप कर रहा हूँ। उम्मीद नहीं छोड़ी है। पर मुझे लगता है कि बीएमसी सही ढंग से काम नहीं कर पा रही है। इस मुद्दे से मैं पार्टी के सीनियर लीडर्स से टच में हूँ।
क्या महाराष्ट्र सरकार कोरोना से लड़ने में फेल साबित हुई है ?
जवाब: इस सवाल का जवाब किसी से भी पूछ लीजिए। सब यही कहेंगे कि इस सरकार के पास इतनी बड़ी आपदा से निपटने के लिए ना तो कोई प्लानिंग है और ना कोई विज़न। वर्क फर्म होम और सोशल डिस्टेंसिंग का सबसे अधिक अनुपालन खुद सूबे के मुखिया उद्धव ठाकरे जी कर रहे हैं और उन्होंने खुद को जनता से आईसोलेट कर लिया है। ऐसे में सभी लोगों को कुशल प्रशासक और टास्क मास्टर देवेन्द्र फड़नवीस जी की याद आ रही है वे और कह रहे हैं कि अगर वो राज्य के मुख्यमंत्री होते तो कोरोना आज कंट्रोल में होता।

तो इसका प्रसार रोकने हेतु क्या कर रहे हैं आप ?
जवाब: अपनी सीमा में रहकर जो भी बन रहा है, मैं कर रहा हूँ। एक युवा होने ने नाते कुछ लोगों के साथ टीम बनाकर “सेव मुंबई” के नाम से एक संस्था का गठन किया है जो मुंबई में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए फ्रन्ट पर काम करेगी। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है। मुंबई बचेगी तो देश बचेगा, इस भावना के साथ मैंने शहर भर के जागरूक युवाओं से आगे आकर इस कम्पेन से जुड़ने की अपील की है। कई जगहों पर लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। इसके बारे में जागरुकता फैलाना हमारी टॉप प्रॉयरिटी है।

आपने एक मैसेज में ऐसा क्यों कहा है कि मुंबई में कई समाज का नेतृत्व वायरसग्रस्त हो चुका है ?
जवाब: आपको याद होगा कि किस तरह कुछ ही दिनों पहले मुंबई के उत्तर भारतीय समाज के लोग ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में बदहवास होकर अपने-अपने गाँव भाग रहे थे। तब मुंबई में उनकी खोज-ख़बर लेने वाला लीडरशिप उनके साथ था ही नहीं। प्रवासी मज़दूरों का अपने आप टैंकर, ट्रक, ऑटो और यहां तक कि पैदल ही अपने घरों की तरफ पलायन करना यही बताता है कि उत्तर भारतीय लोगों का न तो यहां की सरकार पर विश्वास था और न ही यहां पर उन्हें अपना ऐसा कोई लीडर या नेता नज़र आया जिससे लोग मदद की गुहार लगा सकते थे।

आप उत्तर भारतीय लीडरशिप पर सवालिया निशान लगा रहे हैं … 
जवाब: दुर्भाग्य से फिलहाल, मुंबई में उत्तर भारतीय समाज की आवाज़ बुलंद करने वाली आवाज़ ही नहीं है। शहर में एक बड़ी जनसंख्या के बावजूद राजनीतिक पटल पर उत्तर भारतीयों की उपस्थिति नहीं के बराबर हो गई है। पिछले दस साल में सबसे अधिक घाटा केवल और केवल उत्तर भारतीय समाज का हुआ है और अब उनका अकाल साफ़ नज़र आता है। 2009 में जहां मुंबई के 36 विधायकों में से 19 गैर-मराठी थे। उनमें छह मुसलमान, चार दक्षिण भारतीय, तीन उत्तर भारतीय, तीन गुजराती/मारवाड़ी, दो पंजाबी और एक ईसाई विधायक थे। 2019 में मुंबई के गैर-मराठी विधायकों की संख्या 19 से घटकर 11 रह गई। इस दौरान गुजराती/मारवाड़ी का प्रतिनिधित्व बढ़ा और उनके विधायक तीन से बढ़कर चार हो गए। आज विधान सभा में विद्या ठाकुर के रूप में एक मात्र उत्तर भारतीय प्रतिनिधित्व है।

ऐसा क्यों हुआ ?
जवाब: जैसा कि मैंने कहा, हमारे समाज का नेतृत्व वायरसग्रस्त हो चुका है। यही वजह है कि कोरोना (Coronavirus) के संक्रमण काल में जब उत्तर भारतीय समाज के नेतृत्व की सबसे अधिक ज़रूरत थी, तब उनके नेता पिक्चर से गायब थे। उत्तर भारतीय समाज को नेतृत्व का अकाल इस हद तक झेलना पड़ा कि सोनू सूद जैसे अभिनेता को मैदान में उतरना पड़ा। इस पर आत्म मंथन की ज़रूरत है कि क्या उत्तर भारतीय नेताओं का हिंदी भाषी जनता से जुड़ाव घट रहा है? इसलिए आज उत्तर भारतीय समाज को ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है, जो इस समाज के लोगों के अधिकारों की बात तो करे ही, उन अधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरत पड़ने पर सरकार से लड़ने का माद्दा रखता हो।

 989 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *