समाज सेवा करने के लिए किसी पार्टी या पद की जरूरत नहीं- जेपी

आनंद मिश्र
मुंबई।
कहते हैं कि जिस तरह से पूजा या इबादत करने के लिए किसी मंदिर या मस्जिद में जाने की आवश्यकता नहीं होती, उसी तरह से समाज सेवा करने के लिए किसी पार्टी, संगठन के बैनर की जरूरत नहीं पड़ती। जरूरत पड़ती है तो सिर्फ सेवाभाव की लगन और कर्तव्यनिष्ठा की। जयप्रकाश अग्रवाल (Jai Prakash Agarwal) जो अपने सर्कल में जेपी के नाम से भी जाने जाते हैं, इसी के एक मिसाल हैं। पहले शिवसेना की छात्र इकाई से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले जेपी ने जब देखा कि उनके पसंदीदा लीडर राज ठाकरे को पार्टी में उनका हक नहीं मिला तो वे शिवसेना छोड़कर मनसे में आ गए।

परंतु जब उन्हें टिकट देने की बात आई तो उन पर परप्रांतीय का ठप्पा लगाकर टिकट देने से राज ठाकरे की पार्टी ने इंकार कर दिया। फिर उन्होंने मनसे (MNS) को भी अलविदा कह बहुजन समाजवादी पार्टी को चुना और इसके टिकट पर पिछले साल अणुशक्ति विधानसभा सीट से एमएलए का चुनाव भी लड़ा। हालांकि उन्हें इस चुनाव में सफलता नहीं मिली, फिर भी उन्होंने लोगों की सेवा करने का व्रत नहीं तोड़ा। लॉकडाउन में तो जैसे उन्होंने अपनी समाज सेवा का काम टॉप गियर में लगा दिया। उनसे इन्हीं हालात पर चर्चा करने के लिए जगत प्रहरी संवाददाता आनंद मिश्र ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश..

Jai Prakash Agarwal

सवाल: सबसे पहले आप यह बताइए कि आप किस राजनीतिक विचारधारा के हैं ?

जवाब: मेरी सिर्फ एक ही विचारधारा है और वह है जनसेवा की। ऐसा करने के लिए जो पार्टी मुझे अच्छी लगेगी वहां मैं काम करूंगा और अगर बिना किसी पार्टी में रहकर काम करना होगा तो मैं पार्टी छोड़कर काम करूंगा और फिलहाल वही मैं कर रहा हूं। मैंने समाज सेवा 19 साल की उम्र से ही शुरू कर दी थी और आज भी उसी राह पर आगे बढ़ रहा हूं।

सवाल: लॉकडाउन के दरमियान आपने क्या समाज सेवा की?

जवाब: जिस तरह से अचानक लॉक डाउन लगा दिया गया था, लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो गए थे। इसकी मार सबसे ज्यादा गरीबों, भिखारियों, मजदूरों, ऑटो और टैक्सी ड्राइवरों जैसे लोगों लोगों पर पड़ी जो रोज कमाने और रोज खाने वाले लोग थे। उनके पास अनाज का संकट उत्पन्न हो गया। इसलिए मेरा सबसे पहला काम यही था कि मैं किसी को भूखा नही मरने नहीं दिया जाए।

सवाल: तो यह काम आपने कैसे किया ?

जवाब: मैं नवनिर्माण बेरोजगार सेवा सहकारी संस्था का चेयरमैन हूं और इसके अलावा मल्लेश चैरिटेबल ट्रस्ट का एक सदस्य भी हूं। अपने वॉलिंटियर्स की टीम के कुछ लोगों को मिलाकर मैंने यह निश्चय किया कि लॉकडाउन में कोई भूखा नहीं रहेगा। इसके लिए युद्ध स्तर पर मेरी टीम ने लोगों के वाशीनाका, भरत नगर, विष्णु नगर आदि एरिया के घर घर जाकर दो महीने का राशन किट और सड़कों पर रहने वाले लोगों के लिए दोनों वक्त का खाना देना शुरू किया और यह सिलसिला अभी लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद भी जारी है। एक बार और साफ कर दूं कि मैंने अपनी टीम को बोल कर रखा था कि राशन बांटने या और कोई समाज सेवा करते समय वह किसी भी गरीब के साथ फोटो नहीं खींचेंगे क्योंकि यह तो एक तरह से उनके साथ खिलवाड़ ही होता है। बहुत सारी जनता जनार्दन हम जैसे समाज सेवकों के सहारे रहना पड़ रहा है।

सवाल: तो क्या लॉकडाउन के दरमियान सरकार ने या बीएमसी ने कोई काम नहीं किया ?

जवाब: यह सरकार और बीएमसी (BMC) दोनों कोरोना की रोकथाम में शत प्रतिशत फेल हो गई है। सच पूछिए तो अभी तक कोई सिस्टम दिखा ही नहीं जिससे पता चले कि यह सरकार सच में इस महामारी को रोकने के प्रति गंभीर है। मैं तो यह कहूंगा कि कोरोना से कम लोग मरे हैं और असुविधा से ज्यादा लोग मरे हैं। मेरी खुद की लोकलिटी में एक कोरोना पॉजिटिव पेशेंट को ले जाने में एंबुलेंस को पूरे 5 घंटे लग गए और उसे भी किसी क्वॉरेंटाइन सेंटर में ले जाया गया ना कि अस्पताल में उसका इलाज करने के लिए। आप देख सकते हैं कि महाराष्ट्र कोरोना के केस में नंबर वन है। यह सरकार की विफलता नहीँ तो और क्या है।

सवाल: और क्या कार्य किया आपने ?

जवाब: इसके अलावा हमारी टीम जहां जहां भी गई उसने अपनी ड्यूटी निभा रहे पुलिसवालों को पानी की बोतलें, सैनिटाइजर और मास्क बांटे। इसके अलावा हमारे वॉलिंटियर्स ने यह भी सुनिश्चित किया की आसपास के इलाकों में साफ सफाई का ध्यान रखा जाए और इसके लिए उन्होंने अलग-अलग जगहों पर अपनी टीम बनाकर लगातार साफ सफाई और सैनिटाइजेशन का बराबर ध्यान रखा।

सवाल: पर सरकार ने इसे रोकने के काफी रोकथाम किए हैं ?

जवाब: जो भी रोकथाम किए हैं वह सिर्फ दिखावा है। सैकड़ों करोड़ रुपया लगाकर सरकार ने बीकेसी और गोरेगांव में कोविड अस्पताल बनवाए हैं जो कि खाली पड़े हैं। जबकि बड़े-बड़े नेताओं के व्यायामशाला या उनके शेड, या बालवाड़ी, आंगनवाड़ी को भी इस काम में लगाया जा सकता था। इससे सरकार के करोड़ो रूपये की बचत हो जाती और लोगों को उनके नजदीक ही क्वारंटाइन सेंटर भेजा जा सकता था। जिन जिन एजेंसियों को फूड और कोरोना से लड़ने की दवाइयां तथा दूसरे उपकरण सप्लाई करने के ठेके दिए गए थे वह सब फेल हो गए। यह सरकार की नाकामी नहीं तो और क्या है।

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