जस की तस हैं माहुलवासियों की यातनाएं

संवाददाता/ मुंबई। माहुल गांव (Mahul Gaon) की इमारतों में रहने वाले परियोजना प्रभावितों को फिलहाल यातना से छुटकारा नहीं मिलने वाला है। प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि दूसरे स्थान पर पुनर्वसन का खर्च मनपा के लिए संभव नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान मनपा अपना पक्ष रखेगी। कुर्ला, अंधेरी व दहिसर जैसे अन्य स्थानों पर मनपा की परियोजनाओं से प्रभावितों का पुनर्वसन माहुल गांव में किया गया है। माहुल गांव में रहने वाले लोग केमिकल कंपनियों के प्रदूषण की वजह से परेशान हैं। प्रदूषण की वजह से एक साल में 150 से अधिक परियोजना प्रभावितों की जान जा चुकी है।

निरी संस्था ने इस क्षेत्र में प्रदूषण का अभ्यास कर अपनी रिपोर्ट दी थी। केईएम अस्पताल ने भी स्वास्थ्य को लेकर जांच की थी एवं प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया था। रिपोर्ट के बाद माहुलवासियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। अदालत ने माहुलवासियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए किराया, डिपॉजिट अथवा दूसरी जगह पुनर्वसन करने का आदेश दिया था। मनपा प्रशासन ने उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को कायम रखा था।

शनिवार को मनपा की सुधार समिति में उपायुक्त चंद्रशेखर चौरे ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने परियोजना प्रभावितों को हर माह 15 हजार रुपए किराया एवं 45 हजार रुपए डिपॉजिट देने का आदेश दिया है। यह देना मनपा के लिए संभव नहीं है। प्रशासन की तरफ से खर्च की पूरी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को दी गयी है। माहुल में 2 हजार विद्यार्थियों के लिए स्कूल का निर्माण करवाया गया है जिसमें केवल 450 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

10 एमएलडी पानी के प्लांट का निर्माण किया गया है। फायर स्टेशन का निर्माण किया गया है।16 हजार वर्ग मीटर का मैदान बनाया गया है। इसके अलावा दवाखाना आदि की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। प्रदूषण के संदर्भ में दोबारा अभ्यास करने के लिए निरी की नियुक्ति की गयी है। निरी की रिपोर्ट को मनपा मान्य करेगी। प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि प्रति प्रभावित परिवार को हर माह 15 हजार किराया देने से पांच साल में मनपा पर 1500 करोड़ का भार पड़ेगा। डिपॉजिटके लिए 100 करोड़ देना होगा। अन्य स्थान पर पुनर्वसन की परियोजना पर 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने होंगे।

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