माहुलवासियों के जीवन से खिलवाड़ ना करे सरकार : HC

संवाददाता/ मुंबई। सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय (Bombay Highcourt) के फैसले पर माहुल (Mahul) के परियोजना प्रभावितों में खुशी का माहौल है। बता दें की इससे पहले भी बंबई उच्च न्यायालय ने मनपा को आदेश दिया था, लेकिन मनपा के अधिकारी व कर्मचारी अदालत के आदेशों को ताक पर रखकर उक्त आदेश के बाद भी शहर के विभिन्न स्थानों से परियोजना प्रभावितों को माहुल के म्हाडा कॉलोनी में जबरन पुनर्वास कराया। अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा की 23 सितंबर को बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को मानपा के अधिकारी मानते हैं या फिर अपनी मनमानी करते हैं।

माहुलवासियों के मुताबिक, उनकी लड़ाई किसी सरकार अथवा प्रशासन के विरुद्ध नहीं, बल्कि अपने और अपने परिवार की जीवन की रक्षा को लेकर है। वे परिवार के सदस्यों को घुट-घुटकर मरते नहीं देखना चाहते। इसीलिए पिछले दो वर्षों से सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ रहे हैं।

गौरतलब है कि बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा था कि मुंबई के अत्यधिक प्रदूषित माहुल इलाके में लोगों के रहने से न सिर्फ उनके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है, बल्कि आसपास के क्षेत्र में स्थित तेलशोधकों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता पैदा हो सकती है। आईआईटी मुंबई से लेकर अन्य सरकारी संस्थानों ने भी माना है कि माहुल की हवा बहुत प्रदूषित है।

यहां रहने वाले लोगों का कहना है, ‘माहुल रहने लायक नहीं है। हम भी राज्य के नागरिक हैं। राज्य सरकार और बीएमसी (BMC) को संवेदना दिखाते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर अमल करना चाहिए। न्याय का सिद्धांत भी यही कहता है कि अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है। पूरे मामले में बड़ी संख्या में लोग पीड़ित है। सरकार को उन्हें न्याय देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से परियोजना से प्रभावित लोगों का ऐसे स्थानों पर पुनर्वास नहीं किया जाएगा।’

सामाजिक कार्यकर्ता और पूरे मामले में सक्रिय बिलाल खान ने कहा, ‘हाई कोर्ट का फैसला न्यायसंगत है। अब सरकार को दिखाना चाहिए कि वह भी नागरिकों के साथ है। एक ओर केंद्र सरकार 2022 तक सबको घर देने का दावा कर रही है। ऐसे में माहुल के लोगों से सरकार को क्या आपत्ति है। सरकार और बीएमसी को इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहिए, बल्कि अपने नागरिकों के हित में अन्यत्र घर देने अथवा ऐसा होने तक मासिक किराया देना चाहिए।

हाई कोर्ट की एक पीठ ने पहले भी निर्देश दिया था और अब मुख्य न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग की अगुवाई वाली खंडपीठ ने भी माहुल के लोगों के पक्ष में फैसला सुनाया है। अगर सरकार अथवा बीएमसी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है, तो माहुल के लोग अपना दर्द वहां भी बयां करेंगे। वैसे सरकार और बीएमसी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से बेहतर है कि वे माहुल के लोगों को स्वच्छ हवा वाले इलाके में घर देकर न्याय करें।’

पूजा पंडित कहती हैं, ‘हाई कोर्ट के फैसले के बाद सरकार और बीएमसी को उन्हें वहां से अन्यत्र स्थापित करने के लिए जल्दी से जल्दी कदम उठाना चाहिए। जिस क्षेत्र में इंसान जी नहीं सकता है, उस क्षेत्र में बसाना ही गलत फैसला था। कई प्रतिष्ठित संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में माना कि माहुल रहने लायक स्थान नहीं है, लेकिन सरकार और बीएमसी को यह बात समझ में नहीं आ रही है।’

एक अन्य महिला ने कहा, ‘अगर सरकार हाई कोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करती है, तो सत्ताधारी पार्टियों को अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह घोषणा करना चाहिए कि उसे राज्य के नागरिकों की जान और माल से कोई मतलब नहीं है।’


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