भ्रष्टाचार के कारण SRA की योजनाएं फेल

पुनर्वास के चक्कर में बेघर हुए मुंबईकर


मुंबई। लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के कारण सरकारी योजनाओं पर पानी फिर जाता है या अधर में लटके-लटके दम तोड़ देती है, कई बार सरकारी योजनाओं में बाबुओं के कारण देर होता है और उसकी मूल लागत से दोहरी कीमत सरकार को चुकानी पड़ती है। कुछ ऐसा ही मामला महानगर में झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण (एसआरए) में भी हो रहा है।

एसआरए के तहत होने वाले विकास के नाम पर लूट खसोट के कारण करीब 79 फीसदी परियोजनाएं अब भी अधर में लटकी हुई हैं। इन परियोजनाओं के प्रभावितों में कोई ट्रांजिट कैंप में रह रहा है तो कोई पात्र और अपात्र का शिकार हुआ है। वहीं सरकार अपनी कुर्सी संभालने के चक्कर में लगी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि शहर या लोगों का विकास कैसे और कब होगा?

गौरतलब है कि मुंबई सहित उपनगरों में एसआरए के तहत सैकड़ों परियोजनाओं का काम शुरु किया गया, लेकिन सालों से इस तरह की परियोजनाएं अधर में लटकी हैं। इन परियोजनाओं के निवासियों को नया घर तो दूर की बात है खुद का घर भी दांव पर लग गया। ऐसे प्रभावितों में कोई ट्रांजिट कैंप में रह रहा है तो कोई किराये का आवास लेकर नये घर मिलने का सपना देख रहा है।

मुंबई के कई इलाकों में एसआरए के तहत बन कर मिलने वाले आवासों के इंतजार में बुढ़े हो चुके हैं तो कई परलोक सिधार चुके हैं। इससे झोपड़ामुक्त मुंबई व शंघाई का सपना देखने वाली सरकार विफल रही है। इस परियोजना के आने से लाखो मुंबईकर बेघर हो चुके हैं। उन्हें अपने हक की छत नहीं मिल पाया। इस परियोजना में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और घोटालों को देखते हुए, प्रबंधन ने परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक पर लाने के लिए ठोस कदम भी उठाया, लेकिन भ्रष्टाचारियों ने उसे विफल कर दिया।

उल्लेखनीय है कि मुंबई को शंघाई के तर्ज पर झोपड़ामुक्त बनाने के लिए एसआरए (झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण) का गठन किया गया था, लेकिन प्राधिकरण में बैठे मगरमच्छो ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। विशेषज्ञ के अनुसार मुंबई में एसआरए की तरफ से अब तक 18 से 20 फीसदी झोपड़ों का ही पुनर्विकास हो सका है। वहीं 80 से 82 फीसदी परियोजनाएं भ्रष्ट अधिकारियों व लालची बिल्डरों की वजह से अधर में लटका हुआ है।

एसआरए की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, मुंबई में एसआरए योजना के तहत 1,513 परियोजनाओं के पुनर्विकास का काम जारी है, लेकिन इनमें 70 प्रतिशत परियोजनाओं की शुरुआत वर्ष 2004 से पहले की गई थी। लेकिन अब तक उन परियोजनाओं का काम पूरा नहीं हो सका है। इस लेट- लतीफी की मार लाखों झोपड़ाधारकों को सहनी पड़ रही है। हाउसिंग विशेषज्ञों के अनुसार, एसआरए परियोजना में देरी के पीछे कई कारण हैं। इनमें डिवेलपर पर किसी भी प्रकार की सख्त कार्रवाई नहीं होना। निवासियों के मतभेद को तय समय में न सुलझा पाना। इसके अलावा, डिवलपरों का दिवालियापन की वजह से भी एसआरए परियोजनाओं का पुनर्विकास नहीं हो पाया है।

बताया जाता है कि एसआरए परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक पर लाने के लिए राज्य सरकार और एसआरए प्रबंधन ने कई कदम उठाए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। जैसे- एसआरए परियोजना के लिए लोन की सुविधा मुहैया कराना और 10 साल से परियोजना को पूरा न कर पाने वाले डिवेलपरों पर कार्रवाई करते हुए 60 से अधिक डिवेलपरों को परियोजना से हटाना। जो कि नाकाफी बताया जाता है। इन ठोस कदमों का असर जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं दिखा पाया।

मौजूदा सरकार ने एसआरए परियोजना के लिए अक्टूबर 2017 में लोन ले सकने की सुविधा शुरू की थी। इस योजना को शुरू करके 9 महीने से अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन एसआरए परियोजना के लिए लोन के सिर्फ दो ही आवेदन मिलने की जानकारी एसआरए के वरिष्ठ अधिकारी ने दी है। निवासियों के घर बनाने के लिए लोन शिवशाही पुनवर्सन प्रकल्प लि़ (एसपीपीएल) से दिया जाएगा, जबकि बिकाऊ घरों के लिए लोन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से दिए जाने की सुविधा है।

 


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