चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं कांग्रेस के कई दिग्गज

मुंबई। महाराष्ट्र कांग्रेस में इन दिनों अजब स्थिति है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। अब तक कम से कम आठ बड़े नेता किसी न किसी वजह से चुनाव न लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं का यह रवैया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए आने वाले दिनों में बड़ा सिरदर्द बनने जा रहा है।

राहुल ने बड़ी उम्मीद से पार्टी के बुजुर्ग और अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को महाराष्ट्र का प्रभारी बनाकर भेजा था, लेकिन अब लग रहा है कि बिना राहुल के हस्तक्षेप के बात बनेगी नहीं। 2014 की मोदी लहर में महाराष्ट्र से कांग्रेस के केवल दो उम्मीदवार जीते थे। इनमें से एक थे वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण, जो नांदेड़ से चुनाव जीते थे और दूसरे थे राजीव सातव, जो हिंगोली से चुनाव जीते थे। सातव इस समय गुजरात में कांग्रेस के प्रभारी हैं।

हैरत की बात यह है कि ये दोनों ही नेता इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते। राजीव सातव पिछली बार हारते-हारते बचे थे। 2009 में यह सीट एनसीपी के खाते में थी। 2014 में एनसीपी ने कांग्रेस को सीट तो दी, लेकिन सातव को जिताने में कोई मेहनत नहीं की। इसलिए सातव जैसे-तैसे 1,632 वोट से चुनाव जीते थे।

चव्हाण और सातव दोनों ने ही कांग्रेस आलाकमान को चुनाव न लड़ने की इच्छा के बारे में बता दिया है। अशोक चव्हाण ने अपनी जगह पत्नी अमिता चव्हाण को चुनाव लड़ाने की बात कही है। हालांकि कांग्रेस के अंदरखाने राहुल गांधी के लिए अमेठी के अलावा देश भर में जिस दूसरी सुरक्षित सीट की तलाश की जा रही है, उसमें नांदेड़ सीट का भी नाम लिया जा रहा है।

अशोक चव्हाण के चुनाव न लड़ने के पीछे की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि वह खुद को महाराष्‍ट्र में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं। इसलिए वह लोकसभा के बजाय विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। यही हाल कांग्रेस के एक और बड़े नेता पृथ्वीराज चव्हाण का भी है। कई दिन से उनका नाम पुणे सीट के लिए चल रहा है। कांग्रेस-एनसीपी में इस सीट के आदान-प्रदान के लिए चर्चा भी हुई थी, लेकिन पृथ्वीराज चव्हाण ने लोकसभा के बजाय विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। वह कराड से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं।

नागपुर में कांग्रेस के दिग्गज नेता विलास मुत्तेमवार सतीश चतुर्वेदी और नितिन राऊत गुट की कारस्‍तानी से परेशान होकर चुनाव न लड़ने का मूड बनाए बैठे हैं। उनके करीबियों का कहना है कि बीजेपी के हैवीवेट नितिन गडकरी के सामने बंटी हुई कांग्रेस कैसे जीत सकती है।

पूर्व सांसद प्रिया दत्त और मिलिंद देवड़ा पहले ही राहुल गांधी के समक्ष चुनाव न लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। हालांकि प्रिया दत्त ने पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देकर चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है। दक्षिण मुंबई से सासंद, केंद्र में मंत्री रहे राहुल के करीबियों में शामिल मिलिंद देवड़ा भी मुंबई कांग्रेस की अंतरकलह को वजह बताकर चुनाव लड़ने के प्रति अनिच्छा जता चुके हैं। इसी तरह मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम अपनी सीट उत्तर मुंबई से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। वह उत्तर पश्चिम से इच्छुक हैं। खबर है कि मुज्जफर हुसैन का नाम भिवंडी सीट के लिए चल रहा है, लेकिन वह भी भिंवडी से चुनाव मैदान में उतरने के इच्छुक नहीं हैं।

कांग्रेस के भीतर यह चर्चा आम है कि नोटबंदी के बाद ज्यादातर नेताओं की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है। ऐसे में कई बड़े नेता लोकसभा चुनाव के भारी-भरकम खर्च से बचना चाह रहे हैं। खासकर तब जब कांग्रेस पार्टी से आर्थिक मदद मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। नेताओं को इस बात का एहसास है कि बीजेपी इस बार चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाएगी, जो नतीजों को प्रभावित कर सकता है।

 

 


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